Friday 15 September 2017

कितना बदल गया इंसान

। कितना बदल गया इंसान ।
     
दिन वो क्या थे जब मिलजुल कर चलते थे साथ
आज दोस्ती यारी छोड़ सब बैठे मोबाइल के पास l

आपस मे करते थे कही जाने आने घूमने का प्लान
आज का दैनिक जीवन मोबाइल से लगता है बेजान ।

होता नही कही कोई घर का काम
पर रहते है दिनभर मोबाइल में परेशान l

उठते,बैठे,चलते-फिरते बस रहता इसका ध्यान
80 साल की दादी हरदम देखकर रहती है हैरान l

कितना बदल गया इंसान 

चंद लोगो की जिंदगी बनाया 
ढेरो की जिंदगी किया तमाम l

फेसबुक, व्हाट्सएप्प है इसकी दुकान
सुबह खुल जाता, दिन भर रहता जाम ।

जियो, एयरटेल, आईडिया, इसका  है जान
सस्ते पैक देकर पहले बाद बनाता है गुलाम ।

कितना बदल गया इंसान

घर परिवार की सुध नही
रिश्ते हुए कल्पना के नाम l

बधाई हुआ मैसेज से तमाम
मिलने पर होता नही राम राम ।


कितना बदल गया इंसान ।।
         

Thursday 14 September 2017

जीवन की रेसिपी

जीवन का रेसिपी

दवा भी
दुआ भी

पानी भी
और खून भी

रिश्ते नाते इंसानो को भी
हर मोड़ पे बिकते देखे है

हर गली चौक चौराहों पर
रिश्वत को भी रिसते देखे है

जो बिका नही और रीसा नही
बस बचा रहा तुफानो से

ऐसे इंसानो के जीवन को
तुम रेसिपी बनाकर पी लो ।।

गर सफलता पानी है
ये काम अनोखा कर लो तुम

जब मन में  उठे हुकारो को
तन मन से पुरा करना है

तुफानो के झोंके से तूम
बस डटे रहो,अडिग रहो

पलभर में सब टल जाएगा
सब कुछ का हल हो जाएगा

है सफल वही जो विफल रहा
जो कर्म पथ पर अटल रहा

ऐसे इंसानो के जीवन को
तूम रेसिपी बनाकर पी लो।।

कुछ लोग अभी भी जलते है
उन रस्तो पर  ही चलते है

बेवजह उलझ कर मरते है
सच्चाई से बस डरते है

मर कर भी जो अमर है
जिसकी सबको खबर है

है वीर वही समसिर वही
देश के असली तकदीर वही

ऐसे इंसानो के जीवन को
तुम रेसिपी बनाकर पी लो ।।

       सुजीत पाण्डेय "छोटू.


















Tuesday 12 September 2017

वेलेंटाइन डे स्पेशल 💐💐

रोहित रात का खाना बाहर से ही लेकर आया था । रूम पहले से ही बुक था। यात्रा लंबा होने की वजह से भारी भरकम समान लिया नहीं था और वैसे भी किराए पर मिल रहे होटलों में सारी सुविधा रहती है, फिर भी अपने साथ 2 बेडसीट, 2 हॉफ फूल पेंट और बाकी कुछ डेली जरूरत के सामान जैसे ब्रश, कोलगेट, सेविंग आइटम इत्यादि । होटल रोड से क़रीब सौ मीटर की दूरी पर था। अगर होटल की काया कल्प की बात की जाय तो अच्छा खासा डबल बेड का  रूम, साथ मे 1 टेबल और दो कुर्सियाँ, सोनी की 52 इंच की टीवी, टॉयलेट, बाथरूम सबकुछ अलग अलग, कमरा पुरा सुंदर टाइल्स लगा था जिसकी चमक खुद के चेहरे को भी झलक दे रही थी  ।
मोबाइल से कुछ देर बात और चैटिंग करने के बाद रोहित खाना खाया रोटी, सब्जी, चावल ,दाल और सलाद साथ मे कोई अपना नही होने से ... एक छोटी बियर की बोतल .... खाना पीना खाकर  दिन भर यात्रा की थकान से जल्दी सो गया ।
रात के लगभग पौने दो बजे रहे होंगे, जल्दी सोने से नींद पहले ही खुल गई पर जग कर भी क्या करता । सोचा सोते ही रहते है ताकि नींद आये तो अगले दिन घूमने जा सकते है ....

तब तक आवाज आती है । " कौन है ?

इतनी रात में इस तरह की कहाँ से आई सोचने लगा फिर रूम का दरवाजा खोला, गलियारे में झाँक कर देखा कोई दिखाई नहीं दिया । रोहित को लग रहा था कि उसे वहम हो रहा है । 

बेकार में ऐसी छोटी बातों को क्यों सोचना ....


पुनः एक बार फिर से वही आवाज आती है

 "कौन है ? 

और दरवाजा खटखटाने की आवाज आई ... रोहित फिर सोचा कि कौन है जो ऐसा कर रहा है ... इतनी रात में और फिर लड़की का आवाज ..... 

