Monday 19 March 2018

ललकी गमछी

#ललकी_गमछी
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ललकी गमछी बड़ी काम की
ख्याति इसकी गजब नाम की।
सर पे रखो तो ताज हैं,
समाज का मान-मरजाद है।
गले में रखो तो हार हैं,
भोजपुरिहा का उपहार हैं ।
बोझ सहने में सहायक हैं,
सुखद, सहज और लायक हैं ।
कमर में बाँधों कमरबंद बनती हैं
फुरती, साहस और जुनून भरती हैं ।
नहाने के बाद मुख्य जरूरत हैं,
सोचो इसकी कितनी अहमियत हैं ।
ज़ख्म को बाँधने में सहायक हैं,
बोझ बाँधने में भी एकदम लायक हैं ।
         
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sujit1992.blogspot.com

Friday 9 March 2018

एक यात्रा ऐसा भी ।

#एक_यात्रा_ऐसा_भी

आज निकला मैं स्टेशन के लिए
साथ में था दो बड़ा-बड़ा सा बैग
मेट्रो  से जाने  का नहीं  था मन
यूँही निकले रिक्शे के लिए हम ।

बार-बार रिक्शेवाले आते-जाते
पूछते,  चलना है  क्या स्टेशन ?
मैं भी पूछता जाने क्या लोगे?
चालीस पचास रुपये सुनकर!

मैंने बोला बीस रुपये लोगे क्या?
सब आते घूमते हुए निकल जाते
हुआ नहीं कोई राजी छोड़ एक
पचास साल के बूढ़े पुराने बाबा ।

हुआ मैं सवार उस रिक्शे पर
रास्ते में था ट्रैफिक घनघोर
बचते-बचाते धीरे-धीरे चलते
फिर रुकते,फिर चलते-रुकते ।

रास्ते में दूसरे गाड़ी वालों की
यदा-कदा बात भी सुनते हुए
पल भर में दिमाग अड़ गया
भई,ऐसी भी क्या जिंदगी है?

अवाक हुआ  इस सवारी से
पैर के जोर निरंतर देख कर
बूढ़े बाबा की पगड़ी सरकती
किसी तरह स्टेशन पहुँचाती।

याद किया अपना एक दिन
रोटी मुश्किल होती दो जून
जिंदगी लगी सच में जंग हैं
ट्रैफिक में दुर्घटना क्या कम हैं?

दिये निकाला  रुपये पचास
उनको नहीं थी इतनी आस
सन्तुष्ट हुआ पहले उतरकर
देख उनका मन टटोलकर ।

वास्तव में बहुत गरीब हैं हम और हमारा समाज ।

एक यात्रा ऐसा भी ।

#एक_यात्रा_ऐसा_भी

आज निकला मैं स्टेशन के लिए
साथ में था दो बड़ा-बड़ा सा बैग
मेट्रो  से जाने  का नहीं  था मन
यूँही निकले रिक्शे के लिए हम ।

बार-बार रिक्शेवाले आते-जाते
पूछते,  चलना है  क्या स्टेशन ?
मैं भी पूछता जाने क्या लोगे?
चालीस पचास रुपये सुनकर!

मैंने बोला बीस रुपये लोगे क्या?
सब आते घूमते हुए निकल जाते
हुआ नहीं कोई राजी छोड़ एक
पचास साल के बूढ़े पुराने बाबा ।

हुआ मैं सवार उस रिक्शे पर
रास्ते में था ट्रैफिक घनघोर
बचते-बचाते धीरे-धीरे चलते
फिर रुकते,फिर चलते-रुकते ।

रास्ते में दूसरे गाड़ी वालों की
यदा-कदा बात भी सुनते हुए
पल भर में दिमाग अड़ गया
भई,ऐसी भी क्या जिंदगी है?

अवाक हुआ  इस सवारी से
पैर के जोर निरंतर देख कर
बूढ़े बाबा की पगड़ी सरकती
किसी तरह स्टेशन पहुँचाती।

याद किया अपना एक दिन
रोटी मुश्किल होती दो जून
जिंदगी लगी सच में जंग हैं
ट्रैफिक में दुर्घटना क्या कम हैं?

