Friday, 20 September 2019

पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!

पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!

कमली अपने चार भाई-बहन में दूसरे नंबर की थी। बहुत नटखटी, बातूनी और पूरे घर की दुलारी.. बात भी करती तो तुनक तुनक कर ऐसे जैसे सबकी नानी हैं।
अभी आठ बरस की ही थी कि पढ़ाई के साथ रसोई में मम्मी के सारे कामों में हाथ बटाती थी और सबसे मेन काम था उसका बरतन माँजना. ऐसे भी बच्चों की सहनशक्ति और व्यवहार को माँ बाप पहले ही भाँप लेते हैं और उसी के अनुसार उसे काम दिया जाता हैं।
रामेश्वर बड़का बाबूजी के घर से रोज दूध लाना हो या घर में कभी नमक, कभी हरी मिर्च या फिर धनिया पता आदि घर में न रहने पर पड़ोस से उधार लाने के लिए उसे ही अक्सर भेजा जाता। अपने घर के साथ-साथ आस पड़ोस की भी वह लाड़ली थी।
घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.पापा खेती-बधारी करते थे जिससे साल भर के लिए अनाज तो हो जाता लेकिन कभी कुछ पैसे की भी जरूरत पड़ती तो अनाज दो-तीन बोड़ा बेचने के बाद ही घर का काम चलता।
अब धीरे-धीरे चारो भाई बहन बड़े हो गए थे।  भाई था जो स्नातक करने और भर्ती के लिए भाग दौड़ करने के बाद भी कोई जॉब नहीं मिल रहा था. बड़ी बहन शादी करने के लायक भी हो गई थी और ऐसे में घर को एक ठोस आर्थिक मदद की जरूरत थी.
बड़ी बहन की शादी काफी रुपया पैसा कर्ज लेने के बाद संभव हुई अब तक उसके समझ में इतनी बात तो घर कर गई थी कि अब आगे की स्थिति और भी विकट आने वाली हैं।
बिना किसी ट्यूशन के ही बारहवीं (प्लस-टू) की पढ़ाई पास की, वह भी अच्छे नम्बर से.. सब उसकी बौद्धिक क्षमता से अवाक थे।
घर की परिस्थितियों से विवश आत्मबल से खड़ा होने की ठानी..उसे देश के लिए सेवा करने का बहुत मन था.. जब भी गाँव के लड़कों को सेना की वर्दी देखती उसका भी मन भी करता की
काश!
मैं भी देश की सेवा करती, बर्दी पहनती, 26 जनवरी के दिन राजपथ पर जैसे बाकी लड़कियां सैल्यूट करती हैं, मैं भी करती और घर की सारी जिम्मेदारियां चाहे दादी की इलाज का खर्च हो या बड़ी बहन की शादी में गिरवी रखीं ज़मीन को वापिस लेना, सबकुछ उठा लेती।
किसी सहेली से मालूम चला कि  सिपाही पद की भर्ती निकली हुई हैं..उम्र अभी हाल ही में 18 बरस की हुई थी लेकिन घर में किस से कहे कि मैं सेना में भर्ती होना चाहती हूँ..
किसी तरह साहस जुटाकर मम्मी से बताई और बात पूरे घर मे फैल गई...
लड़की को पुलिस/ सेना में जाना घर पर इज्ज़त के धब्बा जैसा था. खबर बड़े भाई के कान में पहुँची तो आकर खूब डांट फटकार लगाया लेकिन कमली की जिद्द के आगे उसका गुस्सा सिफर था और माँ ने हामी भर दी..
भरने दो जब इसका मन हैं तो.. मनमोहन चाचा की लड़कियां पुलिस में ही न है.. जरूरी थोड़ी है कि फॉर्म भरेगी और जॉइनिंग हो ही जायेगा..
धीरे-धीरे समय बिता और वह सभी फिजिकल के ईवेंट्स में पास कर खुशी खुशी घर लौटी साथ में उसके पापा भी थे.. वे भी बेटी की करतब और साहस से खुश थे लेकिन बड़ा भाई थोड़ा दुखी था।
मार्च का 19 तारीख पूरे घर के लिए एक सुखद संदेश लेकर आया.. डाक बाबू एक चिट्ठी लेकर घर आया और दूर से कमली को देखते ही जोर से चिल्लाया..
अरे कमली तू तो सिपाही बन गई.. पापा तुम्हारे कहाँ हैं?? उनसे मिठाई खाना बाकी  हैं बस.
कमली को अगले महीने की 10 तारीख को हैदराबाद ट्रेनिंग के लिए जाना था.. घर में कभी खुशी कभी गम का माहौल था.. ससुराल जाकर रुलाने वाली लड़की पिछले चार दिन से पुरे परिवार को रुला रही थी..
जॉइनिंग में जाने के लिए दु बोड़ा गेंहू बेचकर नया बैग, ब्रश कोलगेट, हॉर्लिक्स, किसमिश, चना और कुछ कपड़ों सहित उसका सबसे प्रिय एक बोतल आम का आचार रखा गया।
बाप बेटी घर से ट्रेनिग के लिए रवाना हुए और रोया घर के साथ साथ पूरा आस पड़ोस.. इतनी छोटी उमर में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलना बहुत बड़ी बात थी..
रुलाई से निकली यह आँसू किसी ससुराल की विदाई से कम नहीं था.. कमली किसी तरह पूरे परिवार को समझाती रही और पर भाई की आँख से आँसू देखकर खुद को नहीं रोक पाई..
क्या करूँ मैं??
न जाऊँ...
भाई भी विवश था बहन को भेजने के लिए अब इतना दूर जहाँ उसकी बहन का ख्याल रखने वाला कोई अपना न था..माँ के जोर जबर्दस्ती करने पर किसी तरह से की-पैड वाला सैमसंग का मोबाइल दिया पर उसमें डलने वाला सिम उसके प्यार को नम कर देने वाला था..
आँसू पोछते हुए बैग उठाया और भारी पैर रखते हुए बस स्टेशन और उसके बाद दानापुर स्टेशन पहुँचा..
गाड़ी तीन घंटे लेट थी..
बहुत सारी बातें हुई. भाई लगातार समझाते बुझाते रहा कि गाड़ी के आने का अनाउंस हो गया..
बाप बेटी के साथ ट्रैन में आगे चलकर और भी कुछ लड़कियाँ और उसके परिजन दिखे..उनकी आपस मे भेंट मुलाकात हुई.. और अब धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा था.. इतनी लड़कियों को देखकर बाप के मन मे कुछ सुकून और अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था.
गाड़ी अपने गंतव्य पर पहुँचने को थी ही कि कमली अपने सारे समान इकठ्ठा कर लिया.. एक एक कर रही बेटी की गतिविधि को पापा गौर से देख रहे थे.. और मन ही मन कह रहे थे.
मेरा एक बेटा नहीं, दो बेटे हैं।
अन्ततः ट्रेनिंग सेंटर के गेट पर जब सामान लेकर सभी लड़कियां गेट के भीतर जा रही थी और उनके परिजन भावुक होकर नमी आखों से बेटियों को विदा कर रहे थे..
हरदम हँसकर बेफिक्र रहने वाली बेटी गेट से भागकर आई और पूछने लगी..
"पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!"
दोनों वही फुट-फुटकर रोने लगे..
✍️सु जीत, बक्सर..
भाग-1 .. इंतजार कीजिये अगले पोस्ट के लिए..