दरवाजा खोलता है .. फिर कोई नहीं दिखता है ।
चूंकि कमरे के आसपास रूम खाली होने से सभी रूमों में ताले जड़े थे व होटल वाले से अनजान होने से एरिया के बारे में अच्छी तरह मालूम नहीं था । 

दूसरी बार हुई ऐसी आवाज ने रोहित के  पैरों तले घरती खिसक गई, मन में डर पैदा कर ही दिया था, पर किसी तरह उठकर खिड़की खोला तो बाहर बगीचे से सुंदर हवाएं आ रही थी, रात में जबरदस्त बारिश हुई थी, बारिस होने से मिट्टी की सोंधी खुश्बू से आसपास का वातावरण सुवासित हो रहा था । बॉस के पेड़ों से निकले कोपड़ और पत्ते हवा की झोकों में इधर उधर जाने से थोड़ा सा आवाज आ रहा था पर वो आवाज नहीं के बराबर था । तब तक रोहित को ऐसा आभास हुआ कि उसका पीछे कोई खड़ा है, पलभर के लिए ये क्षण फिर से डराने वाला था फिर हिम्मत दिखा वह झटके से पीछे हुआ पर कोई दिखा नहीं । 


रोहित लाइट जलाकर अपने डर को कम करना चाहा और लाइट जलती हुई छोड़कर कुछ देर रहा फिर उसे ऐसा लगा कि अब आराम कर सकते है उसने लाइट बंद करके सोने के लिए बेड पर चला गया । अभी 2 मिनट ही हुए थे कि कुर्सी अपने आप सरकने लगी । झट से उठा और देखा तो खिड़की खुली छोड़ दी थी, हवा  की रफ्तार तेज होने से प्लास्टिक की कुर्सी सरक रही थी, फिर लेट गया । देखता है कि आँख के सामने छत पर एक गोल सा चेहरे का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है । जो उसके चेहरे से मिल रहा है । देखते ही पूरा बदन सिहर गया । रोंगटे खड़े हो गए । किसी तरह से अपने आराध्य देव गुरु का नाम लिया और उसके बाद हनुमान चालीसा पाठ करने लगा । आखिर कब तक पाठ करते रहता कुछ देर बाद खुद से थोड़ा सुकून मिला कि टेबल पर रखा हुआ गिलास धड़ाम से नीचे गिरा इस बार झट से अपने मोबाइल की लाइट जलाई तो समाने देखता है कि चूहा पड़ा है, शायद कुछ खाने के लिए आया हो ।


बाकी के 3 घंटा गुजारना बहुत कठिन लग रहा था । ऐसे लग रहा था इस रात वह जिंदा बच जाय तो जिंदगी पूरी तरह आसानी से काट लेगा, सोच ही रहा था कि पायल की खनक सुनाई दी, तपाक से मोबाइल लेने भागा तब तक ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे जोर से धक्का दे दिया हो, गिर पड़ा । 

अब उसके सामने एक स्त्री का प्रतिबिंब दिख रहा था । जिसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वो कुछ बात करना चाहती है, कुछ सुनाना चाहती है। 

ऐसा साक्षात दृश्य देखकर रोहित हैरान था, सहसा बोल उठा ।

तुम कौन हो ? और क्यों मेरा पीछा कर रही हो?

उस स्त्री ने बोला कि मैं अपना कुछ हाल-ए- दिल  सुनाना चाहती हूँ ।

अब रोहित कुछ निडर सा होने लगा था ।

रोहित ;- सुनाओ, क्या सुनाना चाहती हो ?

सुनो, आज से चार साल पहले मैं अपने पति (मयंक) के साथ यहाँ आई थी । बड़ी खुशी और ढ़ेर सारी तमन्नाओं के साथ, दिन 13 फरवरी था । अगले दिन हमें घूमने जाने का प्लान था जिसमें आसपास के कुछ समुन्द्रो के किनारें और कुछ पार्कों में ....

रोहित :- फिर क्या हुआ? रोहित अब तत्परता से आगे की कहानी जाने को उत्सुक हुए जा रहा था ।

मयंक मुझे हद से ज्यादा प्यार करता था और जीवन का सबकुछ खुशियों की सौगात स्वरूप में ही थी। मेरी जिंदगी में ईश्वर ने मयंक रूपी ऐसा सौग़ात दिया था, जिसका बयाँ शब्दों से परे है, पर शायद ऊपर वाले को ज्यादा दिन साथ रहना मंजूर नहीं था । हम दोनों की शादी के अभी तीन सावन ही गुज़रे थे ।

रोहित :- आगे की बात सुनने को बेसब्र हो रहा था । फिर क्या हुआ ।

समय वही रात के लगभग 00:30 बज रहे होंगे। खाना पीना बाहर के रेस्टोरेंट से खाकर आये थे। रेस्टोरेंट से बाहर आने के क्रम में कुछ गुंडों की निगाहें हम पर पड़ी और वे पीछा किये । लेकिन गाड़ी तेज़ भगाकर हम पहले ही होटल पहुँच गए ।

..…........................................................................


जब सुबह उठा तो खुद को जमीन पर लेटा पाया । कुछ देर के लिए डर गया पर सामने खिड़की से सूरज की किरणें आ रही थी । मोबाइल लेकर अपनी दोस्त रिया को रात की सारी घटना बताई ।

