Wednesday 30 August 2017

राजा भोज की भोजपुरी

भोजपुरी भाषा का नामकरण कन्नौज के राजामिहिर भोज के नाम पर भोजपुर बसा था। इस मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता और परमानंद पांडेय हैं। परमानंद पांडेय के अनुसार “ गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है। मिहिरभोज का शासनकाल सन् 836 ई. के आसपास माना जाता है।
भोजपुरी एक बहुत ही सुनदर, मीठा, सरस्, और मधुर भाषा है ।  भोजपुरी बोलने वालों की संख्या बंगाली, गुजराती, मराठी से कम नही है ।

कोई भी भाषा इसकी बराबरी नही कर सकता है और सबसे अच्छी बात है कि इसकी हर एक बात को जितनी सुसज्जित , सुव्यवस्थित व संरंचित रूप से पिरोया गया है कि इसकी बराबरी कोई कर ही नही सकता है ।

#कुछ हिंदी और भोजपुरी के शब्दों के अंतर नीचे दिए गए है ।

* पति पत्नी में कभी झगड़ा नही, रागारा होता है।

*हम चाय में रोटी बोर कर खाते है । छुआना/ लगाना /स्पर्श करना हिंदी में होता है । बोरना का मतलब है चाय का रोटी से पूरी तरह सम्मिलन होना और रोटी में डुबोये गये भाग का अंश पूरी तरह भीग जाना ।

* हम खून बहाते नही चुवा देते है ।

*कोई इंग्लिश में  throat ,हिंदी में गला बोलता है हम जानते है कि गला ही नही इसमें  नरेटी भी होता है जिसके दबने से मौत हो जाती है ।

* नोचना यह होता है जो कोई दाँत से हमला करता है या चोंच से पर हम हाथ के नाखून से बकोट देते है अभी एक और शब्द है खरकोचना जो हिंदी के रगड़ना से अलग है । जिसका कोई इंग्लिश या हिन्दी नही है ।

* चहैट लेना/ लहटे लेना :- हिंदी में इसका अर्थ है किसी चोर को दौड़ाकर तब तक पीछा करना जबतक चोर पकड़ा न जाये ।

भोजपुरी भाषी की संख्या- 7 करोड़ (2001)
बोलने वाले देश - भारत, नेपाल, मारीशस, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबेको

भोजपुरी क्षेत्र

बिहार :- बक्सर, सारन, गोपालगंज,पूर्वी चंपारण,         पच्छमी चम्पारण,वैशाली, भोजपुर, रोहतास,

उतर प्रदेश: - बलिया, वाराणसी, चंदौली, गोरखपुर, महाराजगंज, गाजीपुर, मिर्जापुर,मऊ,सिद्धार्थनगर इलाहाबाद,जौनपुर,फैजाबाद, बस्ती, बहराइच, प्रतापनगर,
झारखंड :-पलामू, गढ़वा

नेपाल :- वीरगंज, नवरासी, चितवन, रुपनदेही, कपिलवस्तु, पसी, रौतहट , बारा

#कुछ लोग का कहना है कि भोजपुरी गानो में अश्लीलता बहुत है व बहुत ही भद्दे गाये जाते है पर मेरा दावा है कि आज के दौर में दो चार फ़िल्म जैसे दंगल, सुलतान और टॉयलेट प्रेकथा इत्यादि फिल्मों को छोड़ दिया जाय तो शायद ही कोई फिल्म परिवार में बैठकर  देखा जा सकता है । @ जैसे हिंदी गायको में किशोर कुमार जी, लतमंगेशकर जी प्रसिद्ध है ठीक वैसे ही भोजपुरी जगत में गला सम्राट भरत शर्मा व्यास, श्रीमती शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी, गोपाल राय, और गायत्री ठाकुर सहित कलाकारों के स्वरों से भोजपुरी की मिट्टी से भीनी भीनी सुगंध का एहसास कराएगी और ऐसा लगेगा जैसे सरसों की कली से गुलाब के फूल का सुगंध से वातावरण सुवासित हो रहा है ।

