Friday 20 September 2019

पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!

पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!

कमली अपने चार भाई-बहन में दूसरे नंबर की थी। बहुत नटखटी, बातूनी और पूरे घर की दुलारी.. बात भी करती तो तुनक तुनक कर ऐसे जैसे सबकी नानी हैं।
अभी आठ बरस की ही थी कि पढ़ाई के साथ रसोई में मम्मी के सारे कामों में हाथ बटाती थी और सबसे मेन काम था उसका बरतन माँजना. ऐसे भी बच्चों की सहनशक्ति और व्यवहार को माँ बाप पहले ही भाँप लेते हैं और उसी के अनुसार उसे काम दिया जाता हैं।
रामेश्वर बड़का बाबूजी के घर से रोज दूध लाना हो या घर में कभी नमक, कभी हरी मिर्च या फिर धनिया पता आदि घर में न रहने पर पड़ोस से उधार लाने के लिए उसे ही अक्सर भेजा जाता। अपने घर के साथ-साथ आस पड़ोस की भी वह लाड़ली थी।
घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.पापा खेती-बधारी करते थे जिससे साल भर के लिए अनाज तो हो जाता लेकिन कभी कुछ पैसे की भी जरूरत पड़ती तो अनाज दो-तीन बोड़ा बेचने के बाद ही घर का काम चलता।
अब धीरे-धीरे चारो भाई बहन बड़े हो गए थे।  भाई था जो स्नातक करने और भर्ती के लिए भाग दौड़ करने के बाद भी कोई जॉब नहीं मिल रहा था. बड़ी बहन शादी करने के लायक भी हो गई थी और ऐसे में घर को एक ठोस आर्थिक मदद की जरूरत थी.
बड़ी बहन की शादी काफी रुपया पैसा कर्ज लेने के बाद संभव हुई अब तक उसके समझ में इतनी बात तो घर कर गई थी कि अब आगे की स्थिति और भी विकट आने वाली हैं।
बिना किसी ट्यूशन के ही बारहवीं (प्लस-टू) की पढ़ाई पास की, वह भी अच्छे नम्बर से.. सब उसकी बौद्धिक क्षमता से अवाक थे।
घर की परिस्थितियों से विवश आत्मबल से खड़ा होने की ठानी..उसे देश के लिए सेवा करने का बहुत मन था.. जब भी गाँव के लड़कों को सेना की वर्दी देखती उसका भी मन भी करता की
काश!
मैं भी देश की सेवा करती, बर्दी पहनती, 26 जनवरी के दिन राजपथ पर जैसे बाकी लड़कियां सैल्यूट करती हैं, मैं भी करती और घर की सारी जिम्मेदारियां चाहे दादी की इलाज का खर्च हो या बड़ी बहन की शादी में गिरवी रखीं ज़मीन को वापिस लेना, सबकुछ उठा लेती।
किसी सहेली से मालूम चला कि  सिपाही पद की भर्ती निकली हुई हैं..उम्र अभी हाल ही में 18 बरस की हुई थी लेकिन घर में किस से कहे कि मैं सेना में भर्ती होना चाहती हूँ..
किसी तरह साहस जुटाकर मम्मी से बताई और बात पूरे घर मे फैल गई...
लड़की को पुलिस/ सेना में जाना घर पर इज्ज़त के धब्बा जैसा था. खबर बड़े भाई के कान में पहुँची तो आकर खूब डांट फटकार लगाया लेकिन कमली की जिद्द के आगे उसका गुस्सा सिफर था और माँ ने हामी भर दी..
भरने दो जब इसका मन हैं तो.. मनमोहन चाचा की लड़कियां पुलिस में ही न है.. जरूरी थोड़ी है कि फॉर्म भरेगी और जॉइनिंग हो ही जायेगा..
