हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ।
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सिंगल रूम का कमरा हैं,
उसी में सब कुछ करना हैं,
रहना, खाना, पीना, सोना,
पांच हजार जिसका भरना हैं।
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ ।
बीबी को शहर घुमाया नहीं,
कोई मॉल-वॉल दिखाया नहीं,
बच्चे का एडमिशन कराया नहीं,
घर खर्च भी पूरा हुआ नहीं।
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ!
जब दोस्त कोई भी आता हैं,
फ़ोन करके बतियाता हैं,
कहता हैं अबे तू कहाँ हैं?
मिलता नहीं,रहता कहाँ हैं?
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ।
एक नौकरी के बाद दूसरी,
सोचता हूँ, कर लूँ तीसरी,
घर खर्च बमुश्किल चलता हैं,
जैसे- तैसे दिन कटता हैं।
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ।
अभी महीना लगा नहीं,
मालिक आ धमकता हैं,
अब बकाया खत्म कर दो,
राशन वाला भी कहता हैं।
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ।
घरवाले भी आस लगाते हैं,
इस बार होली अच्छी होगी,
बेटा जब दिल्ली से आयेगा,
सबको कपड़ा सिलवायेगा।
हाँ, मैं दिल्ली में रहता हूँ।
:- सु जीत पाण्डेय "छोटू"
Really , The poem well expresses the problems faced by a student while studying far from home
ReplyDelete.
Thnk u ...
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