श्रीमती शारदा सिन्हा जी के भोजपुरी जगत में योगदान उल्लेखनीय व अविस्मृत है । आज भी घरों में सोहर,खेलवना, शादी के गीत घर घर की महिलाओं को कंठस्थ है और भोजपुरी संस्कृति का धरोहर है तो वही
स्व श्री गायत्रि ठाकुर जी का रामायण, महाभारत,  इत्यादि प्रसंग प्रेरणा का स्रोत है ।

भोजपुरी स्टेज पर जहाँ श्री भरत शर्मा, शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी, रविकिशन, किशोर कुणाल, निरहुआ जैसे कलाकर हो मंच रंगमंच में तब्दील हो बिहार की मिट्टी की खुशबू से सरोकार हो जाता है ।

"कहवाँ से जीव आइल, कहँवा समाइल हो।
कहवाँ कइल, मोकाम, कहवाँ लपटाइल हो।
निरगुन से जीव आइल, सरगुन समाइल हो,
कायागढ़ कइल मोकाम, माया लपटाइल हो।।"
तिवारी 2014

प्रारंभिक काल (1947 से 1961 ले): भोजपुरी क पहिला उपन्यास बिंदिया 1956 में छपल लेकिन भोजपुरी कहानी क शुरुआत अवध बिहारी सुमन क रचना 'जेहलि क सनदि' से मानल जाला जेवन 1948 में छपल रहे।
मध्य काल (1961 से 1974 ले): एह काल में भोजपुरी में लगभग दस गो उपन्यास छपल। एह समय की प्रमुख उपन्यासन में बा : थरुहट के बबुआ और बहुरिया (1965),
जीवन साह (1964), सेमर के फूल (1966), रहनिदार बेटी (1966), एगो सुबह, एगो साँझ (1967), सुन्नर काका (1979)। ए उपन्यासन में अधिकतर सामजिक उपन्यास हवें। 'थरुहट के बबुआ और बहुरिया के भोजपुरी में आंचलिक उपन्यास कहल जाला।
आधुनिक काल (1975 की बाद): एह काल में लगभग बीस गो से अधिका उपन्यासन के रचना आ प्रकाशन भइल।
फुलसुंघी (1977), भोर मुसुकाइल (1978), घर टोला गाँव (1979), जिनिगी के राह (1982), दरद के डहर (1983),
अछूत (1986), महेन्दर मिसिर (1994), इमरितिया काकी (1997), अमंगलहारी (1998), आव लवटि चलीं जा (2000), आधे-आध (2000) इत्यादि उपन्यास एह काल के प्रमुख उपन्यास बा।

बता दे कि भोजपुरी की ही यह धरती है जो बिस्मिल्लाह खान जैसे शहनाई वादक पैदा किया  जो भारत ही नही बल्कि विश्व मे अपना पहचान बनाया । भोजपुरी की धरती को अगर बिस्मिल्लाह खान के नाम पर भोजपुरी साँस्कृतिक केन्द्र खोल दी जाय और नए कलाकारों को गीत संगीत में मौका दिया जाय तो भोजपुरी भाषा की उत्थान विश्व धरा पर अलौकिक पहचान बिखेर सकता है ।

Monday 28 August 2017

ग्रामीण परिदृश्य - रामलखन की कहानी भाग 1

रामलखन 6 फ़ीट हाइट,मेहनती व गठीले बदन  बी एस एफ (BSF) के जवान है । बचपन से ही घर के काम काज खेतीबाड़ी का काम करके और पढ़ाई में किसी तरह से मैट्रिक पास करने के बाद भरती के लिए भागदौड़ किये । अंत मे 6 बरिस तक भरती करने के बाद बड़ी मुश्किल से BSF में सिपाही की नौकरी मिली। अब नौकरी होने के बाद उनके बाप श्री रामेश्वर सिंह,जो पूरी जिंदगी दूसरे का खेत सलाना पैसे पर  लेकर टमाटर और बैगन की खेती-बारी में लगाने और गाँव मे नीचे तबके के जीवन मे गुजर बसर करते वाले अब मोच्छ पर ताव देके पंचायत के अगली लाइन में बैठने लगे और गाँव मे खुद के सबसे बड़ा  इज्जतदार समझने लगे । बाकी रामलखन के दो भाई भी गाँव मे नेताजी कहलाने लगे।  जिनको  दो जून की रोटी नही नसीब थी आज अगढत बन बैठे । समाज मे परिवार की तूती बोलने लगी और बात बात पर लाठी डंडा निकालने को उतारू हो जाते  ।