धीरे-धीरे समय बिता और वह सभी फिजिकल के ईवेंट्स में पास कर खुशी खुशी घर लौटी साथ में उसके पापा भी थे.. वे भी बेटी की करतब और साहस से खुश थे लेकिन बड़ा भाई थोड़ा दुखी था।
मार्च का 19 तारीख पूरे घर के लिए एक सुखद संदेश लेकर आया.. डाक बाबू एक चिट्ठी लेकर घर आया और दूर से कमली को देखते ही जोर से चिल्लाया..
अरे कमली तू तो सिपाही बन गई.. पापा तुम्हारे कहाँ हैं?? उनसे मिठाई खाना बाकी  हैं बस.
कमली को अगले महीने की 10 तारीख को हैदराबाद ट्रेनिंग के लिए जाना था.. घर में कभी खुशी कभी गम का माहौल था.. ससुराल जाकर रुलाने वाली लड़की पिछले चार दिन से पुरे परिवार को रुला रही थी..
जॉइनिंग में जाने के लिए दु बोड़ा गेंहू बेचकर नया बैग, ब्रश कोलगेट, हॉर्लिक्स, किसमिश, चना और कुछ कपड़ों सहित उसका सबसे प्रिय एक बोतल आम का आचार रखा गया।
बाप बेटी घर से ट्रेनिग के लिए रवाना हुए और रोया घर के साथ साथ पूरा आस पड़ोस.. इतनी छोटी उमर में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलना बहुत बड़ी बात थी..
रुलाई से निकली यह आँसू किसी ससुराल की विदाई से कम नहीं था.. कमली किसी तरह पूरे परिवार को समझाती रही और पर भाई की आँख से आँसू देखकर खुद को नहीं रोक पाई..
क्या करूँ मैं??
न जाऊँ...
भाई भी विवश था बहन को भेजने के लिए अब इतना दूर जहाँ उसकी बहन का ख्याल रखने वाला कोई अपना न था..माँ के जोर जबर्दस्ती करने पर किसी तरह से की-पैड वाला सैमसंग का मोबाइल दिया पर उसमें डलने वाला सिम उसके प्यार को नम कर देने वाला था..
आँसू पोछते हुए बैग उठाया और भारी पैर रखते हुए बस स्टेशन और उसके बाद दानापुर स्टेशन पहुँचा..
गाड़ी तीन घंटे लेट थी..
बहुत सारी बातें हुई. भाई लगातार समझाते बुझाते रहा कि गाड़ी के आने का अनाउंस हो गया..
बाप बेटी के साथ ट्रैन में आगे चलकर और भी कुछ लड़कियाँ और उसके परिजन दिखे..उनकी आपस मे भेंट मुलाकात हुई.. और अब धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा था.. इतनी लड़कियों को देखकर बाप के मन मे कुछ सुकून और अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था.
गाड़ी अपने गंतव्य पर पहुँचने को थी ही कि कमली अपने सारे समान इकठ्ठा कर लिया.. एक एक कर रही बेटी की गतिविधि को पापा गौर से देख रहे थे.. और मन ही मन कह रहे थे.
मेरा एक बेटा नहीं, दो बेटे हैं।
अन्ततः ट्रेनिंग सेंटर के गेट पर जब सामान लेकर सभी लड़कियां गेट के भीतर जा रही थी और उनके परिजन भावुक होकर नमी आखों से बेटियों को विदा कर रहे थे..
हरदम हँसकर बेफिक्र रहने वाली बेटी गेट से भागकर आई और पूछने लगी..
"पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!"
दोनों वही फुट-फुटकर रोने लगे..
✍️सु जीत, बक्सर..
भाग-1 .. इंतजार कीजिये अगले पोस्ट के लिए..

