Wednesday 30 August 2017

राजा भोज की भोजपुरी

भोजपुरी भाषा का नामकरण कन्नौज के राजामिहिर भोज के नाम पर भोजपुर बसा था। इस मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता और परमानंद पांडेय हैं। परमानंद पांडेय के अनुसार “ गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है। मिहिरभोज का शासनकाल सन् 836 ई. के आसपास माना जाता है।
भोजपुरी एक बहुत ही सुनदर, मीठा, सरस्, और मधुर भाषा है ।  भोजपुरी बोलने वालों की संख्या बंगाली, गुजराती, मराठी से कम नही है ।

कोई भी भाषा इसकी बराबरी नही कर सकता है और सबसे अच्छी बात है कि इसकी हर एक बात को जितनी सुसज्जित , सुव्यवस्थित व संरंचित रूप से पिरोया गया है कि इसकी बराबरी कोई कर ही नही सकता है ।

#कुछ हिंदी और भोजपुरी के शब्दों के अंतर नीचे दिए गए है ।

* पति पत्नी में कभी झगड़ा नही, रागारा होता है।

*हम चाय में रोटी बोर कर खाते है । छुआना/ लगाना /स्पर्श करना हिंदी में होता है । बोरना का मतलब है चाय का रोटी से पूरी तरह सम्मिलन होना और रोटी में डुबोये गये भाग का अंश पूरी तरह भीग जाना ।

* हम खून बहाते नही चुवा देते है ।

*कोई इंग्लिश में  throat ,हिंदी में गला बोलता है हम जानते है कि गला ही नही इसमें  नरेटी भी होता है जिसके दबने से मौत हो जाती है ।

* नोचना यह होता है जो कोई दाँत से हमला करता है या चोंच से पर हम हाथ के नाखून से बकोट देते है अभी एक और शब्द है खरकोचना जो हिंदी के रगड़ना से अलग है । जिसका कोई इंग्लिश या हिन्दी नही है ।

* चहैट लेना/ लहटे लेना :- हिंदी में इसका अर्थ है किसी चोर को दौड़ाकर तब तक पीछा करना जबतक चोर पकड़ा न जाये ।

भोजपुरी भाषी की संख्या- 7 करोड़ (2001)
बोलने वाले देश - भारत, नेपाल, मारीशस, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबेको

भोजपुरी क्षेत्र

बिहार :- बक्सर, सारन, गोपालगंज,पूर्वी चंपारण,         पच्छमी चम्पारण,वैशाली, भोजपुर, रोहतास,

उतर प्रदेश: - बलिया, वाराणसी, चंदौली, गोरखपुर, महाराजगंज, गाजीपुर, मिर्जापुर,मऊ,सिद्धार्थनगर इलाहाबाद,जौनपुर,फैजाबाद, बस्ती, बहराइच, प्रतापनगर,
झारखंड :-पलामू, गढ़वा

नेपाल :- वीरगंज, नवरासी, चितवन, रुपनदेही, कपिलवस्तु, पसी, रौतहट , बारा

#कुछ लोग का कहना है कि भोजपुरी गानो में अश्लीलता बहुत है व बहुत ही भद्दे गाये जाते है पर मेरा दावा है कि आज के दौर में दो चार फ़िल्म जैसे दंगल, सुलतान और टॉयलेट प्रेकथा इत्यादि फिल्मों को छोड़ दिया जाय तो शायद ही कोई फिल्म परिवार में बैठकर  देखा जा सकता है । @ जैसे हिंदी गायको में किशोर कुमार जी, लतमंगेशकर जी प्रसिद्ध है ठीक वैसे ही भोजपुरी जगत में गला सम्राट भरत शर्मा व्यास, श्रीमती शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी, गोपाल राय, और गायत्री ठाकुर सहित कलाकारों के स्वरों से भोजपुरी की मिट्टी से भीनी भीनी सुगंध का एहसास कराएगी और ऐसा लगेगा जैसे सरसों की कली से गुलाब के फूल का सुगंध से वातावरण सुवासित हो रहा है ।

श्रीमती शारदा सिन्हा जी के भोजपुरी जगत में योगदान उल्लेखनीय व अविस्मृत है । आज भी घरों में सोहर,खेलवना, शादी के गीत घर घर की महिलाओं को कंठस्थ है और भोजपुरी संस्कृति का धरोहर है तो वही
स्व श्री गायत्रि ठाकुर जी का रामायण, महाभारत,  इत्यादि प्रसंग प्रेरणा का स्रोत है ।

भोजपुरी स्टेज पर जहाँ श्री भरत शर्मा, शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी, रविकिशन, किशोर कुणाल, निरहुआ जैसे कलाकर हो मंच रंगमंच में तब्दील हो बिहार की मिट्टी की खुशबू से सरोकार हो जाता है ।

"कहवाँ से जीव आइल, कहँवा समाइल हो।
कहवाँ कइल, मोकाम, कहवाँ लपटाइल हो।
निरगुन से जीव आइल, सरगुन समाइल हो,
कायागढ़ कइल मोकाम, माया लपटाइल हो।।"
तिवारी 2014

प्रारंभिक काल (1947 से 1961 ले): भोजपुरी क पहिला उपन्यास बिंदिया 1956 में छपल लेकिन भोजपुरी कहानी क शुरुआत अवध बिहारी सुमन क रचना 'जेहलि क सनदि' से मानल जाला जेवन 1948 में छपल रहे।
मध्य काल (1961 से 1974 ले): एह काल में भोजपुरी में लगभग दस गो उपन्यास छपल। एह समय की प्रमुख उपन्यासन में बा : थरुहट के बबुआ और बहुरिया (1965),
जीवन साह (1964), सेमर के फूल (1966), रहनिदार बेटी (1966), एगो सुबह, एगो साँझ (1967), सुन्नर काका (1979)। ए उपन्यासन में अधिकतर सामजिक उपन्यास हवें। 'थरुहट के बबुआ और बहुरिया के भोजपुरी में आंचलिक उपन्यास कहल जाला।
आधुनिक काल (1975 की बाद): एह काल में लगभग बीस गो से अधिका उपन्यासन के रचना आ प्रकाशन भइल।
फुलसुंघी (1977), भोर मुसुकाइल (1978), घर टोला गाँव (1979), जिनिगी के राह (1982), दरद के डहर (1983),
अछूत (1986), महेन्दर मिसिर (1994), इमरितिया काकी (1997), अमंगलहारी (1998), आव लवटि चलीं जा (2000), आधे-आध (2000) इत्यादि उपन्यास एह काल के प्रमुख उपन्यास बा।

बता दे कि भोजपुरी की ही यह धरती है जो बिस्मिल्लाह खान जैसे शहनाई वादक पैदा किया  जो भारत ही नही बल्कि विश्व मे अपना पहचान बनाया । भोजपुरी की धरती को अगर बिस्मिल्लाह खान के नाम पर भोजपुरी साँस्कृतिक केन्द्र खोल दी जाय और नए कलाकारों को गीत संगीत में मौका दिया जाय तो भोजपुरी भाषा की उत्थान विश्व धरा पर अलौकिक पहचान बिखेर सकता है ।

No comments:

Post a Comment