दिल्ली मेट्रो में हर स्टेशनों पर टॉयलेट का उचित प्रबंध है,जिसकी ज्यादातर जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल संस्था को दिया गया है ।
बताते चले कि सुलभ देश के स्वच्छ भारत अभियान में अहम भूमिका निभा रही है चाहे शहरों के सार्वजनिक संस्थान हो या कोई रेलवे स्टेशन वाले जगह या कोई सार्वजानिक बाजार ,इनके साथ साथ विदेशी सरजमी पर भी यह स्वच्छ्ता का लोहा मनवा चुकी है, का श्रेय श्री डॉ विन्देश्वरी पाठक (बिहार) को जाता है जिन्हें देश में तो सम्मानित किया ही गया है और सयुक्त राष्ट्र ने भी उन्हें पुरस्कृत किया है ।
साथ ही यह भी बता दे कि दिल्ली मेट्रो में सुलभ के जितने भी शौचालय है उनके सीट पच्छिमी शैली वाले है एक भी भारतीय शैली वाले नही है जिसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोई भी व्यक्ति जो आसानी से शौचालय में बैठ नही सकता इससे आसानी से बैठ जाता है और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी उचित प्रबंध किया गया है । कई सज्जन व्यक्ति यहाँ आकर भारतीय शैली के सीट लगाने के लिए अपना शिकायत दर्ज भी करते है ।
अब चलते है मुख्य अंश पर जिसकी वजह से हम इसे हास्य कथा का नाम दिया गया है ।
मैं दिल्ली के ऐतिहासिक जगहों पर घूमने में खुद को माहिर समझता हूँ और अब तक शायद ही कोई ऐसा जगह होगा जहाँ नही गया होगा । अब तक 4 बार अक्षरधाम , 3 बार कुतुबमीनार, 3 बार लाल किला, 7 बार इंडिया गए घूमने गया हूँ इस तरह से आप समझ सकते है । बात दो दिन पहले की है मेट्रो में सफर के दौरान शाम 5 बजे लोक कल्याण मार्ग मेट्रो स्टेशन पहुँचा, मूड आया कि थोड़ा फ्रेश होने के बाद ही कही घूमने चला जायेगा ।
टॉयलेट में जाने के बाद ब्लड का प्रेशर, बीपी, और धड़कन से जैसे ही राहत मिली ध्यान समाने बंद दरवाजे पर गया । वैसे सार्वजिनक शौचालयों में खुराफाती दिमाग वाले लोगों की कमी नही है कुछ लोग दोहे शायरी लिखकर चले आते है जैसे उनहे शायरी वही याद आती है या कोई कॉल गर्ल का नम्बर लिख देते है व अभद्र चित्र बना देते है ,ऐसे ही एक शख्स ने शौचालय में अपने दिमाग का सही प्रयोग कर लिखा था
"दुनिया कहाँ से कहाँ चल गई तू अभी यही बैठा है "
पढ़कर पल भर के लिए सोच में पड़ गया तब तक एक दम ऊपर में एक लाईन और लिखा था ।
"जितना जोर यहाँ लगाते हो उतना पहले कही और लगाया होता तो कुछ बन जाता ।
एक बार भी जोर से हँसी आई और ठहाका मार कर मैं हँसने लगा और जैसे ही बाहर निकला एक शख्स बड़ी ध्यान में मुझे देख रहा है । खुद को थोड़ा शर्म महसूस हुआ पर मैं खुश था ।
।।आभार ।।
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