Sunday 14 January 2018

काश गर मैं बेटा होती !

काश गर मैं बेटा होती!

माँ के सर  बोझ ना होती
पापा का सरदर्द ना होती
चैन- सुकुन से रह सकती
ये दुनिया ताने ना दे पाती।।
काश गर मैं बेटा होती !
मेरी माँ को ना झुकना पड़ता
डरके समाज में ना जीना होता
उन्मुक्त,आजाद परिंदे सी मैं भी
हर चाहत को पूरा कर पाती ।।
काश गर मैं बेटा होती!
कोई चाल चले या जाल बुने
ये साजिश भी ना सह पाती
माँ सहमी-सहमी रह जाती है
होठों से कुछ ना कह पाती है।।
काश गर मैं बेटा होती,
नित आंखो से नूर बहाती है
सबके ताने सुन रह जाती है
ये जख्म उसे भी न मिलता
उसको भी तो आदर मिलता।।
वो भी गर्व से रह पाती, काश अगर मैं बेटा होती!

कालिंदी पाठक

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