आगे की कहानी के लिए कृपया थोड़ा वक्त लगेगा ।। 

sujit1992.blogspot.com

हुई मुराद पूरी पुरी की 🙏🙏

सूरज अपने दैनिक ड्यूटी से मुक्त हो ढलने के लिए तैयार था, मैं अपने दोस्त  राजू के साथ AMBIENCE मॉल गुरुग्राम घूमने जा रहा था । समय करीब 630 बज रहे होंगे। जैसे ही सिकंदरपुर रैपिड मेट्रो में सवार हुआ,मोबाइल की घंटी बजने लगी, पर भीड़ कुछ ज्यादा होने की वजह से मोबाइल पॉकेट से नही निकाला, सोचा आगे जैसे ही समय मिलेगा, देख लूंगा । घर मे दोपहर ही कुशलक्षेम हो चुका था  इसलिए ज्यादा जरूरत भी नही समझा । दरअसल दिल्ली में 2 साल रहने के बाद भी Ambience मॉल न घूम पाना और अपने छोटे भाई चंदन के मुंह से इसके बारे में बखान  सुनने के बाद दिल की हार्दिक इच्छा थी कि जाकर देखा जाय, आखिर कैसा है ?
अगले 2 मिनट में फिर कॉल आने लगा और इस बार लगातार घंटी बजने से मोबाइल निकालना जरूरी समझा, बस फ़ोन रिसीव करते ही, आदेश मिला,परसो आपको 15 दिन के लिए कटक जाना है । पहले तो थोड़ी देर के लिए मन दुखी हुआ पर अगले कुछ पलों में पलको ने फड़फड़ाना शुरू कर दिया। यह मेरे लिये शुभ संकेत था । अभी पूरी तरह सोच भी नही पाया था कि मौलसरी एवेन्यू  मेट्रो स्टेशन आ गया,जहाँ से हमे Ambience Mall के लिए जाना था । मेट्रो से उतर 200 मीटर की दूरी हम दोनों ने पैदल ही चहलकदमी करते निकल पड़े । 
जैसे ही मॉल पहुँचे, सामने  शीशे की आलीशान बिल्डिंग, ब्रांडेड देशी ही नही विदेशी कंपनियों के पोस्टर, आस पास कुछ लक्ज़री कारे,जगह जगह पर गार्ड साफ सुथरे पोशाक पहने तैनात थे । भीतर गए, कपड़े और जूतों की दुकानों पर देखे,एक दो कपड़े लिए फिर वापिस आ गए हालाँकि जूते जो पसंद आये वे काफी महंगे थे इसलिए नही लिए ।
तीसरे दिन मुझे कटक के लिए निकलना था । अचानक गाड़ी में रिर्जवेशन करने पर सीट कन्फर्म मिलना असम्भव  था, फिर भी रेलवे काउंटर से जाकर WL-160 ले लिया । जरूरत का सामान ले लिए, चुकी दिल्ली में उस समय ठंड थी पर पता किया कटक में ठंड कम है तो एक मोटी  चादर ले लिया था ।
ईश्वर का शुक्र था कि इतना waitting होने के बाद भी मेरा टिकट कॉन्फॉम हो गया । रात में नौ बजे पुरुषोत्तम पर सवार हो कटक पहुँचे । सफर में खुशी केवल इस बात का था कि इस बार चारों धामों में एक का दर्शन हो जायेगा ।
कटक प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का anauncement  उड़िया भाषा के महिला स्वर से हो रहा था, जैसा कि दिल्ली में हिंदी और इंग्लिश में होती है । सच कहूँ तो उड़िया भाषा मे भी मिठास का अनुभव हुआ । स्वर था
एकी दुइ चारि दुइ दुइ एक्सप्रेस बाकी भूल गया । पहले तो उसे announcement  मोबाइल में रिकॉर्ड किया फिर ओडिसा के ही एक मित्र उमेश को भेजा, उसकी भाषा की मधुरता को बताया, उमेश बहुत खुश हुआ और मुझे लौटते ही पार्टी दिया ।
एक सप्ताह बीतने के बाद कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक मिनी बस रिजर्व किये कुल 15 लड़के भगवान विष्णुजी के जयघोष के साथ जगन्नाथपुरी के लिए रवाना हुए रास्ते मे 20 km की दूरी सफर तय करने के बाद नास्ते का प्रयोजन हुआ । नमकीन पकौड़ी  छोले के साथ एक मीठा पकवान जिसे हम भोजपुरी में ठेकुआ बोलते है, खाकर अच्छा लगा । आगे लगभग 70 km की दूरी पर मंदिर था । मंदिर परिसर से 5 km पहले ही गाड़ी खड़ी करनी पड़ी क्योंकि 3 km दूर तक बड़ी गाड़ी ले जाने की मनाही है ।
जय जगन्नाथ ।।
मंदिर के बारे में विशेष
1.पूरी भगवान विष्णु के चारो धामों में से एक है । जगन्नाथ का मतलब है जगत का नाथ । भगवन विष्णुके चारों धामो की व्याख्या इस प्रकार है  हिमालय की चोटियों में बसे बद्रीनाथ में स्नान करते है, द्वारका में वस्त्र बदलते है, जगन्नाथपुरी में भोजन करते है और दक्षिण रामेश्वरम में विश्राम करते है । जानने के बाद खुशी इस बात का था कि चले चारों धामो में एक के दरशन तो हो गए बाकी भगवान खुद घुमा देंगे और वैसे भी बिन भगवान के कृपा से कुछ भी संभव कहाँ ..... तमिलनाडु से 100 km की दूरी पर रहकर बालाजी और जम्मू कटरा से 3 km की दूरी पर माँ वैष्णो देवी का दर्शन जब नही कर पाए तो बस यही सकारात्मक सोच बनी ,
।।  बिन हरि कृपा मिलहु नही संता ।।
2. मंदिर में दूसरे धर्मों के लोग नही जा सकते । जैन और बौद्ध धर्म के लिए कुछ दस्तावेज ले जाने की जरूरत पड़ती है ।
3. मंदिर परिसर में घुसने के बाद कलिंग शैली के स्थापत्य कला, शिल्पकला से निर्मित भव्य और आश्चर्यजनक है । 
4.मंदिर में भगवान विष्णु के साथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्ति है ।
5. साफ सफाई उच्च दर्जे का है ।
6. मंदिर परिसर में मोबाइल व जूता ले जाना और फ़ोटो लेना वर्जित है,जमा कराने का निशुल्क सेवा है ।
7. प्रसाद के साथ साथ दीप जलाने के मिट्टी के पात्रों में घी और कच्चे  धागे के दीपक मिलते है 
8. सबसे बड़ी विशेष महत्व वहाँ के प्रसाद का है जो मंदिर परिसर के बायीं तरफ बहूत सारी दुकानों में मिलती है । प्रसाद के रूप में चावल, दाल, कढ़ी, दूध से बने मिष्ठान और छाछ जैसी चीजे उपलब्ध है ।
दर्शन होने के बाद अगला पड़ाव समुन्द्र देखने का था । अच्छी तरह से समुद्र तट का नाम याद तो नही आ रहा है पर खुद को नहाने से नही रोक पाया, हालांकि नहाने के लिए पहले से कोई कार्यक्रम नही था । गमछी साथ लिए था। दो और मित्रो को भी नहाने के लिए बोला, वे लोग भी तैयार हुए। 

