Thursday, 19 September 2019

#दिल्ली

जब भी मुबारक पुर चौक के फ्लाईओवर से गुजरता हूँ ऐसा लगता हैं तुमको बहुत दूर किये जा रहा हूँ खुद से..

तब खुद का खुद के लिए होना नहीं होता हैं तुम्हारे लिए होता हैं.. मजबूरियों से लड़ रहा मैं केवल अकेला ही नहीं न जाने कितने होंगे इस शहर में..



रोज दूर चले जाता हूँ तुम्हें छोड़कर और कुछ ही घंटों में वापिस आके मिल लेता हूँ.  इन मिलने-जुलने और बाद में बिछड़न से बनी दूरी एहसास कराती हैं तुम्हारी मधुता का, अपनत्व का और एक प्रेमी मन का जो उत्कट आकांक्षाओं में भी तुम्हे खोजता रहता हैं।

 बड़ा अजीब हुनर हैं तुममें.
 मैं तुझमें नहीं तुम मुझमें बसती हैं बरबस और बेहिसाब-सी।

जी करता हैं जीभर जिऊँ,  तुममें तुमतक होकर और जिंदगी बस तुमतक ही हो।

वीरान सी दुनिया में अपलक से भागती दौड़ती तो कभी हँसती मुस्कुराती तमाम तरह की अठखेलियाँ बसती हैं तुममें।


कुछ तो हैं कि बिसरती नहीं तुम, कितना भी भूलाये समा लेती हो अपने आपा में जहाँ न हम हम होते हैं और न कोई और दिखता कहीं।


एक बहुत बड़ी भीड़ हैं जो तुम्हें हर वक़्त नजरें टिकाए रखती हैं न दूर जाने देना चाहती हैं नजरों से.... बड़ी मुश्किल हैं इन जिंदगी के तमाशबीन दौर में सुलझना क्योंकि पता नहीं एक कूड़ा के ढेर मानिंद दिखते हैं विशाल पर, ये रहबर नहीं यहाँ के, बस मुफ़ीद हैं कुछ दिनों के..


तुम मुझसे प्यार करते हो या शहर से??
शहर से; क्योंकि मेरा शहर तुम हो..

#दिल्ली
एक बात पूछूं
नहीं, मुझे कुछ नहीं बताना।

ठीक हैं।

दो दिन बाद


मुझे एक जानकारी लेना था.
क्या??
नहीं कुछ!


No comments:

Post a Comment