खेतो में सरसों के फूल खिल चुके थे और गेहूं भी फूल लेने को तैयार थे, फागुन के बयार से फगुनिया का मन भी फगुनहटा की हवा में बह जाने को बेकरार था और रामलखन का फ़ोन आये पांच दिन हो गए थे, मन मे तरह तरह के सवाल पैदा हो रहे थे ।
जो रामलखन रोज दिन भर में 8-10 बार फ़ोन किया करता था, आजकल ऐसे क्यों करने लगा? कही दूसरा तो चक्कर नही चल रहा है ? घर वालो से डॉट तो नही पड़ी है या ड्यूटी सीमा पर है तो कुछ गलत तो नही हो गया। इसी उहापोह भरे सवालों से उलझी फगुनिया काली माई और शिव जी से कुशलक्षेम के लिए मन्नत मांग ली कि शुभ समाचार मिलते ही प्रसाद चढ़ाऊंगी ,का दिन और रात बैचनी में बीतने लगा ,रोज दिन भर में चार पांच लभ लेटर लिखती पर भेजती किस पता पर ?? , फाड़कर फेक देती । लेकिन बेताबी का हाल ऐ दिल बताये तो किस से ... हाँ पड़ोस की पिंकी से दिल की बात करती तो वो भी आज कल नाराज चल रही थी । नाराज भी क्यों न रहे, पिंकी का भी प्यार का परवान चढ़ कर गेंदा के फूल की तरह मुरझा चुका था और प्यार वार से भरोसा उठ चुका था क्योंकि उसके राजू की शादी तय हो चुकी थी । जो राजू पिंकी के लिए जान भी हाजिर करने को तैयार रहता था, बड़े भाई और पिता जी की मार के बाद आँख उठाकर भी नही देखता था । भला ऐसे प्यार का क्या नाम दिया जाय । पिंकी कैसी लड़की थी जो सब कुछ भुलाकर भाग जाने को भी तैयार थी पर डरपोक राजू कुछ नही किया ।
फगुनिया के दिनभर में सैकड़ो फ़ोन करने के बाद भी मोबाइल में केवल "डायल किया हुआ नंबर बंद है या कवरेज एरिया से बाहर बता रहा था । अब तो जीने से अच्छा मर जाना है । ऐसे कोई सताता है क्या ? कहां गया वो वादा जीवन भर साथ निभाने का , बाहों में लिपटकर जिंदगी बिताने का .... कहाँ गए वो पवन सिंह का गाना जो रात भर नाईट ड्यूटी में सुनाया करते थे ।
मन मदहोश होके रहे नाही कश में
दिलवा भी हो गइल दोसरे के बस में
ओठवाँ के ललिया कानवा के बलिया
अंखिया के रे कजरवा
लहरे ला ललकि ओढनिया ये रनिया
मजा लेता कारी रे बदरवा ।।
पंद्रह दिन गुजर चुके थे, एक दिन सुबह सुबह कॉल आया । घर मे सभी मौजूद थे इसलिए फ़ोन नही उठा सकी । 20-30 कॉल आने के बाद मोबाइल बन्द कर दिया । लेकिन रामलखन ने कॉल करना नही छोड़ा । दुपहरिया के 1 बजे फ़ोन किया तो दिल को सुकून मिला और ढेर सारी बात सेकेंडो में करने का मन कर रहा था ।
रामलखन :- देख फगुनिया, मैं तुमसे जबसे प्यार किया हू दूसरी कोई अच्छी लगती ही नही । पता नही कौन सा जादू डाल दिया है तुमने ....