कोणार्क मंदिर विशेष
1. कोणार्क मंदिर विश्व विरासत स्थल में अंकित है ।
2. इसकी बनावट बहुत ही निराली है, विदेशियों का जमवाड़ा लगा रहता है । 
3 मंदिर के पूर्व का द्वार ऐसा है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर पर पड़ती है हालाँकि मंदिर में अंदर जाने की अनुमति नही है । 
4. मंदिर के प्रवेश में ही दो शेरो की प्रतिमा है ।
5. मंदिर रथ आकार बनाया गया है जिसमे 24 पहिये है जिसका डाया 10 फ़ीट का है, 7 घोड़े है ।
6. बगल में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है पर पानी कम होने से यह दूरी बढ़ गई है । 
7. सेक्स से संबंधित ज्ञान के लिए रथों के पहियो, मंदिर परिसर की दीवारों पर नक्काशी किया गया ।
दर्शन करने के उपरांत बाहर आकर 3 नारियल पानी पिये इसके बाद लंच किये, संध्या के करीब 5  बज चुके थे, दोस्तों का समूह बड़ा होने से थोड़ी चिंता जरूर थी पर सभी सही सलामत बस सवार हुए । बस में कुछ हिंदी गानों पर टीम बनाकर बारी बारी से डाँस हुआ ।और अंत मे सबको एक एक कर यात्रा के बारे में अपना अपना विचार व्यक्त करने को कहा गया । सबने एक एक कर अपना राय दिया । 
छैना पोड़ा :- प्रसिद्ध मिष्ठान ।
सचमुच घुमक्कडी ग्रुप में जुड़ने के बाद लिखने का अच्छा स्पीड आ गया है ।

आभार ।

Sunday 10 September 2017

ग्रामीण परिदृश्य भाग 3 रामलखन की कहानी ।

​अब तक आप सब भाग 1 और भाग 2 पढ़ चुके है आप सभी ने मुझे एक ऐसा हौसला दिया है जिसकी वजह से मेरी लेखनी पहले से कुछ ज्यादा ही स्पष्ट और सुसज्जित हो चुकी है ।


शाम का वक्त था। सूरज ढल रहा था। समंदर अंगड़ाई ले रहा था। किनारे लगे खजूर और पाम के पेड़ों से हवाएं सरसराती हुई बातें कर रही थी। फिजाएं मानों गुलाबी रंग से सराबोर थी। रामलखन जीवन के 25 बसंत पार कर दिल में हजारों उमंगें लिए अब कश्मीर की वादियों में अलोन अलोन फिलिंग करने लगा था । उसके मन मे अभी भी प्रकृति की हरियाली और खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य की खुशबू अपने भावों में समेट लेती थी । अगले दिन खुद को तन्हाई से उबरने के लिए, मन्फेरवट करने के लिए  (हिंदी अंग्रेजी से अलग भोजपुरी ) पास से 20 km की दूर, प्रिय साथी मोहित को लेकर पैराडाईज हॉल में फ़िल्म देखने निकलता है ।

फ़िल्म शुरू हुई, तकरीबन 40 मिनट तक फ़िल्म देखने के बाद कहानी के दौरान हुए एक मोड़ ने उसे अपने बीते हुए दिनों को याद दिला दिया । पल भर के आंखे नम हो गई और जैसे ही इंटरवल होने के समय हॉल से बाहर निकला, खुद को रोक नही सका। बाहर लगी दुकानों से एक सिंगरेट का पॉकेट और लाइटर लाया, एक बार मे 2 दो सिगरेट लेकर ऐसा कस खिंचता जैसे अपना कलेजा जला लेगा और नशे में उन्मत हो खुद को संभाल नही पायेगा । मोहित ने उसको समझाते हुए वापिस हॉल में ले जाकर बैठाया ।

"इश्क़ की जब आंधी आती है तो ज्ञान के सारे दीपक बुझ जाते है ।"


प्यार के नशे में उन्मत को रात में दिन और दिन में तारे नजर आने लगते है  । तारे जमी पर लाने का हौसला होता है पर अब सारे सँजोये ख्वाब टूट चुका होता है बस तन्हा तन्हा जिंदगी गुजारनी पड़ती है । दुनिया मे हर मर्ज की दवा मिल सकती है पर इश्क़ की नही ।स्वभाव से सीधा साधा, सभ्य और साहसी लड़के का सब्र का बाँध टूट चुका था ।  रामलखन को बस जिंदगी और मौत में कोई खास अंतर नही दिख रहा था बस एक ही ख्वाईश थी बस एक बार फगुनिया कॉल उठाकर बोल देती ...

भक्क, आप कैसे है जी,कुछ भी बोलते रहते है ।  लाजो नही लगता है ।


जहाँ पहले

गोरिया चाँद के अंजोरिया नियर गोर बाडू हो तहार जोड़ केहू नइखे बेजोड़ बाड़ू हो ।

जान मारे ललकि ओढनिया, लाली पप लागेलु के सुनहरे धुन बजता था अब

काहे के राम जी दिल ई बनवले हो ऊपर से प्रेम वाला रोग धरवले हो
प्रेम ना रही त केहू परी ना झमेल में फाँसी ना लगाइ ना कटाइट जा के रेल में गाना बजने लगे ।

अगले ही कुछ मिनटों में अपने SAMSUNG GLAXY NOTE 4 को सड़क पर धड़ाम से पटक देता है और वाइन BLINDER की बोतल लेकर आता है। ये सब क्या हो रहा है आये थे दिल बहलाने, बहक बैठे । अगर मोहित न हो तो शायद रात में भी वापस आना मुमकिन नही होता ।

