Sunday 10 September 2017

ग्रामीण परिदृश्य भाग 3 रामलखन की कहानी ।

​अब तक आप सब भाग 1 और भाग 2 पढ़ चुके है आप सभी ने मुझे एक ऐसा हौसला दिया है जिसकी वजह से मेरी लेखनी पहले से कुछ ज्यादा ही स्पष्ट और सुसज्जित हो चुकी है ।


शाम का वक्त था। सूरज ढल रहा था। समंदर अंगड़ाई ले रहा था। किनारे लगे खजूर और पाम के पेड़ों से हवाएं सरसराती हुई बातें कर रही थी। फिजाएं मानों गुलाबी रंग से सराबोर थी। रामलखन जीवन के 25 बसंत पार कर दिल में हजारों उमंगें लिए अब कश्मीर की वादियों में अलोन अलोन फिलिंग करने लगा था । उसके मन मे अभी भी प्रकृति की हरियाली और खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य की खुशबू अपने भावों में समेट लेती थी । अगले दिन खुद को तन्हाई से उबरने के लिए, मन्फेरवट करने के लिए  (हिंदी अंग्रेजी से अलग भोजपुरी ) पास से 20 km की दूर, प्रिय साथी मोहित को लेकर पैराडाईज हॉल में फ़िल्म देखने निकलता है ।

फ़िल्म शुरू हुई, तकरीबन 40 मिनट तक फ़िल्म देखने के बाद कहानी के दौरान हुए एक मोड़ ने उसे अपने बीते हुए दिनों को याद दिला दिया । पल भर के आंखे नम हो गई और जैसे ही इंटरवल होने के समय हॉल से बाहर निकला, खुद को रोक नही सका। बाहर लगी दुकानों से एक सिंगरेट का पॉकेट और लाइटर लाया, एक बार मे 2 दो सिगरेट लेकर ऐसा कस खिंचता जैसे अपना कलेजा जला लेगा और नशे में उन्मत हो खुद को संभाल नही पायेगा । मोहित ने उसको समझाते हुए वापिस हॉल में ले जाकर बैठाया ।

"इश्क़ की जब आंधी आती है तो ज्ञान के सारे दीपक बुझ जाते है ।"


प्यार के नशे में उन्मत को रात में दिन और दिन में तारे नजर आने लगते है  । तारे जमी पर लाने का हौसला होता है पर अब सारे सँजोये ख्वाब टूट चुका होता है बस तन्हा तन्हा जिंदगी गुजारनी पड़ती है । दुनिया मे हर मर्ज की दवा मिल सकती है पर इश्क़ की नही ।स्वभाव से सीधा साधा, सभ्य और साहसी लड़के का सब्र का बाँध टूट चुका था ।  रामलखन को बस जिंदगी और मौत में कोई खास अंतर नही दिख रहा था बस एक ही ख्वाईश थी बस एक बार फगुनिया कॉल उठाकर बोल देती ...

भक्क, आप कैसे है जी,कुछ भी बोलते रहते है ।  लाजो नही लगता है ।


जहाँ पहले

गोरिया चाँद के अंजोरिया नियर गोर बाडू हो तहार जोड़ केहू नइखे बेजोड़ बाड़ू हो ।

जान मारे ललकि ओढनिया, लाली पप लागेलु के सुनहरे धुन बजता था अब

काहे के राम जी दिल ई बनवले हो ऊपर से प्रेम वाला रोग धरवले हो
प्रेम ना रही त केहू परी ना झमेल में फाँसी ना लगाइ ना कटाइट जा के रेल में गाना बजने लगे ।

अगले ही कुछ मिनटों में अपने SAMSUNG GLAXY NOTE 4 को सड़क पर धड़ाम से पटक देता है और वाइन BLINDER की बोतल लेकर आता है। ये सब क्या हो रहा है आये थे दिल बहलाने, बहक बैठे । अगर मोहित न हो तो शायद रात में भी वापस आना मुमकिन नही होता ।

और गलती भी क्या थी ?? बस रामलखन के घर वालो को जब ये खबर लगा कि फगुनिया (राजेश की साली) से इल्लु इल्लु का प्रेम प्रसंग जारी है । अब ये भला रामलखन की पिता  को कैसे बर्दाश्त होने वाला था । समाज मे राजपूत समाज की नाक कट जाती, जो मूछ पर ताव देकर 12 लाख नगद, appache  बाइक के साथ सोने की सिकड़ी का जो डिमांड था वो सब पूरा कैसे हो पाता । घर परिवार सब की भौंहें तन गई, अगले ही आधे घंटे में वे राजेश के घर पहुच कर बेबजह उलझ पड़ते है, गाँव वालों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है । तू तू मैं मैं होते ही बात आगे झगड़ा लड़ाई की नौबत आ जाती है । गाँव के सरपंच रामेश्वर चौबे आ जाते है साथ में कुछ और बड़े बुजुर्ग आकर इज्जत प्रतिष्ठा की बात कर  किसी तरह मामला शांत कराते है ।

आज सुबह से ही फगुनिया का दाहिना हथेली जोर जोर से खुजल रहा है और दाहिना आँख भी फड़फड़ा रहा है । किसी तरह खाना पीना बना,सबको खिला पिलाकर नहा धोकर काली मइया और बरहम बाबा का पूजा पाठ करती है कि आज रामलखन का फ़ोन आ जाये तब कुछ भविष्य के बारे में बात करेंगे । फैमिली प्लानिंग, और अपना घर परिवार का सुख दुख से सब कुछ कह डालेंगे । हालाँकि मोबाइल में पैसा तो नही है पर miss कॉल मारेंगे तो क्या पता कहा होंगे, ड्यूटी में होंगे तो बात कैसे होगा । इसी ऊहापोह में सोचती है तब तक दीदी का फ़ोन आ जाता है । फ़ोन दीदी का समझकर खुश होकर जैसे ही फगुनिया फ़ोन उठाती है । उधर से उनके ससुर पापा से बात कराने को बोलते है फिर क्या था भला बुरा हैन तेन लालटेन सब कुछ हो जाता है । पंक्ति में वर्णन करना आवश्यक नही है । घर मे सब दुखी हो जाते है ऐसे मौहाल में फगुनिया भला क्या कर सकती, पापा के शर्मिंदा होने पर फगुनिया खरी खोटी सुनती है और ऐसा बर्दाश्त नही होता है । पूरा दिन सोचती है फिर अंत मे खुद को इस गुनाह का हकदार समझ जीवन की लीला समाप्त करना चाहती है ।

भाग 4 में हम फिर आगे की कहानी बताएंगे ।
आप सबका बहुत बहुत आभार .......🙏🙏🙏🙏🙏

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