फगुनिया:- तुमको क्या पता 15 दिन मेरे कैसे गुजरे है ।
रामलखन :- क्या करोगी हमारी ड्यूटी ही ऐसी है 15 दिन के लिए आउटपोस्ट पर भेज दिया गया था जहाँ टावर नही था । हमे भी तुमसे इल्लु इल्लु करने का बहुत मन कर रहा था लेकिन बस में क्या था , क्या कर सकता था । बस तुम्हारे फ़ोटो को देखकर ही दिन गुजर जाता था ।
फगुनिया:- मैं भी रोज सुबह काली मईया और बरहम बाबा से तुम्हारे लिए मन्नत मांगती थी कि तुम फोन करो। मेरा दिल भी धड़क धड़क के अब कड़क चुका था ।
रामलखन :- मैं भी जब खाना खाने के लिए बैठता तो अक्सर बक्सर के पार्क भीउ ( Park view) में खाया हुआ वो दिन याद आ जा रहा था उस दिन तुम पिला कलर के सूट में जितनी खूबसूरत दिख रही थी कि क्या बताऊँ । पता है न हम दोनो को देखकर वो चारो लड़के कैसे घूर रहे थे । मन तो कर रहा था कि उन चारो को सबक दिखा दु पर तुम साथ थी, इसलिए छोड़ दिया ।
फगुनिया :- ( शर्माते हुए ) हाँ , पपुआ के तनाव भूल गए । जब पहली बार नैना 4 हुआ था । अपने दोस्तों के साथ कितना स्मार्ट लग रहे थे ।
रामलखन -ओह हो ।
फगुनिया :- तुम इस बात से भी इंकार करते रहे हो कि तुम मुझसे इश्क करते हो लेकिन मैं बखूबी जानती हूं कि पहली बार तुमने मुझे कब प्यार की नजर से देखा मुझे याद है पप्पूआ मे तनाव में , जीजा जी को तो उसी समय शक हो गया था और तुम घूर घूर कर मुझे देख रहे थे । यह सब अचानक हुआ था एक दिन जब तुम मेरे अंदर कोई बात देखकर हैरान हो उठे थे। प्यार की राह के किसी और रास्ते पर ऐसी हैरान कर देने वाली बातें होती हैं क्या? इन्हीं हैरानियों में प्यार छुपकर आया। मुझे तुम इससे पहले नहीं जानते थे।
रामलखन :- तुम और सुकून ने मुझे अपना कैदी बना लिया है, मुझे अपनी जिंदगी से जुदा कर दिया है।
फगुनिया:- सच मे एक बात बोलू ???
रामलखन :- बोलो
फगुनिया :- कब आ रहे हो मुझे तुम्हे देखने का बहुत मन कर रहा है ।
रामलखन :- बाबू जी तो बोले है कि गेहू के कटनी में आने के लिए क्योंकि उस समय तीनो भाइयों में मिलकर जल्दी काम कर लेते है पर तुम कहो ....कब आ जाऊ .... मेरा मन भी दशहरी के मेला में जिलेबी खाने को कर रहा है ।
फगुनिया :- हाँ एक बात तो बताना भूल गई । मेरे लिए भैया रिश्ता खोज रहे है । लड़का MBA किया है , फूफा जी ने रिश्ता बताया है । कैसे क्या कहूँ ?
रामलखन :- देख फगुनिया , जब बात जुबान की होती है तो जान की कीमत कम हो जाती है । मेरे सिवाय और कोई तुम्हारा होते हुए नही देख सकता ।
फगुनिया :- तो क्या मेरे लिए डोली लेकर आओगे ।
रामलखन :- तो क्या कोई शक है । .........
वाह! आप तो एकदम प्रेमचन्द की तरह लिख रहे है।
ReplyDeleteअभी तो सफर शुरू हुआ है ।
ReplyDeleteWelcome abhishek ji
ReplyDeleteभाई कहानी इस तरह खण्ड में मत लिखो पढ़ने वाले इंतेज़ार में दुबले हो जाएंगे... खूबसूरत कहानी ... कही भी बोर नही कर रहा ... Post next part as soon as possible...We r waiting
ReplyDeleteआभार ।। प्रयास करूँगा , भाग 3 इससे भी बेहतर हो ।
Deleteबढ़िया कहानी ।
ReplyDeleteआभार आपका । आपकी लेखन से मैं बहुत प्रभावित हूँ और सारे पोस्ट देखता हूँ । प्रयास कर रहा हूँ ...🙏🙏
Delete