और गलती भी क्या थी ?? बस रामलखन के घर वालो को जब ये खबर लगा कि फगुनिया (राजेश की साली) से इल्लु इल्लु का प्रेम प्रसंग जारी है । अब ये भला रामलखन की पिता  को कैसे बर्दाश्त होने वाला था । समाज मे राजपूत समाज की नाक कट जाती, जो मूछ पर ताव देकर 12 लाख नगद, appache  बाइक के साथ सोने की सिकड़ी का जो डिमांड था वो सब पूरा कैसे हो पाता । घर परिवार सब की भौंहें तन गई, अगले ही आधे घंटे में वे राजेश के घर पहुच कर बेबजह उलझ पड़ते है, गाँव वालों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है । तू तू मैं मैं होते ही बात आगे झगड़ा लड़ाई की नौबत आ जाती है । गाँव के सरपंच रामेश्वर चौबे आ जाते है साथ में कुछ और बड़े बुजुर्ग आकर इज्जत प्रतिष्ठा की बात कर  किसी तरह मामला शांत कराते है ।

आज सुबह से ही फगुनिया का दाहिना हथेली जोर जोर से खुजल रहा है और दाहिना आँख भी फड़फड़ा रहा है । किसी तरह खाना पीना बना,सबको खिला पिलाकर नहा धोकर काली मइया और बरहम बाबा का पूजा पाठ करती है कि आज रामलखन का फ़ोन आ जाये तब कुछ भविष्य के बारे में बात करेंगे । फैमिली प्लानिंग, और अपना घर परिवार का सुख दुख से सब कुछ कह डालेंगे । हालाँकि मोबाइल में पैसा तो नही है पर miss कॉल मारेंगे तो क्या पता कहा होंगे, ड्यूटी में होंगे तो बात कैसे होगा । इसी ऊहापोह में सोचती है तब तक दीदी का फ़ोन आ जाता है । फ़ोन दीदी का समझकर खुश होकर जैसे ही फगुनिया फ़ोन उठाती है । उधर से उनके ससुर पापा से बात कराने को बोलते है फिर क्या था भला बुरा हैन तेन लालटेन सब कुछ हो जाता है । पंक्ति में वर्णन करना आवश्यक नही है । घर मे सब दुखी हो जाते है ऐसे मौहाल में फगुनिया भला क्या कर सकती, पापा के शर्मिंदा होने पर फगुनिया खरी खोटी सुनती है और ऐसा बर्दाश्त नही होता है । पूरा दिन सोचती है फिर अंत मे खुद को इस गुनाह का हकदार समझ जीवन की लीला समाप्त करना चाहती है ।

भाग 4 में हम फिर आगे की कहानी बताएंगे ।
आप सबका बहुत बहुत आभार .......🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday 9 September 2017

।। हिंदी हमारी बिंदी है ।।

दोस्तों, आज फैशन,सुविधा और तकनीकी के बदलते परिवेश में हर कोई खुद को अपडेट रखने में व्यस्त है और ऐसी होड़ हमारे भविष्य को धनवान व सुविधा तो प्रदान करती है पर कही न कही यह हमें अपनी गुलामी के जंजीरो में बांधकर अनमोल सभ्यता संस्कृति, विरासत व साहित्य से कोसो दूर करती जा रही है । इसमें पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यवहारीक जीवन का घोर अभाव है ।

जी हाँ, हम वही बात करना चाहते है "अपनी भाषा हिंदी का", जिसमे हम पल बढ़ कर अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण समय बिताए है ।

।। हिंदी भारतीय समाज की बिंदी है ।।

भारतीय माताओं और बहनों के श्रृंगार का बिंदी एक बेहद ही महवपूर्ण श्रृंगार है । इसका मोल तो बहुत ज्यादा नही पर यह वही सुंदरता भर देता है जो  सुहागा सोने में  मिलकर उसकी चमक भर देता है । 

हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधीब्रजभाषाकन्नौजीबुंदेलीबघेलीभोजपुरीहरयाणवीराजस्थानीछत्तीसगढ़ीमालवीझारखंडीकुमाउँनीमगही आदि। किन्तु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।

आज हिंदी भाषाईयो के द्वारा उपेक्षा किये जाने के बाद भी विश्व पटल पर अंग्रेजी और पिंडारी के बाद हिंदी बोलने वाले तीसरे स्थान पर है और साल 2001 के आंखड़ो का आधार ले तो कुल 1 अरब लोग हिंदी बोलते है ।

कल मुझे बहुत दुख हुआ जब एक वरिष्ठ संपादक ने क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी को अश्लीलता और परिश्रमी श्रेणी के कामगारों की भाषा का नाम देकर प्रयोग कर किया । सच कहूँ तो दिल कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गया पर कुछ देर के बाद मेरे मन मे एक सवाल पैदा हुआ ।

आज भोजपुरी ही नही, आनेवाले समय मे जिस तरह से हमारा समाज अंग्रेजी, फ्रेंच, कनेडियन इत्यादि भाषाओ को जोर शोर से सीख रहे है । क्या आने वाले समयो में हिंदुस्तान ही हिंदी को सम्मान की नजरों से देख पाएंगे ????????

हिंदी प्रदेश की तीन उपभाषाएँ और हैं - बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी हिंदी।

बिहारी की तीन शाखाएँ हैं - भोजपुरी, मगही और मैथिली। बिहार के एक कस्बे भोजपुर के नाम पर भोजपुरी बोली का नामकरण हुआ। पर भोजपुरी का प्रसार बिहार से अधिक उत्तर प्रदेश में है। बिहार के शाहाबाद, चंपारन और सारन जिले से लेकर गोरखपुर तथा बारस कमिश्नरी तक का क्षेत्र भोजपुरी का है। भोजपुरी पूर्वी हिंदी के अधिक निकट है। हिंदी प्रदेश की बोलियों में भोजपुरी बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक है। इसमें प्राचीन साहित्य तो नहीं मिलता पर ग्रामगीतों के अतिरिक्त वर्तमान काल में कुछ साहित्य रचने का प्रयत्न भी हो रहा है। मगही के केंद्र पटना और गया हैं। इसके लिए कैथी लिपि का व्यवहार होता है। इसमें कोई साहित्य नहीं मिलता। मैथिली गंगा के उत्तर में दरभगा के आसपास प्रचलित है। इसकी साहित्यिक परंपरा पुरानी है। विद्यापति के पद प्रसिद्ध ही हैं। मध्ययुग में लिखे मैथिली नाटक भी मिलते हैं। आधुनिक काल में भी मैथिली का साहित्य निर्मित हो रहा है।

