Wednesday 8 November 2017

हैप्पी हैप्पी माई डिअर

चिंटूआ कल से ही घर में उत्पात मचा के रखा है कि हम भी इस बार दोस्तों के साथ गंगा जी के किनारे जाकर फर्स्ट जनवरी का पार्टी मनायेंगे । जब काका को इस बात का खबर लगा तो बोले की पार्टी अऊर गंगा जी के तीरे ....ई कैसा पार्टी है । किस बात का पार्टी अऊर गंगा जी के किनारे काहे ?
कलुआ बोला काका कल फस्ट जनवरी नु है इसी का पार्टी ...
 काका सहम गए फर्स्ट जनवरी का पार्टी गंगा जी के किनारे काहे ...मना कर दिए कि अभी एक तारीख को पिंसिन मिलेगा त पैसा होगा अभी हमारा हाथ खुद ही खाली है ।
फर्स्ट जनवरी आने का इंतज़ार हर किसी को होता है । चाहे सुदूर गाँव-गिराज के लोग हो या शहर के ...
चहल पहल सब जगह दिखाई पड़ती है । 31 दिसंबर को सबकी सेटिंग् रहती है । पार्टी मनाने का जुनून सबके सर पर शुमार रहती है । कोई  मनाने के लिए गोआ जाता है तो कोई सिक्किम ,कोई हिमाचल की तराईयों में तो कोई नदी, तालाब या नहर का किनारे ही सही । आने वाला साल खुशनुमा हो, बेहतर और फलदायक हो इसकी आस लगाए रहते है ।
आपस में एक बहस होती है, 2015 मेरे लिए अच्छा नही था, 2016 ठीक था मेरा ख्वाब पूरा हुआ था , 4 साल जीतोड़ मेहनत करने के बाद नौकरी मिली थी और नया जमीन भी खरीदा था,लेकिन 2017 उतना अच्छा नही रहा । 2017 तो विराट कोहली के लिए अच्छा था क्योंकि इतनी सुंदर अनुष्का मिली । रोहित शर्मा के लिए भी ठीक रहा क्योंकि इसने भारत का नाम रोशन किया और इस साल सबसे ज्यादा छक्का मारकर  नाम कमाया,इत्यादि चर्चा करते रहते है ...
पार्टी की मनाने की सोच में अचानक धियान 2012 में चला गया । हाय रे दइया ...कहाँ गये वो सब दिन जब हम पूजावा को वेलेंटाइन कार्ड देने के चक्कर मे खूब कुटाये थे । क्या प्यार था इसके बाद पियार पर यकीन नही हुआ तो उसने काली माई अऊर बरहम बाबा का किरिया खिया के यकीन दिलाई थी कि सूरज पूरब से पच्छिम उग सकता है लेकिन खखनु हम तोहरे प्यार के बिना नही .... दिल के बेचैनी अऊर धड़कन के आवाज करेजा पर कान रखकर रहरी में सुनती थी । खखनु भी फर्स्ट जनवरी के दिन बगसर पिपरपाती रोड से गुरहिया जलेबी अऊर समोसा लेकर चुपके से साझी के साढ़े सात बजे दिए थे ..  उस समय पियार का जुनून बाजार से शुरू और बाजार में खत्म हो जाता था ... एक बार दर्शन के लिए चौक चैराहे पर घंटो बैठकर आँखे इंतज़ार में अंधी और कान बहरे हो जाते थे ... का बात है ललन के लइकवा रोज चौक पर ही बैठा रहता है ...    तब अब के जइसा फेसबुक, भटसेप नही था।
जरा सोचिए, फर्स्ट जनवरी को हम सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई भाई पर्व की तरह क्यों मनाते है ? सीधा जबाब है हम टीवी, अखबार में देखते है, पढ़ते है कि बड़े बड़े लोग टीवी पर प्रोग्राम के जरिये मनोरंजन करते है, कंपनियां नए साल का ऑफर देती है, पब, बार, रेस्टोरेंट वाले सजाकर रखते है और ग्राहकों को लुभाते है इत्यादि से ग्रसित होकर पार्टी का आयोजन करते है पर पार्टियां भी ऐसी जिसमे लाखों बेजुबानों की बलि चढ़ा दी जाती है, मैकडॉनल्ड्स, बेगपिपर, वोडका और न जाने कितने नशीले पदार्थों के माध्यम से एक रात में लोग लाखों रुपये पानी की तरह बहा देते है । पोस्ट का मतलब ये नही है कि आप इस दिन शराब मत पियो, मुर्गा मांस मत खाओ बल्कि मतलब यह है कि इस दिन नये नए लड़को को बेबड़ा बनने के लिए प्रेरित न करो ।
अगर सच मे फर्स्ट जनवरी मनाना है तो माँ बाप की सेवा करो, पूरे परिवार के साथ किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा घूमने जाओ, ठिठुरते ठंड में जरूरत मंदो को कंबल दो, भूखे प्यासे को भूख मिटाकर तृप्त कराओ ताकि माँ-बाप, गरीबो से आपके लिए दिल से दुआ निकले और यही दुआ आपको नए साल के लिए खुशियों की सौगात लाएगी ।


मित्रों, अगर नए साल में कुछ बदलाव लाना तो अपने मित्रों, परिवारजनों, और सगे संबंधियों के बीच हुए वाद-विवाद को मिटाकर गले लगाओ साथ ही प्रतिज्ञा करो कि हम एक दूसरे के सुख-दुख में परस्पर शामिल रहेंगे और खुशियो के साथ भेदभाव जैसी विसंगतियों, देश की कुप्रथाओं को जड़ से उखाड़ फेकेंगे ।
यही सुविचार के साथ ...नव वर्ष की अग्रिम बधाई।
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