दो साल नौकरी होने के बाद रामलखन के दुवार पर रोज रिश्तेदारों का हुजूम इकाठा होने लगा । रोज तीन चार रिश्तेदार आने लगे थे साथ मे फ़ोटो भी लेकर आते थे । घर मे कुल 30 लड़की का फोटो आ गया था पर शादी के कोई ठिकाना नही था वजह सिर्फ यह था कि रामेश्वर सिंह के तिलक से पूरा एरिया जानकार था । 12 लाख नगद Appche गाड़ी के  साथ साथ तीन भर के सिकड़ी और लईकी ऐश्वरिया या कैटरीना जइसन । 52 रिश्तो में एक पसन्द आया । लड़की का बाप कोइलवरी में था और लड़की भी MBA की है । लड़की पसंद होने का वजह था लड़की  बहुत सुंदर और पढ़ी लिखी थी साथ ही उसका बाप मुँहमाँगा पैसा दे रहा था । सब कुछ तय हो गया और बराइच्छा के दिन रामलखन छुट्टी लेकर आये । सब गाँव मे खुशी का माहौल था कि अबकी लगन में एगो बढ़िया पूड़ी मिली और दमदार सोनाली रानी के नाच के व्यवस्था होइ । चाहे किसी को घर मिले या किसी को बर, लड़को को तो बस बरात में नाच चाहिए ।

 रामलखन भी अपने साथियों की शादी में खूब शरिक होते और जमकर पैसे उड़ाते अब तो शादी का लड्डू खुद खाने का वक़्त आ गया । शादी नबम्बर 2017 में  तय हो गया । 

रामलखन बो भौजी की पढ़ाई का हाला शादी के पहले ही खूब जोर पर होने लगा, क्योंकि उनके पापा उनको बंगाल के आसनसोल में रखकर अंग्रेजी मेडियम में पढ़ाये थे । अब घर मे ऐसी बहु के आने के रिश्ते से घर के साथ साथ गाँव मे भी खूब हाला था । कोई कहता था कि घुराहु बो बोलती है कि लड़की बंगाल की है हिला के रख देगी तो वही रामनिवेश बो बोलती है कि शहर में रहै वाली लड़की गाँव में कइसे रही, लागत बा  बेचारी के करमे फुटल बा । हद तो तब हो गई जब राजेश के लइका के बार मे आइ  साली कहती है कि रामलखन के भाग देख हो अब त इनकर गोड़ जमीन पर ना रही अउर अब सबके भुला जईहे। 

घर के आपसी परिवार चाचा -चाची ,दीदी- जीजा ,फुआ फूफा , सब के मुँह पर यही चर्चा चल रहा है और काम से जब कभी फुरसत मिलता , बस टॉपिक पर बहस शुरू हो जाता । लड़की घर मे लछमी आवत बिया ई त रामलखन के भागी के बात बा । आजु से ही सब लोग सँस्कार से रहे सीखी जाव ना त लईकी कइसे एडजेस्ट होइ । रामलखन के गाँव मे निकलना अब दम घुटने सा लगने लगा था जहाँ जाते बस लड़की के बारे में चर्चा शुरू हो जाता । जबाब देते देते बस परेशान से हो गए थे । जब कभी अकेले होते मन मे शादी का लड्डू फूटता और रात आकाश के तारे गिनने में ही बीत जाता ।

छुट्टी खत्म हुई, अब रामलखन नौकरी पर चले । सुबह के 0545 बजे बक्सर से हावड़ा जम्मूतवी  पकड़े, सीट कन्फर्म था ,सीट लिए और  छुटी में गुजरे पलों को याद करने लगे । 

आगे की कहानी लेकर फिर आएंगे ।

सुजीत कुमार पांडेय " छोटू "

