Sunday 31 May 2020

गँगा दशहरा

आज गँगा दशहरा हs.
माने गँगा आजुवे के दिन धरती पे आइल रहीं। गँगा के मईया, माँ, देवी के नॉव अस्तित्व आ संस्कृति के बचावे खातिर दिहल गइल। आदि काल से इ मानल गइल बा की मनुष्य के जवना आ जेकरा से आम जनमानस के फायदा भइल बा उ पूजनीय,वंदनीय साक्षात बा जइसे गौ, गंगा, तुलसी, नीम ,पीपर, सुरुज भगवान आदि। 

लगभग हर सभ्यता के विकास नदी घाटी से ही भइल मानल गइल बा, जइसे सिंधु घाटी सभ्यता,, सिन्धु सरस्वती सभ्यता माने हड़प्पा संस्कृति आदि।

माँ गँगा के धरती प ले आवे में महान प्रतापी राजा भागीरथ के जवन देन रहे उकरा के हिन्दू संस्कृति कबो भुला नईखे सकत, बाकिर सोचे वाली बात ई बा की आजु हमनी के आपन संस्कृति रूपी थाती सहेजे खातिर कतना सजग बानी जा?? 

गँगा जी के पानी बहुत पवित्र मानल गइल बा एह पानी मे अइसन खूबी बा की कतनो दिन रखला के बाद भी इकरा में कवनो गंध भी ना आवे। वैज्ञानिक शोध से ई भी बतावल गईल बा की गँगा जी के पानी मे बैक्टीरिया होला जवन बाकिर जीवाणु के मार देला। गँगा जी के पानी मीठ होखला के वजह से ही "डॉलफिन" जईसन मछरी मिलेली सन जवन की बहुत दुरलभ जाती के मछरी होली सन।


नेपाल, बांग्ला देश के साथे साथ हमनीके देश मे माँ गंगा के आँचर में बसे वाला राज्य उत्तराखंड, यूपी, बिहार आ बँगाल मेन बा, माँ गंगा से ई क्षेत्र के कतना फायदा बा रउआ सभ आराम से सोची विचार क के आंकलन कर सकत बानी जा। 

 आस्था के दूरवेव्हार
 समाज आज भी आपन कुछ पुरातन व्यवहार के चलते कुछ अईसन काम करता जवन की आवे वाला काल्हु खातिर गँगा मईया के अस्तित्व के लगातार मिटावे प तुलल बा जबकि इकर वेद पुराण आ आध्यात्मिक रूप से कवनो लेखा जोखा नईखे जइसे की 

1) प्लास्टिक में फूल भरी के बहा दिहल
2) अगरबत्ती के खोखा के बहावल
3) आलपिन, नया कपड़ा पहनें के बाद पुरान बहा दिहल।
4) साबुन शेम्पू के डिब्बा फेकल 
5) दतुवन क के जेने तेने फेंक दिहल
6) दाह संस्कार संस्कृति में त बा बाकिर ले गईल सब सामान बहावल आदि नईखे।

 इस सब जहाँ तहाँ फेक के कूड़ा करकट फईलावल घाट के गंदगी आ बीमारी के बढ़ावा दिहल बा एह विषय मे सबके जागरूक होखे के चाहिँ, गँगा जी के किनारे जवन भी बाचल सामान बा ओह के ओहिजा के कूड़ादान में ही डाले के चाहिँ। 

[बक्सर जिला में यदि गँगा मईया के बात होई त ओह में छात्रशक्ति के नॉव जरूर लिहल जाई। लगातार 2013 से " हर रविवार गँगा किनार" मुहिम छेड़े वाला छात्रशक्ति के हर एक सदस्य आज अपना निस्वारथ मेहनत के बदौलत आज गँगा मईया के अस्तित्व  बचावे खातिर खाड़ बाड़े, जवन एगो उल्लेखनीय आ बेजोड़ पहल बा।]