Thursday, 19 September 2019

#दिल्ली

जब भी मुबारक पुर चौक के फ्लाईओवर से गुजरता हूँ ऐसा लगता हैं तुमको बहुत दूर किये जा रहा हूँ खुद से..

तब खुद का खुद के लिए होना नहीं होता हैं तुम्हारे लिए होता हैं.. मजबूरियों से लड़ रहा मैं केवल अकेला ही नहीं न जाने कितने होंगे इस शहर में..



रोज दूर चले जाता हूँ तुम्हें छोड़कर और कुछ ही घंटों में वापिस आके मिल लेता हूँ.  इन मिलने-जुलने और बाद में बिछड़न से बनी दूरी एहसास कराती हैं तुम्हारी मधुता का, अपनत्व का और एक प्रेमी मन का जो उत्कट आकांक्षाओं में भी तुम्हे खोजता रहता हैं।

 बड़ा अजीब हुनर हैं तुममें.
 मैं तुझमें नहीं तुम मुझमें बसती हैं बरबस और बेहिसाब-सी।

जी करता हैं जीभर जिऊँ,  तुममें तुमतक होकर और जिंदगी बस तुमतक ही हो।

वीरान सी दुनिया में अपलक से भागती दौड़ती तो कभी हँसती मुस्कुराती तमाम तरह की अठखेलियाँ बसती हैं तुममें।


कुछ तो हैं कि बिसरती नहीं तुम, कितना भी भूलाये समा लेती हो अपने आपा में जहाँ न हम हम होते हैं और न कोई और दिखता कहीं।


एक बहुत बड़ी भीड़ हैं जो तुम्हें हर वक़्त नजरें टिकाए रखती हैं न दूर जाने देना चाहती हैं नजरों से.... बड़ी मुश्किल हैं इन जिंदगी के तमाशबीन दौर में सुलझना क्योंकि पता नहीं एक कूड़ा के ढेर मानिंद दिखते हैं विशाल पर, ये रहबर नहीं यहाँ के, बस मुफ़ीद हैं कुछ दिनों के..


तुम मुझसे प्यार करते हो या शहर से??
शहर से; क्योंकि मेरा शहर तुम हो..

#दिल्ली
एक बात पूछूं
नहीं, मुझे कुछ नहीं बताना।

ठीक हैं।

दो दिन बाद


मुझे एक जानकारी लेना था.
क्या??
नहीं कुछ!