Friday 18 August 2017

भोजपुरी कलाकार की हत्या पर विशेष ।

भोजपुरी आज विश्व के लगभग 10 देशों में 5 करोड़ से भी अधिक लोगो के बोलचाल की मुख्य भाषा बन चुकी है और इसका जन्मस्थली बिहार के आरा,बक्सर,बलिया,छपरा ,सिवान,सारण, चम्पारण और गोपालगंज तथा यूपी के बलिया,मऊ,बनारस गाजीपुर,देवरिया,आजमगढ़ और झारखंड के भी कुछ जिले  है ।

हमें गर्व होता है कि आज के समय मे भोजपुरी आन बान और शान से हम राजधानी दिल्ली व मुम्बई जैसे महानगरों में सुनते है और इसकी लोकप्रियता की वजह से देश मे अन्य राज्यो के लोग भी बोलना पसंद करने लगे है । लेकिन इसके प्रसिद्ध होने का मुख्य श्रेय उन कलाकारों को जाता है जिन्होंने ने कड़ी मेहनत, लगन और धैर्य के साथ इसे अपने आजीविका व सम्मान का साधन बनाया ।

अभी भी अगर कान में भोजपुरी सम्राट भरत शर्मा के पुराने गाने या सातों रे बहिनिया का देवी पचरा सुनाई पड़ जाते है, कसम से रोंगटे खड़े हो जाते है । इस तरह से और भी कई कलाकार जैसे सुपरस्टार गायक पवन सिंह, गायक,नायक व सांसद मनोज तिवारी , खेसारी लाल यादव, अरविंद अकेला कल्लूजी, कल्पना जी और भी बहुत सारे कलाकार है जिनकी कला से एक खास जनसमूह अभिभूत है ।

मुझे आज भी याद है साल 2008 का वह दिन सिमरी दूधिपटी के पेट्रोल पंप पर जब मानस सम्राट स्व श्री गायत्री ठाकुर जी राजा हरिश्चन्द्र का संवाद पर चर्चा और गायन कर रहे थे । कुल दर्शको की संख्या करीब 1500 था, प्रसंग के दौरान जब राजा  हरिश्चन्द अपने मृत बालक के अंतिम संस्कार करने के दौरान भी कर की माँग करते है लाख पत्नी के परिचय के बाद नहीं छोड़ते है । इस प्रसंग के अंतिम समय में ऐसा माहौल बना की गायक स्व श्री गायत्री ठाकुर से साथ साथ सारे दर्शको के आँखों से आँसू निकल आये ।

आज भोजपुरी ऐसी भाषा बन गई है जो लाखो लोगो के  रोजगार का जहां साधन है वही करोड़ो लोगो के मनोरंजन का अहम साधन भी है । अब भोजपुरी भाषा की ऊचाई भोजपुरी भाषियों के सर चढ़ बोल रही है और लोगो को पहले की तरह बोलने में जरा भी हिचक नही होती वरना पहले भोजपुरी भाषियों को असभ्य और असहाय की कातर नजरो से लोग देखते थे ।

भोजपुरी गायक, नायक व सांसद श्री मनोज तिवारी जी का भी एक कार्यक्रम जो बक्सर किला के मैदान         " व्याघ्रसर महोत्सव" में हुआ था हमलोग 8 लड़के 25 km दूर से उन्हें देखने के लिए पहुँचे थे । कार्यक्रम तक पहुचने में जो हमने परेशानी उठाई थी वो दिन आज भी याद है । लगभग 10 km की दूरी डुमराँव स्टेशन तक  डाक बम चाल में गए थे । फिर वहाँ से ट्रेन में बक्सर और फिर स्टेशन के किला का मैदान । रात करीब 1130 बजे मनोज भैया का आगमन हुआ और सुबह के 0400 कैसे बज गए पता ही नही चला । वाकई गायक नायक और भोजपुरी के महानायक मनोज तिवारी जी पर ईश्वर की असीम कृपा है ।