Thursday 19 September 2019

#दिल्ली

जब भी मुबारक पुर चौक के फ्लाईओवर से गुजरता हूँ ऐसा लगता हैं तुमको बहुत दूर किये जा रहा हूँ खुद से..

तब खुद का खुद के लिए होना नहीं होता हैं तुम्हारे लिए होता हैं.. मजबूरियों से लड़ रहा मैं केवल अकेला ही नहीं न जाने कितने होंगे इस शहर में..



रोज दूर चले जाता हूँ तुम्हें छोड़कर और कुछ ही घंटों में वापिस आके मिल लेता हूँ.  इन मिलने-जुलने और बाद में बिछड़न से बनी दूरी एहसास कराती हैं तुम्हारी मधुता का, अपनत्व का और एक प्रेमी मन का जो उत्कट आकांक्षाओं में भी तुम्हे खोजता रहता हैं।

 बड़ा अजीब हुनर हैं तुममें.
 मैं तुझमें नहीं तुम मुझमें बसती हैं बरबस और बेहिसाब-सी।

जी करता हैं जीभर जिऊँ,  तुममें तुमतक होकर और जिंदगी बस तुमतक ही हो।

वीरान सी दुनिया में अपलक से भागती दौड़ती तो कभी हँसती मुस्कुराती तमाम तरह की अठखेलियाँ बसती हैं तुममें।


कुछ तो हैं कि बिसरती नहीं तुम, कितना भी भूलाये समा लेती हो अपने आपा में जहाँ न हम हम होते हैं और न कोई और दिखता कहीं।


एक बहुत बड़ी भीड़ हैं जो तुम्हें हर वक़्त नजरें टिकाए रखती हैं न दूर जाने देना चाहती हैं नजरों से.... बड़ी मुश्किल हैं इन जिंदगी के तमाशबीन दौर में सुलझना क्योंकि पता नहीं एक कूड़ा के ढेर मानिंद दिखते हैं विशाल पर, ये रहबर नहीं यहाँ के, बस मुफ़ीद हैं कुछ दिनों के..


तुम मुझसे प्यार करते हो या शहर से??
शहर से; क्योंकि मेरा शहर तुम हो..

#दिल्ली
एक बात पूछूं
नहीं, मुझे कुछ नहीं बताना।

ठीक हैं।

दो दिन बाद


मुझे एक जानकारी लेना था.
क्या??
नहीं कुछ!


Thursday 25 July 2019

सावन

आस्था की अगरबत्ती, नेह का दीपक, ललक की रोरी, निष्ठा का फल, श्रद्धा का फूल और सफ़लता की चाह का एक लोटा जल चढ़ाते., तब कहते थे.
हे शिव जी

अबकी बार फिजिकल जरूर निकलवा दीजियेगा. जीव जान लगाकर मेहनत कर रहे हैं और फल देना आपही के हांथ में हैं। जब आप चाह लेंगे न!, तो सब कुछ सही हो जाएगा.

बहुत सारे सपनों का पहाड़ मन में पड़ा हुआ हैं, बस एक हाली देह में बर्दी आ जाये, माई बाबू आ परिवार की बदहाली दूर करके अपने दुनियां में एगो नया सवेरा ला देंगे., पुरनकी साइकिल जिसका टायर घिस-घिस के ख़तम हो चला हैं, बिरेक मारने प तीन कदम दूर जाके रुकती हैं, मोटरसाइकिल खरीद लेंगे।


बड़की बहिन के बियाह में रखा हुआ बन्धकी खेत छुड़ाके दिन रात के घर का टेंशन ख़तम कर लेंगे नहीं तो गाँव के लोग बराबर हँस ते हुए कहते हैं..


"अब दिल्ली जाओ" , कुछ कमा धमा के आओ, 

नहीं तो तुमसे जिंदगी में कबो तुम्हारा खेत नहीं छूटेगा, बेंचना पड़ जायेगा। भर्ती के नाव पर कब तक आस लगाके रखोगे. वैसे भी आज कल का मेरिट 80 से ज्यादा पर ही बन रहा हैं और ऊपर से फिजिकल निकालना, मेडिकल निकालना तो दूर की बात हैं.. लोग आठ दस लाख रुपया घुस लिए बैठे हैं, तुम्हारा क्या हैं??


हे भगवान!, यदि नौकरी लग जाता तो सबके मुँह में कालिख पोता जाता.....और मेरे जिंदगी का सबसे बड़ा सपना बुलेट पर चढ़ने का पूरा हो जाता!