दिये निकाला  रुपये पचास
उनको नहीं थी इतनी आस
सन्तुष्ट हुआ पहले उतरकर
देख उनका मन टटोलकर ।

वास्तव में बहुत गरीब हैं हम और हमारा समाज ।

Wednesday 7 March 2018

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस ।

मैं नारी हुँ!
मेरा कोई अस्तित्व नहीं ।

मैं जन्म की जननी हूँ,
पालन करती हुँ, पोषण करती हूँ,
भूखे तन को तृप्त करती हूँ तन से ।
रोते हुए बच्चे को गले लगाती हुँ,
सर सहलाती हुँ,आँचल का अम्बर बनाती हुँ
लोरिया सुनाती हुँ खुद जग-जगकर ।
मैं एक नारी हुँ!
मेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
जिस घर में पैदा लेती हूँ,
बोझ बनती हुँ, बिन भविष्य के सुन,
सहती हुँ हर चिर-वियोग और ताने-बाने
आजाद नहीं इस खगोल पर
चौखट के अंदर सब सहती हुँ,
रीति-रिवाजों की कड़ियों से बंधी सुलगती
मैं एक नारी हुँ!
मेरा कोई अस्तित्व नहीं।
किसी ने मेरी अस्मिता लूटी
देख उसे किसी ने त्याग किया
पत्थर शिला को देख किसी ने उद्धार किया
बस यही मेरी कहानी है ।
अब देर नहीं, सबेर नहीं
तोड़ूंगी हर बंधन को मैं
नित नए रूप दिखाउँगी 
दैत्यों को सबक सिखाऊँगी
मैं नारी हुँ!
मेरा कोई अस्तित्व नहीं ।

Sunday 4 March 2018

दो राजधानियों की प्रेम कहानी ♥️👇👇

दो राजधानियों की प्रेम ♥️ कहानी
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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है. क़िरदार की भूमिका कहानी से अगर कुछेक अंश भी मिलती हैं तो लेखक को बड़ी खुशी होगी ।

ख्वाबों की दुनिया में चलते हुए अगर कदमों की चाल हकीकत में तब्दील होने लगे। नींबू जैसा मन पपीता की तरह पीला और बड़ा होने लगे तो वही अहसास है प्यार का.... 

वक़्त नदी है, दोनों छोर क्रमशः किनारे का रूप हकीकत और ख़्वाब होते है। एक छोर से दूसरे छोर के बीच उम्मीदों का बांध बाँध तो सकते है पर टिकना संभव कहाँ?

दरअसल यह कहानी दो जीव, दो दिल, दो जिस्म या दो जिंदा दिली प्रेमी-प्रेमिका का ही नहीं है अपितु दो राजधानियों का मिलन है। दिल्ली हमारे देश की राजधानी हैं और लखनऊ भी यूपी की। आज यही दो राजधानियों के बेमेल दो दिलों की हाल-ए-दास्तां सुनाता हूँ ।
कहते है कि किसी प्यार किसी धर्म, सम्प्रदाय, बड़ा-छोटा,कृत-विकृत या गोरा-काला में विभेद नहीं करता, यह तो एक जादू है जो एहसासों के तवे पर पकना शुरू होता है और पकते-पकते किसी का उतर जाता है या किसी को जीवन भर पकाता है।
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संगीत की दुनिया अजीब है दोस्तों। क्या खूब अपनी आवाज से दिल तक अपनी बातों को मनवाने लगता है, लोकतांत्रिक देशों में भी एक अलग सा साम्राज्य स्थापित करने के सपनें सजाने लगता है। जैसे कि मैं उसके दिल का राजा होता, वो हरपल मेरे बारे में सोचती रहती और मैं उसके। जब इश्क़ का सुरूर चढ़ता है तो सोचने का पैमाना लुल हो जाता है ।

याद करा दूँ, दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है । इसका उल्लेख महाभारत काल में हुआ है जब हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने पांड्वो को इसी के आसपास का क्षेत्र दिया था, तब वे इस नगर को बसाये थे और इन्द्रप्रस्थ नाम दिए थे।  कालान्तर में इसकी गरिमा दिल्ली सल्तनत के नाम हुई, परंतु यह अभिशाप रहा इसकी बागडोर बदलती रही। कहते है, यहाँ की भूमि रक्त से सिंचित है। सत्ता की लालच लिए लाखों लोगों की बलि बनी यह धरा.... हम तो दिल्ली को मिर्जा ग़ालिब के शहर  से जानते है। जो इस शहर को शायरी की दुनिया से रूबरू कराया, हर नौजवानों की जुबां इनकी अभी भी पकड़ है।

नदी का दूसरा छोर, लखनऊ भी अपने अतीत काल से ही विख्यात रहा है। प्राचीन कोसल राज्य, जो भगवान राम के अधीन था, को लक्ष्मण जी को समर्पित किये थे और लक्ष्मणपुर  से नाम बदलकर लखनऊ बना । यह नबाबों का शहर है, नवाब आसफ़ुद्दौला ने इसे समृद्ध किया। यह शहर  चिकन कढ़ी, और आम उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के मशहूर शायर मजाज लखनबी, मात्र 44 साल धरा पे रहकर अपने शायरी में जो अद्वितीय प्रसिद्धि पाई वो उल्लेखनीय है ।  कवि कुमार विश्वास जी कहते है कि इनकी लिखी किताब उस समय  एक दिन के लिये ही खास खास लोगो को मिलती थी, तब आज के जैसा युग नहीं था, वरन कॉपी पेस्ट मारकर घर-घर मे सैकड़ो प्रतियां होती ।