हर हर गंगे 🙏🙏
[ फ़ोटो क्रेडिट:- श्री मुकेश पाण्डेय चंदन]
✍️ सु जीत पाण्डेय छोटू।

Sunday 10 May 2020

मदर्स डे स्पेशल

माँ का नाम ही आशा और  चिंता हैं!
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आज सुबह में ही एक मित्र का सलाह आया।
आप भी " मातृ दिवस" पर कुछ लिखिये!"
मैंने उनकी बात एकाएक मना करना उचित नहीं समझा।

लिखने के लिए कलम उठाया ही था कि
" कलम रुक गई।"
 फिर दुबारा कोशिश किया,, 
 कि लिख लूँ लेकिन जितना भी लिख पाया वह ये हैं।

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आज मैं जो कुछ भी लिखने जा रहा हूँ, इसकी देन माँ हैं। अगर मैंने दुनिया में अब तक जो कुछ भी देखा  उसका सौभाग्य भी माँ हैं।

" माँ भले मेरी हो, आपकी हो या किसी की भी हो,, अलग नहीं होती ममता से,मोह से और नेह-छोह से।"

खुद सोती नहीं रातभर, जब तल्ख सुला लेती,
तनिक अलसाती नहीं गीले बिछौने को देखकर, 
ठिठुरती ठंड हो या हो चिलचिलाती धूप,
करती नहीं रात और दिन का परवाह, 

खुद भूखी सो जाती अलसाई,
 रहती नहीं मुझे बिन खिलाई,
 
अरे, माँ तो बस माँ हैं,
हैं नहीं कोई इसकी तुरपाई।

बेच देती हैं तन के जेवर हमारे सपनों को बुनने में,
 झगड़ पड़ती हैं घर में सबसे हमारी कमियाँ ढकने में, 

अरे!, बैंक के खाते भी दीमक खा जाते हैं,एक उम्मीद में।

अर्पण कर देती हैं अपना तन,मन,धन सब कुछ,
बस एक उम्मीद में,! बेटा हमारा बड़ा नाम करेगा।

जीवन के सफर में हर कोई सफल तो होता  नहीं,
होते असफल बेटे के लिए रोती,
वह माँ हैं, 
माँ तो बस माँ हैं!

यक़ीनन,,,!
 माँ का नाम ही आशा और  चिंता हैं।

सुजीत पाण्डेय छोटू
       बक्सर

Wednesday 6 May 2020

मच्छड़ हूँ!!

#मच्छड़_हूँ!!

रहता हूँ रातभर  टिका निरंतर
जाल पर अपनी आस टिकाकर
मन को एकदम दृढ़निश्चयी कर 
अबकी बार पेट भर लूँगा, मच्छड़ हूँ!!

हर शाम को जज्बे में आकर
लोगों को पहले धमका कर
जोर-जोर स्वर तान सुनाकर
लोगों को शंकित कर जाता हूँ, मच्छड़ हूँ!!

जब लोगों के पास मैं जाता हूँ
अपनी याचना सुनाता हूँ,
पुरजोर गुहार लगाता हूँ 
अंतिम संकल्प बताता हूँ, मच्छर हूँ!!

भूखे पेट की बात बताता हूँ
मिनट भर पास सटने दो तुम
मेरी भूख जरा मिटने दो तुम
मेरी अतृप्त प्यास बुझा दो तुम, मच्छर हूँ!!

दृग के आँसू बरसाता हूँ
पर लोग कहाँ सुनने वाले 
चट एक थाप लगाते हैं
फिर किसी तरह बच जाता हूँ, मच्छर हूँ!!

फिर मैं तो ठहरा स्फूर्ति दार
समाज में था एकदम बेकार
कोई भी हक़ मुझे दे न सका
अपना कलंक अब धो न सका, मच्छर हूँ!!


जब देह में होती भूख की तड़प
निकलने लगती हैं प्राणों से रूह
अब अंतिम कोशिश कर जाता हूँ 
क्रोधित हाथों से कुचला जाता हूँ, मच्छर हूँ!!

सु जीत पाण्डेय छोटू