Saturday 9 September 2017

।। हिंदी हमारी बिंदी है ।।

दोस्तों, आज फैशन,सुविधा और तकनीकी के बदलते परिवेश में हर कोई खुद को अपडेट रखने में व्यस्त है और ऐसी होड़ हमारे भविष्य को धनवान व सुविधा तो प्रदान करती है पर कही न कही यह हमें अपनी गुलामी के जंजीरो में बांधकर अनमोल सभ्यता संस्कृति, विरासत व साहित्य से कोसो दूर करती जा रही है । इसमें पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यवहारीक जीवन का घोर अभाव है ।

जी हाँ, हम वही बात करना चाहते है "अपनी भाषा हिंदी का", जिसमे हम पल बढ़ कर अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण समय बिताए है ।

।। हिंदी भारतीय समाज की बिंदी है ।।

भारतीय माताओं और बहनों के श्रृंगार का बिंदी एक बेहद ही महवपूर्ण श्रृंगार है । इसका मोल तो बहुत ज्यादा नही पर यह वही सुंदरता भर देता है जो  सुहागा सोने में  मिलकर उसकी चमक भर देता है । 

हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधीब्रजभाषाकन्नौजीबुंदेलीबघेलीभोजपुरीहरयाणवीराजस्थानीछत्तीसगढ़ीमालवीझारखंडीकुमाउँनीमगही आदि। किन्तु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।

आज हिंदी भाषाईयो के द्वारा उपेक्षा किये जाने के बाद भी विश्व पटल पर अंग्रेजी और पिंडारी के बाद हिंदी बोलने वाले तीसरे स्थान पर है और साल 2001 के आंखड़ो का आधार ले तो कुल 1 अरब लोग हिंदी बोलते है ।

कल मुझे बहुत दुख हुआ जब एक वरिष्ठ संपादक ने क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी को अश्लीलता और परिश्रमी श्रेणी के कामगारों की भाषा का नाम देकर प्रयोग कर किया । सच कहूँ तो दिल कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गया पर कुछ देर के बाद मेरे मन मे एक सवाल पैदा हुआ ।

आज भोजपुरी ही नही, आनेवाले समय मे जिस तरह से हमारा समाज अंग्रेजी, फ्रेंच, कनेडियन इत्यादि भाषाओ को जोर शोर से सीख रहे है । क्या आने वाले समयो में हिंदुस्तान ही हिंदी को सम्मान की नजरों से देख पाएंगे ????????

हिंदी प्रदेश की तीन उपभाषाएँ और हैं - बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी हिंदी।

बिहारी की तीन शाखाएँ हैं - भोजपुरी, मगही और मैथिली। बिहार के एक कस्बे भोजपुर के नाम पर भोजपुरी बोली का नामकरण हुआ। पर भोजपुरी का प्रसार बिहार से अधिक उत्तर प्रदेश में है। बिहार के शाहाबाद, चंपारन और सारन जिले से लेकर गोरखपुर तथा बारस कमिश्नरी तक का क्षेत्र भोजपुरी का है। भोजपुरी पूर्वी हिंदी के अधिक निकट है। हिंदी प्रदेश की बोलियों में भोजपुरी बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक है। इसमें प्राचीन साहित्य तो नहीं मिलता पर ग्रामगीतों के अतिरिक्त वर्तमान काल में कुछ साहित्य रचने का प्रयत्न भी हो रहा है। मगही के केंद्र पटना और गया हैं। इसके लिए कैथी लिपि का व्यवहार होता है। इसमें कोई साहित्य नहीं मिलता। मैथिली गंगा के उत्तर में दरभगा के आसपास प्रचलित है। इसकी साहित्यिक परंपरा पुरानी है। विद्यापति के पद प्रसिद्ध ही हैं। मध्ययुग में लिखे मैथिली नाटक भी मिलते हैं। आधुनिक काल में भी मैथिली का साहित्य निर्मित हो रहा है।

राजस्थानी का प्रसार पंजाब के दक्षिण में है। यह पूरे राजपूताने और मध्य प्रदेश के मालवा में बोली जाती है। राजस्थानी का संबंध एक ओर ब्रजभाषा से है और दूसरी ओर गुजराती से। पुरानी राजस्थानी को डिंगल कहते हैं। जिसमें चारणों का लिखा हिंदी का आरंभिक साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी में गद्य साहित्य की भी पुरानी परंपरा है। राजस्थानी की चार मुख्य बोलियाँ या विभाषाएँ हैं- मेवातीमालवीजयपुरी और मारवाड़ी। मारवाड़ी का प्रचलन सबसे अधिक है। राजस्थानी के अंतर्गत कुछ विद्वान्‌ भीली को भी लेते हैं।

पहाड़ी उपभाषा राजस्थानी से मिलती जुलती हैं। इसका प्रसार हिंदी प्रदेश के उत्तर हिमालय के दक्षिणी भाग में नेपाल से शिमला तक है। इसकी तीन शाखाएँ हैं - पूर्वी, मध्यवर्ती और पश्चिमी। पूर्वी पहाड़ी नेपाल की प्रधान भाषा है जिसे नेपाली और परंबतिया भी कहा जाता है। मध्यवर्ती पहाड़ी कुमायूँ और गढ़वाल में प्रचलित है। इसके दो भे हैं - कुमाउँनी और गढ़वाली। ये पहाड़ी उपभाषाएँ नागरी लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें पुराना साहित्य नहीं मिलता। आधुनिक काल में कुछ साहित्य लिखा जा रहा है। कुछ विद्वान्‌ पहाड़ी को राजस्थानी के अंतर्गत ही मानते हैं।

अभी भी समय है कि हम अपने मातृ भाषा हिंदी के व्याकरण को जानें । हम दावा करते है कि जो भाषा की माधुर्य रस और संस्कार  हिंदी  दे सकती वह किसी कीमत पर अन्य नही ।

साथ ही यह कहना चाहूँगा कि भारतीय हिंदी में ही सभ्यता और संस्कृति का राज घुला हुआ है और अगर इसी तरह से भारतीय समाज हिंदी की अवहेलना करेगा तो वह दिन दूर नही जब प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रम खुला हुआ मिलेगा ।

हम हिंदी दिवस पर ही केवल हिंदी को महत्व न देकर हिंदी की स्नेहक मधुरता को विश्व मे फैलाये ताकि हमें गौरवशाली भारत में होने का गर्व हो ।

सुजीत कुमार पाण्डेय छोटू

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