पुर्नवासी के दिन माई को बुलेट पर बैठा के गंगा जी ले जाता और  बाबू जी को बाजार बुलेट से ले जाता. उनकी भी दिली ख्वाहिश पूरा हो जाती.अपनी छोटकी बहिन का बियाह किसी नोकरी वाले लड़के से करता ताकि अब तक जितना दुख सही, 'सही' अब तो जीवन भर सुख शान्ती से रह सकेगी. और भी बहुत सारी मजबूरियां दिमाग जकड़े रहती हैं, नोकरी लग जायेगा तभी न ठीक से बियाह भी होगा नहीं तो साला जीवन भर दर दर का ठोकर खाकर कुँवारा ही मरना पड़ेगा।


न जाने कब आयेगी देही मे बर्दी..
एक सिपाही की भर्ती करने वाला लड़का का दर्द कौन समझेगा??.. भर्ती करने के लिये शुरू में बहुत जोश और ख़ुशी तो रहता हैं, ट्रेन में घूमने में खूब मजा आता हैं कभी कलकत्ता तो कभी दिल्ली, कभी जयपुर तो कभी सिकंदराबाद.. लेकिन चार पांच भर्ती में छटने, आर्मी की भर्ती में सुबह के तीन बजे से लेकर छव बजे तक धक्का-मुकी खाने, भीड़ में बड़े-बड़े डंडों से बेमर्र्वत पीटाने, हाड़ ठिठुराती ठंडी में खाली देह रहने और जरा भी कहीं कमी होने पर छंट के मुँह लटका के घर आने का दर्द भला कौन बता सकता हैं???


काँधे पर बैग लेकर जब भर्ती से घर आते हैं, गाँव से बाहर ही लोग मुँह देखकर ही बुझ जाते हैं फिर भी पूछ बैठते हैं..

काहो? का भईल हा!
ये रिजल्ट जानने की लोगों की उत्सुकता न खून खौला के जरा देती हैं बल्कि शर्म से सिर झुका के कहने को मजबूर कर देती हैं..
"छंट गइनी हा" 


घर में आते ही माई, जो सुबह से कुछ खाई नहीं हैं भगवान के पूजा करने से बाद, बाबूजी मन में भर्ती होने और बर्दी पहने हुए लड़के को देखने की आस लगाये रखे हैं औऱ  छोटकी जो मन में भाई के लिए न जाने क्या क्या सपने सजा रही होती हैं।

आते ही मुँह देखकर जान जाते हैं और उदास मन से बाबू जी कह देते हैं..

काहे चिंता किये हो??  फिर आयेगी भर्ती अबकी बार नहीं हुआ अगली बार मे होगा..


लेकिन मैं क्या बताऊँ की हमसे ज्यादा चिंता कौन कर रहा हैं, मेरे छंटने से दुखी कौन कौन  हैं....

कुछ भर्ती करने के बाद ऐसा लगने लगता हैं कि अब बर्दी की नोकरी मिलना मुश्किल ही हैं।


भर्ती में जाने के दौरान न रहने का कोई ठीक न खाने का कोई ठिकाना.कहाँ सांझ कहाँ बिहान,  निकल लेते हैं बिना किसी ठौर टिकाने के किसी स्टेशन के लिए जहाँ ट्रैन की ऐसी भीड़ का सामना करना पड़ता हैं जिसमें यमराज भी जाने से पहले तीन बार सोंचते हैं..
 फिर भी कैसे लटककर, ठुसाठुसी में गुजार देते हैं हजारों किलोमीटर का सफर...


यह एक भर्ती करने वाला से बेहतर कोई नहीं जानता.. बीच-बीच मे टीटीई को देखकर इस डब्बे में से भागकर अगले डब्बे में जाना, टीटीई से पकड़े जाने पर कॉलर पकड़ाकर जलील होना और पॉकेट का पैसा जबरदस्ती लिए जाने पर हथजोड़ी करके पचास रुपया वापिस लेना... माई के हांथ से बनी दु-तीन दिन की लिट्टी और ठेकुआ के साथ दस रुपये के छोला लेकर जीव जियाना.


भर्ती करने वाले का दर्द भला और कौन बुझेगा?
सर्दियों में सैकड़ों की भीड़ में एक चादर लेकर किकुर के सोना, रात भर जगकर मन में एक उम्मीद  बाँधना, शौचालय के लिए लंबी कतार में खड़ा होकर प्रेसर को कंट्रोल करना, दो तीन दिन तक बिना नहाये और एक ही कपड़े पहने समय गुजार देना।



##
भर्ती का आना एक उपहार जैसा लगता हैं. फॉर्म आता हैं, गांव जवार सब जगह हल्ला हो जाता हैं, फील्ड में पहुँचते ही चर्चा शुरू हो जाता हैं। पिछली बार एसएससी पैंतीस हजार निकाली थी तो गाँव के तीन लड़कों का हुआ था अबकी बार सीट जादा हैं, रेला सीट हैं साठ हजार.