राजस्थानी का प्रसार पंजाब के दक्षिण में है। यह पूरे राजपूताने और मध्य प्रदेश के मालवा में बोली जाती है। राजस्थानी का संबंध एक ओर ब्रजभाषा से है और दूसरी ओर गुजराती से। पुरानी राजस्थानी को डिंगल कहते हैं। जिसमें चारणों का लिखा हिंदी का आरंभिक साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी में गद्य साहित्य की भी पुरानी परंपरा है। राजस्थानी की चार मुख्य बोलियाँ या विभाषाएँ हैं- मेवातीमालवीजयपुरी और मारवाड़ी। मारवाड़ी का प्रचलन सबसे अधिक है। राजस्थानी के अंतर्गत कुछ विद्वान्‌ भीली को भी लेते हैं।

पहाड़ी उपभाषा राजस्थानी से मिलती जुलती हैं। इसका प्रसार हिंदी प्रदेश के उत्तर हिमालय के दक्षिणी भाग में नेपाल से शिमला तक है। इसकी तीन शाखाएँ हैं - पूर्वी, मध्यवर्ती और पश्चिमी। पूर्वी पहाड़ी नेपाल की प्रधान भाषा है जिसे नेपाली और परंबतिया भी कहा जाता है। मध्यवर्ती पहाड़ी कुमायूँ और गढ़वाल में प्रचलित है। इसके दो भे हैं - कुमाउँनी और गढ़वाली। ये पहाड़ी उपभाषाएँ नागरी लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें पुराना साहित्य नहीं मिलता। आधुनिक काल में कुछ साहित्य लिखा जा रहा है। कुछ विद्वान्‌ पहाड़ी को राजस्थानी के अंतर्गत ही मानते हैं।

अभी भी समय है कि हम अपने मातृ भाषा हिंदी के व्याकरण को जानें । हम दावा करते है कि जो भाषा की माधुर्य रस और संस्कार  हिंदी  दे सकती वह किसी कीमत पर अन्य नही ।

साथ ही यह कहना चाहूँगा कि भारतीय हिंदी में ही सभ्यता और संस्कृति का राज घुला हुआ है और अगर इसी तरह से भारतीय समाज हिंदी की अवहेलना करेगा तो वह दिन दूर नही जब प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रम खुला हुआ मिलेगा ।

हम हिंदी दिवस पर ही केवल हिंदी को महत्व न देकर हिंदी की स्नेहक मधुरता को विश्व मे फैलाये ताकि हमें गौरवशाली भारत में होने का गर्व हो ।

सुजीत कुमार पाण्डेय छोटू

Thursday 7 September 2017

ग्रामीण परिदृश्य । रामलखन की कहानी भाग 2

खेतो में सरसों के फूल खिल चुके थे और गेहूं भी फूल लेने को तैयार थे, फागुन के बयार से फगुनिया का मन भी फगुनहटा की हवा में बह जाने को बेकरार था और रामलखन का फ़ोन आये पांच दिन हो गए थे, मन मे तरह तरह के सवाल पैदा हो रहे थे ।

जो रामलखन रोज दिन भर में 8-10 बार फ़ोन किया करता था, आजकल ऐसे क्यों करने लगा? कही दूसरा तो चक्कर नही चल रहा है ? घर वालो से डॉट तो नही पड़ी है या ड्यूटी सीमा पर है तो कुछ गलत तो नही हो गया। इसी उहापोह भरे  सवालों  से उलझी फगुनिया काली माई और शिव जी से कुशलक्षेम के लिए मन्नत मांग ली कि शुभ समाचार मिलते ही प्रसाद चढ़ाऊंगी ,का दिन और रात बैचनी में बीतने लगा ,रोज दिन भर में चार पांच लभ लेटर लिखती पर भेजती किस पता पर ?? , फाड़कर फेक देती । लेकिन बेताबी का हाल ऐ दिल बताये तो किस से ... हाँ पड़ोस की पिंकी से दिल की बात करती तो वो भी आज कल नाराज चल रही थी । नाराज भी क्यों न रहे, पिंकी का भी प्यार का परवान चढ़ कर गेंदा के फूल की तरह मुरझा चुका था और प्यार वार से भरोसा उठ चुका था क्योंकि उसके राजू की शादी तय हो चुकी थी । जो राजू पिंकी के लिए जान भी हाजिर करने को तैयार रहता था, बड़े भाई और पिता जी की मार के बाद आँख उठाकर भी नही देखता था । भला ऐसे प्यार का क्या नाम दिया जाय । पिंकी कैसी लड़की थी जो सब कुछ भुलाकर भाग जाने को भी तैयार थी पर डरपोक राजू कुछ नही किया ।

फगुनिया के  दिनभर में सैकड़ो फ़ोन करने के बाद भी मोबाइल  में केवल "डायल किया हुआ नंबर बंद है या कवरेज एरिया से बाहर बता रहा था । अब तो जीने से अच्छा मर जाना है । ऐसे कोई सताता है क्या ? कहां गया वो वादा जीवन भर साथ निभाने का , बाहों में लिपटकर  जिंदगी बिताने का .... कहाँ गए वो पवन सिंह का गाना जो रात भर  नाईट ड्यूटी में सुनाया करते थे ।

मन मदहोश होके रहे नाही कश में
दिलवा भी हो गइल दोसरे के बस में
ओठवाँ  के ललिया कानवा के बलिया
अंखिया के रे कजरवा
लहरे ला ललकि ओढनिया ये रनिया
मजा लेता कारी रे बदरवा ।।

पंद्रह दिन गुजर चुके थे, एक दिन सुबह सुबह कॉल आया । घर मे सभी मौजूद थे इसलिए फ़ोन नही उठा सकी । 20-30 कॉल आने के बाद मोबाइल बन्द कर दिया । लेकिन रामलखन ने कॉल करना नही छोड़ा । दुपहरिया के 1 बजे फ़ोन किया तो दिल को सुकून मिला और ढेर सारी बात सेकेंडो में करने का मन कर रहा था ।

रामलखन :- देख फगुनिया, मैं तुमसे जबसे प्यार किया हू  दूसरी कोई अच्छी लगती ही नही । पता नही कौन सा जादू डाल दिया है तुमने ....

