यह दूरियां अक्सर मुझे सताती है
वक्त-बेवक्त खुद-ब-खुद आकर तन्हाइयों से सराबोर कर देती है
विचलित,बेबस, बेपरवाह और आवारा मन उसके ओत-प्रोत होने के लिए व्याकुल रहता है
और इतना कुछ होना भी लाजमी है
पर खुद को क्या पता की जिंदगी इस कदर पराया बना देगी।
क्या एक तल्ख दीदार करने से भी खुद को जुदा कर देगी?
आंखों का बरबस यादों में समाए रखना और नींद का भी इस कदर जुदा हो जाना, बड़ा अजीब और गजब का समन्वय इन यादों और आँखों का है ।
मुस्कुराते हुए संजीदे चेहरे और चेहरे पर घिरे हुए बाल जिसकी महक आज के गुजरे कल की यादों का गुलाम बना बैठा हैं ।
आज तक तकते इन सुनहरे ख्वाबों को कैसे समझाऊं
कि जिस पर तुम्हें इतना गुमान था वह एक कोरी काल्पनिक है ।
आज भी भला कैसे भूल सकता हूं उन चेहरे की भाव भंगिमा और निश्चल आंखों को, जो पल भर में गंगा- यमुना की अविरल धारा एक साथ प्रवाहित कर देती थी और पलभर के लिए जीवन का सर्वस्व निछावर करने को मजबूर कर देती थी, जिसे शायद खुदा को भी एहसास ना हो । आंखों से आंखों का आकर्षण जो गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन होकर दूरियों को स्वतः ही कम कर देता था और पलभर के लिए देखकर हँसना और फिर बेबाक बोलते जाना ।
मनचली और कलकली सी आखों की टकटकी लगाकर देखना इस कदर बना देता था की जैसे चांद को देखते देखते ही चकोर पक्षी पूरी रात गुजार देता है ।
और अगले पल में मुस्कुरा के कह देना कि
भक्क,
ऐसे क्यों देखते हो। लगता है कि ......
बस इतना कहते 440 वोल्ट का करंट पूरे बदन में दौड़ जाना और पूरा बदन का सिहर जाना फिर खुद को सबसे बड़ा सौभाग्यशाली मानकर फुले ना समाना ।
यह मेरी पहली मुलाकात थी यकीनन मैं पहली बार कुछ ज्यादा ही डर गया था ।
बदन की बनावट कुछ इस तरह थी जैसे ईश्वर ने करोड़ों में एक बनाकर भेजा हो।
गहरी झील सी आंखें जिनमे ख्वाबों की नावे स्वतः ही गतिमान हो जाती है । पलकों की बनावट बिल्कुल मोरनी के पंख जैसे सावन महीने में मोर का पंख फैलाकर नृत्य के पश्चात शर्माते हुए पंखों को सिकोड़ लेना । पतली, लंबी और नुकीली नाक जो उभरे हुए चेहरे को चार चांद लगा देती है।
काले घने लंबे बाल और बालों में धारदार बनावट जो देखने में बिल्कुल अजीब सा लगता है चेहरे की लालिमा और शांतिप्रिय इस बात का एहसास करा रहा हो जैसे शालीनता और सुलक्षण और सुविचार से भरा हो ।
यकीन मानिए तो एक कोरी कल्पना है ।
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