अगले दिन नहा-धोकर, पूजापाठ करके डेग एगो पॉजिटिव मन से आगे बढ़कर गाँव के लड़कों को बोलकर फॉर्म की दुकान पर पहुँचते हैं...

फॉर्म का रेट पांच सौ सुनके हक्का बक्का हो जाना, ऊपर से फॉर्म भरने का पचास रुपया लगने पर दस रुपये समोसा के नाम पर छुड़वाना..

चलो पिछली बार छटे थे अबकी बार छोड़ेंगे नहीं. जी तोड़ मेहनत करेंगे. फिर फिजिकल निकला लेंगे. फिजिकल के बाद रिटेन में पसुराम सरजी से मैथ आ रीजनिंग पढ़ लेंगे या बक्सर कोचिंग क्लासेज से जाकर बढिया से तैयारी कर लेंगे.. सुमितवा उनके यहाँ ही पढ़ा था आज बीएसएफ में हैं.. छुट्टी आता हैं तो अपने बुलेट से गोड़ नीचे नहीं रखता हैं..,


भरती का दर्द सबसे बेहतर वह बता सकता हैं जो आठ-दस साल भर्ती करने के बाद, दु-दु हाली बलिया से मैट्रिक पास करने के बाद एज फ़ेल होकर अब टूट चुका हैं. तीसरी बार मन कुहुका के फिर मैट्रिक पास होकर भरती करना चाहता हैं लेकिन अब उसे लगता हैं भाग्य में भगवान वर्दी की नौकरी दिए ही नहीं हैं, बेकार में कोशिस कर रहे हैं..


##
एक समय ऐसा भी था जब हम जैसे नवयुवकों का आश्रय हुआ करता था यह मैदान!


भोर के तीन बजे ही एक दम एक मिनट ना इधर ना उधर होकर टिकटिकाने लगती घड़ी लेकिन नींद कहां आता. नींद में बस एक ही भूत सवार था अबकी बार की भर्ती बाँव नहीं जाने देंगे.. जी जान लगा देंगे.. अभी अपने मन में सँजोये सभी अरमानों को ढकना हैं, पूरा करना हैं उम्मीदों को सफलता की छाँव से..


कुछ साथी थे जो अनवरत जगके सबको जगाने के लिए निकल पड़ते थे, कभी तीन बजे तो कभी ढाई बजे ही और जगाने के लिए तब न कोई भिसिल थी और न कोई किसी के दुवार पर जाता पड़ता बल्कि इसके लिए कोड स्वरूप से आवाज था...
"कुड़ कुड़ कुड़ कुड़"


[माने उतना सुबह गांव में जो भी यह आवाज सुनता, समझ जाता कि लड़के दौड़ने के लिए जा रहे हैं. और अपने लड़के के बारे में सोचने लगता. पवनवा इंटर पास कर लेता हैं तो उसको भी मैदान में दौड़ने के लिए भेजेंगे.]


और इतना सुनते ही हाथ में होता एक लोटा पानी, एगो गमछी और एगो उम्मीद रूपी साहस, की आज सात चक्कर मारेंगे और किसी से पीछे नहीं रहेंगे।
फील्ड पहुँचें और शिव जी को गोड़ लागकर मन ही मन प्रण लेते हैं भगवान आज दौड़ में सबसे आगे दौड़ने की शक्ति दीजियेगा, भले जान ले लीजिए बाकिर जो सबसे पीछे रहने का कलंक हैं उसे मिटा दीजिये, नहीं तो भीमवा फिर कह देगा..