बिहार में 2009 -10 में बाढ़ आई थी । बाढ़ में हुए नुकशान में राहत के लिए मोइनुल हक स्टेडियम में भारतीय खिलाड़ी आये थे और टिकट 500, 200 और 100 रुपये के थे हम लोगो ने भी 100 का टिकट लेकर भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों को देखने पहुँचे थे । गौतम गंभीर की गम्भीरता उस समय जगजाहिर थी । मैच शुरू हुआ और लगभग गौतम गंभीर 38 रन बना कर आउट हो गए । पवेलियन जाने के क्रम में लोगो ने आटोग्राफ लेने के लिए सैकड़ो की संख्या में बैरियर तोड़ फील्ड में पहुच गए । सभी खिलाड़ी भाग गए और लोग बहुत ज्यादा होने की वजह से पुलिस भी अपना हाथ खड़ा कर दी । लेकिन मानना होगा गायक व नायक मनोज तिवारी जी के माइक हाथ मे लेते ही और पूरब के बेटा हमनी के कहल जाला सुनते ही सैकड़ो लोग अपने अपने जगह पर बैठ गए । किसी तरह मैदान खाली हुआ ।

अब तो जैसे हिंदी सिनेमा का फ़िल्म फेस्टिवल अवार्ड विदेशो में होता है ठीक भोजपुरी फ़िल्म फेस्टिवल अवार्ड भी विदेशी सरजमी पर होना शुरू हो गया है पिछला दो भोजपुरी फ़िल्म फेस्टिवल अवार्ड का कार्यक्रम यूट्यूब के माध्यम से देखा, बहुत अच्छा लगा।
अब तो केवल एक ही मुराद बाकी है , भारतीय भाषा के आठवी अनुसूची में भोजपुरी भाषा का नाम अंकित हो जाये ,जो भाषा के सम्मान की बात होगी ।

कल गोपालगंज के भोजपुरी गायक और स्टूडियो संचालक विनय बिहारी की हत्या की घटना सुनकर दिल पर गहरा चोट आया । ऐसे कलाकारों की हत्या अगर इसी तरह होते रहेगी तो एक दिन हमारे भाषा के अस्तित्व का क्या होगा ??

Tuesday 15 August 2017

स्वतंत्रता दिवस

आज 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री के भाषण समारोह में जाने का मन था पर सुबह डयूटी होने के चलते नही जा सका, भाषण किसी तरह से बाद में अपने ही एक साथी के जियो टीवी के माध्यम से थोड़ा बहुत देखा तबतक आधा से ज्यादा भाषण खत्म हो चुका था ।

जैसे ही रूम में आया कुछ दोस्तों का प्लान "टॉयलेट - एक प्रेम कथा मूवी देखने को था तो किसी को आजादी के खुशी में झूम उठने को और बचे कुछ को शाम को होने वाले इंडिया गेट का कार्यक्रम देखने को था पर सब के सब आपसी उधेड़बुन में ही खत्म हो गया  । चारपाई पर सोकर आज का दिन बीतने लगा ।

समय शाम के 6 बज रहा होगा वैसे तो दिन भर आस पड़ोस में देशभक्ति डीजे पर बजते सुनाई दिए ,हालांकि हमलोगो ने भी अपने छोटे से होम थियेटर बजा कर ही देशभक्ति लहरों में उछल कूद किये पर जैसे ही एक अजब सा जोश लिए प्रतिध्वनि कानों में गूँजी खुद को छत पर जाने से रोक नही सका ।

छत पर पहुचते ही देखा बहुत सारे लोग अपने अपने छतों पर तिरंगे लहरा रहे थे, डीजे में कोई देश भक्ति गीत बजा रहा था तो कोई नए नए हिंदी गानो को करतल ध्वनि के साथ पूरे वातावरण में खुशी की छटा बिखेर रहा था । कुछ छोटे छोटे बच्चे हाथों में झंडे लिए और चेहरे पर भी तिरंगा के छाप जड़े खूबसूरत दिख रहे थे तो दूसरी तरफ सभी उम्र के लोग अलग अलग रंगबिरंगी पतंग उड़ा रहे थे । उन सब को देखकर एक अलग तरह की खुशी का संचार हो रहा था । हमलोगों ने भी खूब पतंग उड़ाए और मैंने 2 पतंग काटा और 3 कटवाए ।

समय बीतता गया और अँधेरे होने लगे इसी बीच कुछ बच्चों में लाइट वाला पतंग उड़ाने लगे । आज पहली बार मैंने ऐसा पतंग देखा जो चारो तरफ से कागज से घेरकर और बीच मे किसी कपड़े में केरोसिन या पेट्रोल डालकर उड़ाया जाता है । इसे उड़ाने से पहले कुछ देर तक जला कर स्थिर रखा जाता था और धुवाँ जमा होने के साथ ही यह आकाश में स्वतः उड़ने लगता है ।