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अरे, हम असली कहानी तो भूल गये थे।
जैसा की ऊपर बताया दोनो शहर महाभारत और रामायण का हिस्सा रहा है, उसी तरह दोनों राजधानियों की प्रेम कहानी भी बिल्कुल माधुर्यता, सम्मोहक, और उत्कटपूर्ण है ।

रविआ की जिंदगी भी कुछ इसी कदर गुजर रही थी। नये सपनें थे, नई उमंगे थी और पहली बार असल प्यार की जिंदगी में जीने अहसास हुआ था। पिछले एक महीना से न तो खाना-पीना नीक लग रहा था और न ही नींद आ रहा था, बस मोबाइल में पता नहीं क्या क्या टिप-टॉप करते रहता । दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी करने वाला रबी होली में घर आया। परिवार वाले बहुत खुश थे, गाँव के लड़के भी खुश थे कि होली खेलने वाला दोस्त घर आया है।  रबी की आधी रात तन्हाई में गुजर रहा था। मन की हिलोरें झोंके से चलती फिर एकाएक शांत हो जाती। होली के दिन वो घर में ही दुबके रहा और मोबाइल में ही लगा रहा। दादी को लग रहा था कि आज कल की डिजिटल इंडिया में पढ़ाई की वजह से मोबाइल पर ही पढ़ रहा होगा। मोबाइल की पढ़ाई में तल्लीन देखकर पूरे घर वाले आस लगाए है कि रबिया कोई अच्छा जॉब पकड़ेगा।
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रवि अपने कोचिंग का सबसे टॉपर लड़का है। हर सवाल को बखूबी सॉल्व कर देता, लूसेन्ट तो मुंहजबानी याद है। लेकिन इस बीच दो महीना के लिए आई पूर्णिमा की नजर रबि पर पड़ी, फिर क्या था । नजर की नजाकत ने ऐसा नजरिया बदला की नजरें बदल गई।
दो महीना दो दिन की तरह गुजरा, बीसवें दिन एक दूसरे की निगाहें नाज़िर हुई और सप्ताह में पाँच दिन का क्लास शनि, रवि की छुट्टी,गई तो गई, पर छीन गई सुनहले सपनें, आंख का सूकून, तन का चैन और एक पहाड़ सा दर्द का मंज़र..........
छोड़ गई वो पिंक हेयर क्लिप जो पीछे से दूसरे बेंच से  एक पराबैगनी किरणें निकलकर आ रही थी, जो सिर्फ उसे ही आकर दिखती और उसकी बात बात पर अवरोध करने वाली बीमारी ..असल में वो बीमारी नहीं थी, वही तो था सुकून देने वाला पल, कलेजे को ठंडक पहुँचाने वाली आवाज और नटखटी निराली अंदाज़ जिसे सुनकर ऐसा महसूस होता जैसे राजस्थान के मरुस्थल में बाढ़ आ गया है, मरुस्थल में मरे घास-पात, पेड़ पौधे अब जी गए है, ठूठ शिरीष और बबूल के पेड़ो में भी हरियाली आ गई हो!

वो बीता हुआ शुक्रवार का शूकर है जिंदगी भर याद रहेगी, उस मिरजई आंखें और वह अदा जिसका शिकार था रवि।  जब एक हल्की मुस्कान के साथ रास्ते से गुज़री और बोली...

Hi,,, ravi
How r u????
Meet me after class......

रवि के चेहरे से तो अवरक्त किरणें निकल रही थी, जो छन में सबको जलाकर प्यार की एक जिंदगी जीने का मजबूर कर रही थी। उसकी पिंक जूतियाँ, पिंक टीशर्ट और पिंक हेयर क्लिप जिसकी त्रिविमीय किरणों से बने केंद्र उसकी आँख थी, रेखा खण्ड को कितने डिग्री का कोण बना रही है, सोचने में डूब गया ।

क्लास खत्म होने के बाद मिनट भर के लिए भेंट हुआ । हाथों से हाथ इस तरह कस के पकड़ा जैसे कि इसकी छुअन जिंदगी भर भूले नहीं, फिर क्या था, कमीने दोस्तो ने आवाज लगा दी। रबी का मुंह पूरी तरह लाल हो चुका था। खरबूजे का पकना भला कौन नहीं पहचाने।  बस क्या था, उसी दिन से इश्क़ में गिरफ्तार हुआ,अब कैदी बना चुका था। हर सोच पूर्णिमा से ही शुरू और खत्म हो जाती । वो उसके जाने का दिन था पर कमीने दोस्तों की वजह से ठीक से नहीं मिल पाया था । 10 दिन बाद ट्विटर अकाउंट पर एक फॉलो आया, देखा तो लिखा था,
Purnima Sharma follow u.......
आगे के लिए थोड़ा इंतज़ार करें
मन का राही
गोप भरौली, बक्सर