फगुनिया:- तुमको क्या पता 15 दिन मेरे कैसे गुजरे है ।

रामलखन :- क्या करोगी हमारी ड्यूटी ही ऐसी है 15 दिन के लिए आउटपोस्ट पर भेज दिया गया था जहाँ टावर नही था । हमे भी तुमसे इल्लु इल्लु करने का बहुत मन कर रहा था लेकिन बस में क्या था , क्या कर सकता था । बस तुम्हारे फ़ोटो को देखकर ही दिन गुजर जाता था ।

फगुनिया:- मैं भी रोज सुबह काली मईया और बरहम बाबा से तुम्हारे लिए मन्नत मांगती थी कि तुम फोन करो। मेरा दिल भी धड़क धड़क के अब कड़क चुका था ।

रामलखन :- मैं भी जब खाना खाने के लिए बैठता तो अक्सर बक्सर के पार्क भीउ ( Park view) में खाया हुआ वो दिन याद आ जा रहा था उस दिन तुम पिला कलर के सूट में जितनी खूबसूरत दिख रही थी कि क्या बताऊँ । पता है न हम दोनो को देखकर वो चारो लड़के कैसे घूर रहे थे । मन तो कर रहा था कि उन चारो को सबक दिखा दु पर तुम साथ थी, इसलिए छोड़ दिया ।

फगुनिया :- ( शर्माते हुए ) हाँ , पपुआ के तनाव भूल गए । जब पहली बार नैना 4 हुआ था । अपने दोस्तों के साथ कितना स्मार्ट लग रहे थे ।

रामलखन -ओह हो ।

फगुनिया :- तुम इस बात से भी इंकार करते रहे हो कि तुम मुझसे इश्क करते हो लेकिन मैं बखूबी जानती हूं कि पहली बार तुमने मुझे कब प्यार की नजर से देखा मुझे याद है पप्पूआ  मे तनाव में , जीजा जी को तो उसी समय शक हो गया था और तुम घूर घूर कर मुझे देख रहे थे । यह सब अचानक हुआ था एक दिन जब तुम मेरे अंदर कोई बात देखकर हैरान हो उठे थे। प्यार की राह के किसी और रास्ते पर ऐसी हैरान कर देने वाली बातें होती हैं क्या? इन्हीं हैरानियों में प्यार छुपकर आया। मुझे तुम इससे पहले नहीं जानते थे।

रामलखन :-  तुम और सुकून ने मुझे अपना कैदी बना लिया है, मुझे अपनी जिंदगी से जुदा कर दिया है।

फगुनिया:- सच मे एक बात बोलू ???
रामलखन :- बोलो

फगुनिया :- कब आ रहे हो मुझे तुम्हे देखने का बहुत मन कर रहा है ।

रामलखन :- बाबू जी तो बोले है कि गेहू के कटनी में आने के लिए क्योंकि उस समय तीनो भाइयों में मिलकर जल्दी काम कर लेते है पर तुम कहो ....कब आ जाऊ .... मेरा मन भी दशहरी के मेला में जिलेबी खाने को कर रहा है ।

फगुनिया :- हाँ एक बात तो बताना भूल गई । मेरे लिए भैया रिश्ता खोज रहे है । लड़का MBA किया है , फूफा जी ने रिश्ता बताया है । कैसे क्या कहूँ ?

रामलखन :- देख फगुनिया , जब बात जुबान की होती है तो जान की कीमत कम हो जाती है । मेरे सिवाय और कोई  तुम्हारा  होते हुए नही देख सकता । 

फगुनिया :- तो क्या मेरे लिए डोली लेकर आओगे ।

रामलखन :- तो क्या कोई शक है । .........

Wednesday 6 September 2017

बहे हिमाचल की हवा की ओर

शनिवार का दिन था, दिनभर की उधेडबुन से जैसे ही फुरसत मिला, शाम तकरीबन 0400 बजे रहे होंगे, बारिश के आसार भी लग रहे थे और हिमाचल से निकल रही हवा बदन की गर्मी से निजात व आनंद दे रही थी, वर्तमान अकल्पनीय है ।

एकाएक अंकित कुमार का फ़ोन आया, भैया आज का वीकली ऑफ डे बिस्तर पर पड़े पड़े गुजर गया ।कही घूमने चला जाये,  मैने भी रिप्लाई देने में देर नही की, तपाक से एक डिमांड रख दिया ।

।।जुलु बार की पार्टी देनी पड़ेगी ।।

जुलु बार एक  Ice cream का नाम है जो गुजरात का प्रोडक्ट है, स्पेशल डिमांड से लाता था और जब भी आपस मे कोई पार्टी की बात करता तो ICE CREAM का ही डिमांड होता था ।