अब समय शाम के 0730 बज चुके थे और लोगो ने अभी भी अपनी खुशी को अविराम रखते हुए । आकाशीय पटाखा छोडने लगे, जो आसमान में जाकर सात रंगों में बिखेर कर अलग अलग तरह का डिजायन और कला दिखा रहा था तो कही छोटे बच्चे छुरछुरी और अनार वाला पटाखा जलाते दिखे । पूरा शहर अपने आन बान और शान से आज स्वतंत्रता दिवस मनाते दिखा ।

सच कहूँ तो मैंने पहली बार ऐसा नजारा दिखाई दिया । हमलोगों ने भी बचपन मे बहुत सारे राष्ट्रीय पर्व मनाये पर उस समय ध्वजारोहण के बाद चार पांच झांकिया हो जाती थी जिसमे परिवार के सदस्य भी जाते थे और बुंदिया या जलेबी खाकर दिन की पूर्णाहुति हो जाती थी। खैर खुशी इजहार करने का सबका अलग अलग तरीका है पर आज का दिन बेहद अहम रहा । इसके लिए मैं ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूँ साथ ही भारत माता के वीर सपूतों को नमन करता हु जिन्होंने देश को अंग्रेजो की दासता से मुक्त कराया और हमे आजाद भारत मे स्नेह, सौहार्द,प्रेम ,भाईचारा व हक से रहने का मार्ग प्रशस्त किया ।

जय हिंद ।।

Sunday 13 August 2017

टॉयलेट : एक हास्य कथा

दिल्ली मेट्रो में हर स्टेशनों पर टॉयलेट का उचित प्रबंध है,जिसकी ज्यादातर जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल संस्था को दिया गया है ।

बताते चले कि सुलभ देश के स्वच्छ भारत अभियान में अहम भूमिका निभा रही है चाहे शहरों के सार्वजनिक संस्थान हो या कोई रेलवे स्टेशन वाले जगह या कोई सार्वजानिक बाजार ,इनके साथ साथ विदेशी सरजमी पर भी  यह स्वच्छ्ता का लोहा मनवा चुकी है, का श्रेय श्री डॉ विन्देश्वरी पाठक (बिहार) को जाता है जिन्हें देश में तो सम्मानित किया ही गया है और सयुक्त राष्ट्र ने भी उन्हें पुरस्कृत किया है ।

साथ ही यह भी बता दे कि दिल्ली मेट्रो में सुलभ के जितने भी शौचालय है उनके सीट पच्छिमी शैली वाले है एक भी भारतीय  शैली वाले नही है जिसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोई भी व्यक्ति जो आसानी से शौचालय में  बैठ नही सकता इससे आसानी से बैठ जाता है और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी उचित प्रबंध किया गया है । कई सज्जन व्यक्ति यहाँ आकर भारतीय शैली के सीट लगाने के लिए अपना शिकायत दर्ज भी करते है ।

अब चलते है मुख्य अंश पर जिसकी वजह से हम इसे हास्य कथा का नाम दिया गया है ।

मैं दिल्ली के ऐतिहासिक जगहों पर घूमने में खुद को माहिर समझता हूँ और अब तक शायद ही कोई ऐसा जगह होगा जहाँ नही गया होगा । अब तक 4 बार अक्षरधाम , 3 बार कुतुबमीनार, 3 बार लाल किला, 7 बार इंडिया गए घूमने गया हूँ इस तरह से आप समझ सकते है । बात दो दिन पहले की है मेट्रो में सफर के दौरान शाम 5 बजे लोक कल्याण मार्ग मेट्रो स्टेशन पहुँचा, मूड आया कि थोड़ा फ्रेश होने के बाद ही कही घूमने चला जायेगा ।