बैय, ई लोग मजाक करने ही मैदान में आता हैं।

इस बात में कठोर कड़वाहट होती किन्तु मैं और पंकजवा और ठठा के हँस पड़ते.. हमलोगों की हँसी से भीम खून घोंट कर रह जाता।



[ नोट:- पढ़ने के बाद शायद आप भी खुद को इसके इर्द-गिर्द महसूस करेंगे.. कल सोमारी के दिन फील्ड देखकर मन से उपजा विचार, कुछ लोगों की मानसिकता यह हैं कि बिना घुस का भर्ती नहीं होता कोई बेहतर हैं इसे मन से निकाल दें और जो लड़के अपने बेहतर कल के लिए जी जान लगा रहे हैं, उनके हौसलें को कृपया करके न तोड़िये। लिखने में  व्याकरण की अशुद्धियाँ होगीं,  इसके लिए क्षमा चाहूँगा। ]

✍️सु जीत

Sunday 30 June 2019

पत्र

सेवा में,
    माननीय प्रधानमंत्री जी
    भारत सरकार
      

द्वारा:- उचित माध्यम

विषय:- गोप भरौली, सिमरी जिला- बक्सर ( बिहार) में सड़क निर्माण के संबंध में.

श्रीमान,
         विषय अंतर्गत निवेदन है, कि आजादी के सत्तर वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी ग्राम गोप भरौली ब्लॉक सिमरी जिला बक्सर (बिहार) के हम लोग एक दो फिट की पगडंडियों पर चलने को विवश हैं । और मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं।

आदरणीय बरसात के दिनों में जहाँ हमें किसी रोगी या प्रसव पीड़िता को डेढ़ किलोमीटर दूर खाट पर कीचड़ में लथपथ होकर अस्पताल ले जाना पड़ता हैं ।  तो वही बच्चों का स्कूल जाना पूरे बरसात भर ठप हो जाता हैं। गांव में कोई भी चार या तीन पहिया वाहन गर्मियों के अलावा (तब खेत खाली होते है ) अन्य ऋतुओं में नही आ पाता है ।

जिला प्रशासन के पास कई बार पत्राचार करने के बाद भी हमारी समस्या का दस्तावेज लंबित पड़ा हुआ हैं और किसी की कोई सुध नहीं हैं।

लोक शिक़ायत में आवेदन देने के बाद भू-अर्जन विभाग द्वारा कोई ठोस कारवाही नहीं की जा रही हैं, ताकि हमारी समस्या का हल निकले।

श्रीमान जी, अवगत कराना चाहूँगा की हमारे गाँव को मुख्य सड़क (आशा पड़री- सिमरी) से जोड़ने के लिए दो तरफ़ से रोड के लिए भू स्वामियों की सहमत थी लेकिन किसी एक तरफ से भी नहीं बन रहा हैं।

महोदय से सादर विनती हैं कि हमारी साढ़े ग्यारह सौ लोगों की पीड़ा को ध्यान में रखते हुए मात्र डेढ़ किमी के संपर्क मार्ग हेतु संबंधित अधिकारियों को अग्रिम कार्यवाही हेतु आदेश दिया जाय, इसके लिए समस्त ग्रामीण जनता आभारी रहेगी..

प्रार्थी

समस्त ग्रामीण
गोप भरौली,
ब्लॉक सिमरी  जिला:- बक्सर ( बिहार)

Tuesday 18 June 2019

मुजफ्फरपुर

क के माँग हर जगह उठावे वाला बिहार में तवाँ जाला,
हरदम चिचियात रहे गरीबन खातिर, ऊहो मुँह लुकवा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

देस-बिदेस में बसल बाड़ें बड़हन नेता, अभिनेता आ पत्रकार
बाकी अब त राजनीति करे में लोग अझुरा जाला।
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

लाश जतने छोट आवे, तन-मन के ओतने झकझोरेला
बेबस माई-बाप, परिवार के करेजा चरचरा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

बहरी के एगो छोटो घटना, टीबी के बड़ खबर बनेला
बिदेसो से हरसंभव मदत, सांत्वना आ सलाह आ जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

फिकिर में के बा, बाढ़ में हर साल दहत बिहार बा
बिकास पुरुस कागजी, गरीबी-पलायन प चुपा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

बेमउअत मउअत के जबाबदेह के बा, गरीब के सँघाती-इयार के बा
जे आपन केहू बिछुड़े त असली दरद बुझा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

रोज टीबी प रोवत माई बाबू के आँखि देखी सुजीत के अँखिया लोरा जाला
कब ले होइ निदान इहे चाहे ला मनवा कसक जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।

:- सु जीत, बक्सर।

[विशेष अभार:- श्री कृष्णा जी पाण्डेय]