Monday 5 November 2018

शुभ दिवाली

जा एगो दीया पुरनका घरे भी जरा दिहs.

सन्ध्या हो चली थी। समय लगभग साढ़े पांच बजने वाले थे। गावँ के ज्यादातर लड़के नहा-धोकर एक थाली में मिट्टी के सात-आठ दीये, घी से लिपटी हुई बाती और एक माचिस लिये तेजी से जा रहे थे। इन जाने वाले लड़को का गंतव्य था कोई गावँ के ब्रह्म बाबा, काली माई, डीहबाबा या शंकर भगवान का शिवाला।

माँ बार बार कह रही थी। लेट हमारे घर में ही होता हैं। सब लोग चल जायेगा तब तुम जाओगे। भगवान के पास दीया शाम को जलाया जाता हैं रात में नहीं। जल्दी जाओ देर हो चुका हैं।

फटाफट नहा धोकर एक थाली में कुछ दीये, बाती और एक माचिस लिए मैं भी निकला, चूंकि मुझे लगता हैं कि दीये जलाने वालों में से मेरा नाम अन्तिम दस लोगों में होगा।
जल्दीबाजी ऐसी थी कि चप्पल लगाना भी भूल गया था। ब्रह्मबाबा, बजरंग बली, शंकर भगवान के स्थान पर दीया जलाने के बाद पुराना घर की समीप जाते ही लौट गया अपने अब तक के चौदह पंद्रह साल पहले...

दिवाली का दिन था। पूरे गावँ में खुशी का माहौल था। सब अपने अपने छत पे चढ़कर पूरे दीवाल पर डिजाइन में मुम्बत्तीयाँ जलाने, फटाखे फोड़ने में मशगूल था। मेरे लिए भी भइया कुछ पटाखे लाये थे। पटाखों का वितरण सबके लिए किया गया।  मुझे जो भी मिला उसमें ज्यादातर छुरछुरी और एकादुक्का लाइटर और दो आकाशबाड़ी था।

"हम लड़को ने आपस में मिलकर छत पे एक छोटा सा दिवाली घर बना रखे थे। पहली बार मुझे एहसास हुआ था कि घर बनाना बहुत आसान काम हैं बस एक दो दिन में तो सबकुछ बन जाता हैं। दिवाली घर के छत पर  जाने की सीढ़ियां और उसके ऊपर एक पक्षी जिसको बनाने का श्रेय दीदी का था। घर की पेंटिंग और डिजाइन बनाने का काम बड़े भाई एवं मेरा काम था कुछ ईंटो, पीली मिट्टी, रंग, और समय समय पर बताये हुए काम को चपलता के साथ करना।"
उस बार की दिवाली  मेरे लिए दुखद सन्देश लाई थी। पटाखा छोड़ने के बाद पुनः छत से नीचे उतरके दो तीन पुड़ी सब्जी खाके दुबारा बचे हुए पटाखों को खत्म करने के लिए  छत पे गया।
इस बार का पटाखा थोड़ा ज्यादा खतरनाक था। जलाने के बाद बगल की गली में फेंकना चाह रहा था कि गली में न जाके बगल वाले पड़ोसी के फुस का भूसा रखने वाला  "खोंप" के ऊपर जा गिरा।
फिर क्या था मिनट भर की देरी में ही आग फैल गई और पूरे गाँव में आग आग हल्ला हो गया। जब एक छोटा भाई घर में बताया कि इसके कारण ही आग लगी हैं। पापा से मुझे खूब जम के धुलाई हुई और रोने की आवाज सुनकर जिनके यहाँ आग लगी थी आये और कहने लगे.
"बच्चे को मत मारिये आपलोग.. अनजान में गलती हो गई हैं उससे"
रोता हुआ मेरे मन में एक अलग ही आत्मीय सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई।
[ भले लोग के साथ हमेशा ही भला ही होता हैं। आज बेरोजगारी के दौर में उनके चार लड़को में तीन सरकारी जॉब में हैं]
मेरी तरफ से आप सभी को शुभ दीपावली