टॉयलेट में जाने के बाद ब्लड का प्रेशर, बीपी, और धड़कन से जैसे ही राहत मिली ध्यान समाने बंद दरवाजे पर गया । वैसे सार्वजिनक शौचालयों में खुराफाती दिमाग वाले लोगों की कमी नही है कुछ लोग दोहे शायरी लिखकर चले आते है जैसे उनहे  शायरी वही याद आती है या कोई कॉल गर्ल का नम्बर लिख देते है व अभद्र चित्र बना देते है ,ऐसे ही एक शख्स ने शौचालय में अपने दिमाग का सही प्रयोग कर लिखा था

"दुनिया कहाँ से कहाँ चल गई तू अभी यही बैठा है "

पढ़कर पल भर के लिए सोच में पड़ गया तब तक एक दम ऊपर में एक लाईन और लिखा था ।

"जितना जोर यहाँ लगाते हो उतना पहले कही और लगाया होता तो कुछ बन जाता ।

एक बार भी जोर से हँसी आई और ठहाका मार कर मैं हँसने लगा और जैसे ही बाहर निकला एक शख्स बड़ी ध्यान में मुझे देख रहा है । खुद को थोड़ा शर्म महसूस हुआ पर मैं खुश था ।

।।आभार ।।

Wednesday 9 August 2017

ईश्वर का शुक्रगुजार

दोस्तों । यह सच कहा गया है कि एक सच्चा दोस्त हजार दवाओं का स्वरूप होता है इसकी विवेचना निम्नलिखित वाक्यों में करना चाहूंगा ।

बात दिनांक 06 08 17 की है । मेरी ड्यूटी मॉर्निंग पारी में थी ,रात में देर से सोने की वजह से व सुबह के कुछ सुनहले सपनों के बाद भूत प्रेत की दुनिया मे शामिल होने के उपरांत सुबह 5:50 बजे आँखे खुली, पूरा बदन दर्द से टूट रहा था मानो  सपनों में हुए क्रांतिकारी परिवर्तन हकीकत में तब्दील हो चुका है । जैसे ही घड़ी पर निगाह गई फटाफट जल्दी से तैयार हुआ । 

हालाँकि ड्यूटी समय से तो पहुँच गया पर पूरी ड्यूटी 7 घंटे के दौरान कुल 3 बार  काफी पिया । कुछ लोगो का ऐसा मानना है कि कॉफ़ी पीने  से बदन दर्द दूर होता है पर ऐसा मुझे नही लगा ।

ड्यूटी के बाद सही सलामत रूम पहुंचा और बिना लंच किये ही सो गया । 

सोशल मीडिया के कुछ दोस्तो  से जल्दी  ही स्वस्थ होने की उम्मीद लगाई साथ ही मित्रता दिवस की सबको हार्दिक बधाई दी । कुछ दोस्तों ने ईश्वर से जल्दी से स्वस्थ होने की कामना  भी  की ।जैसे ही इसकी खबर हमारे मित्र मनीष कुमार को लगी फटाफट तैयार होकर हम दोनों अस्पताल के लिए रवाना हुए ,रविवार का दिन होने की वजह से आसपास के अस्पताल बन्द थे इसलिए समय शाम 6:30  बजे नज़दीक के ही एक मेडिकल स्टोर से दवा लिए ।किसी तरह वापिस रूम आकर 1 सेव व 2 बिस्किट लिए पर खाया नही गया , 3 मोटी मोटी चादर ओढ़कर व दवा खाकर 20 मिनट सोने के बाद मेरा पूरा बदन पानी पानी हो चुका था और बहुत ही गंदी बु आ रही थी ,जैसे ही सर को बाहर निकाला ,राहत मिला ।रात में जब सभी दोस्तों को देखा तो उनके उत्साह से जो खुशी मिली,जिसका वर्णन क़ाबिले  तारीफ वाली थी । मैं सभी दोस्तों के साथ मिलकर डिनर किया ।और सच कहूँ तो दोस्ती के दिन दोस्तों के साथ रहने का सुखद अहसास हुआ ।मैं आभारी हूं अपने मित्र मनीष कुमार,विजय कुमार, राजु कुमार, पंकज कुमार, चंदन कुमार,प्रिंस कुमार सज्जन सिह व राजेश कुमार।

अगर किसी को सच्चा दोस्त मिल गया तो संसार मे उससे बड़ा कोई उपहार नही ।

सुजीत कुमार पांडेय "छोटू"