बता दु की उस समय मेरी पोस्टिंग पंजाब के जिला रूपनगर  भाखड़ा नागल डैम पोस्टिंग था । अगर नांगल की बात करूं तो वहाँ की खूबसूरती अब तक कि लाइफ में शायद ही दिखा होगा क्योंकि प्रकृति की सारी खूबसूरती वहाँ मौजूद है ।
1.  18 KM की दूरी पर आनंदपुर साहिब जहाँ से सिख धर्म की स्थापना हुई थी और विश्व का 8 वॉ अजूबा बना है ।
2. 21 KM की दूरी पर माँ नैना देवी मंदिर जहाँ      आदिशक्ति माँ का आँख गिरा था ।
3. भाखड़ा नागल डैम महज 3 KM पर है, जो सतलज नदी पर बना है और अकेले 4 राज्यो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को सिंचाई का पानी देता है ।
4 . बाबा बालक नाथ का मंदिर  करीब 40 KM जो भगवान शिव शंकर का रूप है
5. आदि शक्ति ज्वाला माँ और चिंतपूर्णी माँ का मंदिर लगभग क्रमशः  40 KM और 48 KM की दूरी पर स्थित है ।

अभी नई HONDA ACTIVA स्कूटी को खरीदे हुए तीन दिन ही हुए थे और अंकित को अच्छी तरह चलाने भी नही आता था एवज से थोड़ा ज्यादा ही घूमने को लालायित था इसलिये बोला... कोई बात नही,तैयार हूं ।

फिर क्या था निकल पड़े .... नांगल से अजौली मोड़ से होते हुए ऊना हिमाचल की तरफ ..........

जब हम लोग ऊना पार कर लिए तो अंकित दूरी को सीमित नही करना चाहता था बोला आगे चलते है कहाँ क्या क्या है  

जिंदगी है एक सफर सुहाना , कल क्या होगा किसने जाना ।

अब हमलोग बाबा बालकनाथ रोड़ की तरफ निकल रहे थे , करीब15 KM की दूरी पर गए होंगे... झरने का दृश्य देखकर कुछ देर रुकना चाहे पर वहाँ कुछ लड़कियाँ पानी भरने के लिए घड़ा लेकर आ गई । सामने पहाड़ो का खूबसूरत नजारा था , दूर दूर तक केवल लाल बलुआ रंग के पहाड़ ही दिख रहे थे जिनमें उभरे दरारों को देखकर फ़ोटो लेने से खुद को नही रोक पाए । हालांकि यह हमलोगों का आखिरी पड़ाव नही था ।

रास्ते मे पहाड़ो का नजारा ।

आगे अंकित के अनुरोध करने पर उसे गाड़ी चलाने को दिया आगे रास्ता बिल्कुल बराबर था आगे 5 km गए होंगे कि सामने होटल दिखाई दिया, वहाँ से कोल्डड्रिंक और कुरकुरे लेकर निकल पड़े ....आगे 2 km की दूरी जाने के बाद पहाड़ो की चोटियों में काट काट कर बनाये गए रास्ते सिंगल रास्ते पर गाड़ी चलाना में डर तो लग रहा था परंतु मजा  आ रहा था जब 100 मीटर की चढ़ाई के बाद करीब 150 मीटर की दूरी ढलान में खुद स्पीड से चल रही थी ।

हिमाचल की खूबसूरती से रुबरु कराते हुए । वाकई दिलचस्प नजारा था ।

इस तरह करते हुए शाम के 7 00 बजे चुके थे।अब हमलोग देर हो चुके थे हालांकि सूर्यास्त होते होते हम ऊना पहुँच वापिस आ चुके थे । आकर ऊना समोसे और लस्सी का नास्ता किये और गाड़ी चलाने की कमान अंकित दिया ।

जैसे ही हम नांगल के अजौली मोड़ आये ,मुझे तो नही पर अंकित को किया हुआ वादा याद था । जुलु बार आइस क्रीम खाये और बाजार कर वापिस आ गए ।

दोस्तों जिंदगी में जो पल मित्रों के साथ बिताने को आये खुशी खुशी बिता लेना क्योंकि वही बीते कल में बदल जायेंगे, वैसे भी तो हम बचपन से अबतक बहुत दोस्त बनाये पर अब तक साथ किसका ???????

।। आभार ।।

Tuesday 5 September 2017

एक साधक सब सधे ।

      गुरु बिन ज्ञान अधूरा है ।

गुरु का मतलब होता है अंधेरा से दूर करने वाला । अगर सीधा अर्थ निकाले तो गुरु ऐसा ज्योति है जो अंधकार का मिटाकर उजाला दिलाता है । यह एक ऐसा उजाला देता है जिससे तन, मन, बुद्धि, विवेक, चरित्र सभी सद्गुण में बदल जाता है और जीवन को सार्थक, सदाचार, विश्वास, सगुण के साथ समृद्ध शक्ति देता है ।

वेदों में भी लिखा है गुरु की महिमा का वर्णन इतना बड़ा है जिसका बखान खत्म नही होती । 

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है,  साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर:

उपरोक्त पंक्ति यही स्पष्ट करती है कि  गुरु का स्थान खुद भगवान से भी बढ़कर है क्योंकि गुरु की ही शिक्षा दीक्षा से हमें ज्ञान और संस्कार मिलता है ।

कबीर दास जी कहते है ।

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥३॥

व्याख्या: गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।

लेकिन आधुनिक जमाने के गुरुओ की महिमा तो भगवान ही जाने क्योंकि आजकल सद्गुरु की पहचान करना  मुश्किल ही नही नामुमकिन है .... हाँ सच्चे शिष्यो की संसार मे कमी नही क्योंकि  गुरु के आडम्बर और अंधविश्वास में अपना जी जान लुटाने के लिए सड़क पर उतर आते है पर जब तक सच्चाई का पर्दाफाश होता है तब तक पछतावा करने का भी समय नही होता ।

                    कड़वा सच

काम क्रोध मोह लोभ और ईर्ष्या से संसार का कोई जीव परे नही है

इसलिए दुनिया को गुरु न बनाकर अपने माँ बाप और दादा दादी को ही गुरु समझकर सेवा करे ।

अभिवादन शीलस्य नित्यं वृधोपसेविनः
चत्वारि तस्य वर्द्यन्ते आयुर्विधा यसो बलं ।।।

      ।।आभार ।।

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