Thursday 25 July 2019

सावन

आस्था की अगरबत्ती, नेह का दीपक, ललक की रोरी, निष्ठा का फल, श्रद्धा का फूल और सफ़लता की चाह का एक लोटा जल चढ़ाते., तब कहते थे.
हे शिव जी

अबकी बार फिजिकल जरूर निकलवा दीजियेगा. जीव जान लगाकर मेहनत कर रहे हैं और फल देना आपही के हांथ में हैं। जब आप चाह लेंगे न!, तो सब कुछ सही हो जाएगा.

बहुत सारे सपनों का पहाड़ मन में पड़ा हुआ हैं, बस एक हाली देह में बर्दी आ जाये, माई बाबू आ परिवार की बदहाली दूर करके अपने दुनियां में एगो नया सवेरा ला देंगे., पुरनकी साइकिल जिसका टायर घिस-घिस के ख़तम हो चला हैं, बिरेक मारने प तीन कदम दूर जाके रुकती हैं, मोटरसाइकिल खरीद लेंगे।


बड़की बहिन के बियाह में रखा हुआ बन्धकी खेत छुड़ाके दिन रात के घर का टेंशन ख़तम कर लेंगे नहीं तो गाँव के लोग बराबर हँस ते हुए कहते हैं..


"अब दिल्ली जाओ" , कुछ कमा धमा के आओ, 

नहीं तो तुमसे जिंदगी में कबो तुम्हारा खेत नहीं छूटेगा, बेंचना पड़ जायेगा। भर्ती के नाव पर कब तक आस लगाके रखोगे. वैसे भी आज कल का मेरिट 80 से ज्यादा पर ही बन रहा हैं और ऊपर से फिजिकल निकालना, मेडिकल निकालना तो दूर की बात हैं.. लोग आठ दस लाख रुपया घुस लिए बैठे हैं, तुम्हारा क्या हैं??


हे भगवान!, यदि नौकरी लग जाता तो सबके मुँह में कालिख पोता जाता.....और मेरे जिंदगी का सबसे बड़ा सपना बुलेट पर चढ़ने का पूरा हो जाता!

पुर्नवासी के दिन माई को बुलेट पर बैठा के गंगा जी ले जाता और  बाबू जी को बाजार बुलेट से ले जाता. उनकी भी दिली ख्वाहिश पूरा हो जाती.अपनी छोटकी बहिन का बियाह किसी नोकरी वाले लड़के से करता ताकि अब तक जितना दुख सही, 'सही' अब तो जीवन भर सुख शान्ती से रह सकेगी. और भी बहुत सारी मजबूरियां दिमाग जकड़े रहती हैं, नोकरी लग जायेगा तभी न ठीक से बियाह भी होगा नहीं तो साला जीवन भर दर दर का ठोकर खाकर कुँवारा ही मरना पड़ेगा।


न जाने कब आयेगी देही मे बर्दी..
एक सिपाही की भर्ती करने वाला लड़का का दर्द कौन समझेगा??.. भर्ती करने के लिये शुरू में बहुत जोश और ख़ुशी तो रहता हैं, ट्रेन में घूमने में खूब मजा आता हैं कभी कलकत्ता तो कभी दिल्ली, कभी जयपुर तो कभी सिकंदराबाद.. लेकिन चार पांच भर्ती में छटने, आर्मी की भर्ती में सुबह के तीन बजे से लेकर छव बजे तक धक्का-मुकी खाने, भीड़ में बड़े-बड़े डंडों से बेमर्र्वत पीटाने, हाड़ ठिठुराती ठंडी में खाली देह रहने और जरा भी कहीं कमी होने पर छंट के मुँह लटका के घर आने का दर्द भला कौन बता सकता हैं???


काँधे पर बैग लेकर जब भर्ती से घर आते हैं, गाँव से बाहर ही लोग मुँह देखकर ही बुझ जाते हैं फिर भी पूछ बैठते हैं..

काहो? का भईल हा!
ये रिजल्ट जानने की लोगों की उत्सुकता न खून खौला के जरा देती हैं बल्कि शर्म से सिर झुका के कहने को मजबूर कर देती हैं..
"छंट गइनी हा" 


घर में आते ही माई, जो सुबह से कुछ खाई नहीं हैं भगवान के पूजा करने से बाद, बाबूजी मन में भर्ती होने और बर्दी पहने हुए लड़के को देखने की आस लगाये रखे हैं औऱ  छोटकी जो मन में भाई के लिए न जाने क्या क्या सपने सजा रही होती हैं।

आते ही मुँह देखकर जान जाते हैं और उदास मन से बाबू जी कह देते हैं..

काहे चिंता किये हो??  फिर आयेगी भर्ती अबकी बार नहीं हुआ अगली बार मे होगा..


लेकिन मैं क्या बताऊँ की हमसे ज्यादा चिंता कौन कर रहा हैं, मेरे छंटने से दुखी कौन कौन  हैं....

कुछ भर्ती करने के बाद ऐसा लगने लगता हैं कि अब बर्दी की नोकरी मिलना मुश्किल ही हैं।


भर्ती में जाने के दौरान न रहने का कोई ठीक न खाने का कोई ठिकाना.कहाँ सांझ कहाँ बिहान,  निकल लेते हैं बिना किसी ठौर टिकाने के किसी स्टेशन के लिए जहाँ ट्रैन की ऐसी भीड़ का सामना करना पड़ता हैं जिसमें यमराज भी जाने से पहले तीन बार सोंचते हैं..
 फिर भी कैसे लटककर, ठुसाठुसी में गुजार देते हैं हजारों किलोमीटर का सफर...


