Wednesday 6 May 2020

मच्छड़ हूँ!!

#मच्छड़_हूँ!!

रहता हूँ रातभर  टिका निरंतर
जाल पर अपनी आस टिकाकर
मन को एकदम दृढ़निश्चयी कर 
अबकी बार पेट भर लूँगा, मच्छड़ हूँ!!

हर शाम को जज्बे में आकर
लोगों को पहले धमका कर
जोर-जोर स्वर तान सुनाकर
लोगों को शंकित कर जाता हूँ, मच्छड़ हूँ!!

जब लोगों के पास मैं जाता हूँ
अपनी याचना सुनाता हूँ,
पुरजोर गुहार लगाता हूँ 
अंतिम संकल्प बताता हूँ, मच्छर हूँ!!

भूखे पेट की बात बताता हूँ
मिनट भर पास सटने दो तुम
मेरी भूख जरा मिटने दो तुम
मेरी अतृप्त प्यास बुझा दो तुम, मच्छर हूँ!!

दृग के आँसू बरसाता हूँ
पर लोग कहाँ सुनने वाले 
चट एक थाप लगाते हैं
फिर किसी तरह बच जाता हूँ, मच्छर हूँ!!

फिर मैं तो ठहरा स्फूर्ति दार
समाज में था एकदम बेकार
कोई भी हक़ मुझे दे न सका
अपना कलंक अब धो न सका, मच्छर हूँ!!


जब देह में होती भूख की तड़प
निकलने लगती हैं प्राणों से रूह
अब अंतिम कोशिश कर जाता हूँ 
क्रोधित हाथों से कुचला जाता हूँ, मच्छर हूँ!!

सु जीत पाण्डेय छोटू

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