यह एक भर्ती करने वाला से बेहतर कोई नहीं जानता.. बीच-बीच मे टीटीई को देखकर इस डब्बे में से भागकर अगले डब्बे में जाना, टीटीई से पकड़े जाने पर कॉलर पकड़ाकर जलील होना और पॉकेट का पैसा जबरदस्ती लिए जाने पर हथजोड़ी करके पचास रुपया वापिस लेना... माई के हांथ से बनी दु-तीन दिन की लिट्टी और ठेकुआ के साथ दस रुपये के छोला लेकर जीव जियाना.


भर्ती करने वाले का दर्द भला और कौन बुझेगा?
सर्दियों में सैकड़ों की भीड़ में एक चादर लेकर किकुर के सोना, रात भर जगकर मन में एक उम्मीद  बाँधना, शौचालय के लिए लंबी कतार में खड़ा होकर प्रेसर को कंट्रोल करना, दो तीन दिन तक बिना नहाये और एक ही कपड़े पहने समय गुजार देना।



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भर्ती का आना एक उपहार जैसा लगता हैं. फॉर्म आता हैं, गांव जवार सब जगह हल्ला हो जाता हैं, फील्ड में पहुँचते ही चर्चा शुरू हो जाता हैं। पिछली बार एसएससी पैंतीस हजार निकाली थी तो गाँव के तीन लड़कों का हुआ था अबकी बार सीट जादा हैं, रेला सीट हैं साठ हजार.


अगले दिन नहा-धोकर, पूजापाठ करके डेग एगो पॉजिटिव मन से आगे बढ़कर गाँव के लड़कों को बोलकर फॉर्म की दुकान पर पहुँचते हैं...

फॉर्म का रेट पांच सौ सुनके हक्का बक्का हो जाना, ऊपर से फॉर्म भरने का पचास रुपया लगने पर दस रुपये समोसा के नाम पर छुड़वाना..

चलो पिछली बार छटे थे अबकी बार छोड़ेंगे नहीं. जी तोड़ मेहनत करेंगे. फिर फिजिकल निकला लेंगे. फिजिकल के बाद रिटेन में पसुराम सरजी से मैथ आ रीजनिंग पढ़ लेंगे या बक्सर कोचिंग क्लासेज से जाकर बढिया से तैयारी कर लेंगे.. सुमितवा उनके यहाँ ही पढ़ा था आज बीएसएफ में हैं.. छुट्टी आता हैं तो अपने बुलेट से गोड़ नीचे नहीं रखता हैं..,


भरती का दर्द सबसे बेहतर वह बता सकता हैं जो आठ-दस साल भर्ती करने के बाद, दु-दु हाली बलिया से मैट्रिक पास करने के बाद एज फ़ेल होकर अब टूट चुका हैं. तीसरी बार मन कुहुका के फिर मैट्रिक पास होकर भरती करना चाहता हैं लेकिन अब उसे लगता हैं भाग्य में भगवान वर्दी की नौकरी दिए ही नहीं हैं, बेकार में कोशिस कर रहे हैं..


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एक समय ऐसा भी था जब हम जैसे नवयुवकों का आश्रय हुआ करता था यह मैदान!


भोर के तीन बजे ही एक दम एक मिनट ना इधर ना उधर होकर टिकटिकाने लगती घड़ी लेकिन नींद कहां आता. नींद में बस एक ही भूत सवार था अबकी बार की भर्ती बाँव नहीं जाने देंगे.. जी जान लगा देंगे.. अभी अपने मन में सँजोये सभी अरमानों को ढकना हैं, पूरा करना हैं उम्मीदों को सफलता की छाँव से..


कुछ साथी थे जो अनवरत जगके सबको जगाने के लिए निकल पड़ते थे, कभी तीन बजे तो कभी ढाई बजे ही और जगाने के लिए तब न कोई भिसिल थी और न कोई किसी के दुवार पर जाता पड़ता बल्कि इसके लिए कोड स्वरूप से आवाज था...
"कुड़ कुड़ कुड़ कुड़"


[माने उतना सुबह गांव में जो भी यह आवाज सुनता, समझ जाता कि लड़के दौड़ने के लिए जा रहे हैं. और अपने लड़के के बारे में सोचने लगता. पवनवा इंटर पास कर लेता हैं तो उसको भी मैदान में दौड़ने के लिए भेजेंगे.]


और इतना सुनते ही हाथ में होता एक लोटा पानी, एगो गमछी और एगो उम्मीद रूपी साहस, की आज सात चक्कर मारेंगे और किसी से पीछे नहीं रहेंगे।
फील्ड पहुँचें और शिव जी को गोड़ लागकर मन ही मन प्रण लेते हैं भगवान आज दौड़ में सबसे आगे दौड़ने की शक्ति दीजियेगा, भले जान ले लीजिए बाकिर जो सबसे पीछे रहने का कलंक हैं उसे मिटा दीजिये, नहीं तो भीमवा फिर कह देगा..

बैय, ई लोग मजाक करने ही मैदान में आता हैं।

इस बात में कठोर कड़वाहट होती किन्तु मैं और पंकजवा और ठठा के हँस पड़ते.. हमलोगों की हँसी से भीम खून घोंट कर रह जाता।



[ नोट:- पढ़ने के बाद शायद आप भी खुद को इसके इर्द-गिर्द महसूस करेंगे.. कल सोमारी के दिन फील्ड देखकर मन से उपजा विचार, कुछ लोगों की मानसिकता यह हैं कि बिना घुस का भर्ती नहीं होता कोई बेहतर हैं इसे मन से निकाल दें और जो लड़के अपने बेहतर कल के लिए जी जान लगा रहे हैं, उनके हौसलें को कृपया करके न तोड़िये। लिखने में  व्याकरण की अशुद्धियाँ होगीं,  इसके लिए क्षमा चाहूँगा। ]

✍️सु जीत

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