Thursday 4 January 2018

माँ यमुना साक्षात्कार- दिल्ली भाग 1

​ठिठुरती ठंड में रजाई से निकल कर संध्या की बेला में  यमुना के किनारे पहुँचा  ........ निगम बोध उत्तरी दिल्ली श्मशान स्थल ...; जहाँ पर लोग अपनी जीवन लीला अस्त कर अस्थि रूप लेकर सदा के लिए स्थिर हो जाते है । 

बड़ा ही अजीब दृश्य था । लोगों का मेला लगा हुआ था । एक के बाद एक आने जाने वालों की लगातार संख्या लगभग हजारो में थी । हालाँकि पुरुषों की तुलना में स्त्तियाँ कम थी । आने जाने वालों के मुँह से एक ही वाक्य निकल रहे थे । 


"राम नाम सत्य है"


और मुख्य द्वार पर ही लिखा था ।


"मुझे यहां तक पहुचाने के लिए शुक्रिया, इसके आगे हम अकेले ही चल जाएंगे"


वाकई बड़े से बड़े हस्ती वाले जिन्होंने महल और अटारी बना रखे हो या जिंदगी की सारी सुख-सुविधा मिल चुकी हो उनके परिजन मुख्य दरवाजों तक ही अपने मर्सिडीज कार ले आने की अनुमति है या फिर दूसरा जो चौक-चौराहों पर भीख मांग कर जीवन बिताया हो, दोनो के जीवन की लीला यही समाप्त होती है । राजा और रंक दोनो के लिए यहाँ कोई भेदभाव नही है। यहाँ जो भी आता है उसके घमंड और शौर्य की साहस चकनाचूर हो जाती । 


घाट पर कुत्ते, कौवे और बगुले मांस के लिए अपनी अपनी आस लगाए बैठे थे । क्षुधा तृप्ति के लिए लालायित को यदा कदा दो चार लठ खाना भी पड़ जाता था ।



यमुना घाट पहुँचने पर वहाँ बैठने के लिए बहुत सारे पत्थर के बेंच बनाया गया है, कुछ घंटे  गुजरने के बाद ठंड कुछ ज़्यादा ही लगने लगा । कुछ दूरी पर चार पाँच लोग अलाव जलाकर बैठे थे ।  माँ यमुना लहरों से बह रही ठण्डी हवाओं से ठंड ऐसा लग रहा था जैसे हवाओं का मिलन हड्डियों से हो रहा हो  । शाम के बाद अंधेरा होने लगा और शरीर मे आलस होने सोचते विचारते हुए ही न जाने कब नींद लग गई । जब आँखे खुली तो खुद को अकेला यमुना के तीर पाकर सहम गया । काफी देर सोचने के बाद भी यह वहम हो रहा था कि पूर्णमासी की चाँदनी रात में मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ।


पीछे की तरफ पांडवो के द्वारा बसाया गया विशाल नगर राजधानी इंद्रप्रस्थ की विशालता से अभिभूत होकर मुझे इस नगर के बारे में न जाने कहाँ से सोच आई । 


शीतल कलकल करती हुई माँ यमुना के सदृश्य हो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे मन मे उठे सवालों का जबाब यहाँ  मिल सकता है । तबतक यमुना नदी से बढ़ती आ रही धाराओं ने मुझे खुद में समाहित कर लिया । 

यह मेरे लिए एक अलग ही दुनिया से रुबरु करा रही थी। बैठे बैठे मुझे एक दिव्य प्रकाश दिखाई दिया  जिसपर नजर टिका पाना मुश्किल लग रहा था ।


दिव्य स्रोत से आ रही किरणों को देखकर मैं काफी डर गया ..और आस पास नजर दौड़ाया तो खुद को अकेला पा प्राण पखेरू उड़ गए ।


दिव्य पुंज से आवाज आई  ... 


डरो मत । ......................... वत्स ।


मैं   ...........कालिंदी हुँ।


मैं सूर्यपुत्री हुँ और मृत्यु के देवता यम की बहन हुँ । कृष्ण के ब्रज में "जमुना मैया" के नाम से जानी जाती हूँ । मैं  (कलिंद दुर्गम पर्वत से होकर यमुनोत्री के बंदरपूछ से होकर बहती हु) द्वापर युग से अब तक यहाँ बहती आई हूँ और नगर के लोगों के हर वक्त कल्याण की कामना करती हूँ । तुम्हारी उदासी को देख नही रहा गया । 


बोलो किस लिए चिंतित हो ? तुम्हे डरने की कोई जरूरत नही है ।

मैने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम किया और सहज भाव से बोल पड़ा। 

लहरों ने एक बार फिर से ऊपर उठकर मेरे पास आकर रुक गया । फिर आवाज आई ।

मैं - माते, आप गंगा मईया की तरह गोरी क्यों नही हो, आपका रंग स्यामल क्यों है ?

यमुना :-  पुत्र, मेरे पिता भगवान सूर्य है जो मेरी माँ छाया है । मेरी माँ श्यामल रंग की थी इन्ही का प्रभाव मेरे ऊपर पड़ा, इसलिये मैं श्यामल हूँ ।

मैं - माते मुझे इस नगर के बारे में विस्तृत जानकारी लेना चाहता हूँ । इतना कहते ही धाराओं की लहर ने मुझे तेज़ गति से बहती हुई आकर मुझे अपने आगोश में ले लिया और मेरी आँखों के सामने प्रकाश पुंज से एक स्यामल गौर स्त्री स्वरूप माँ का साक्षात दर्शन हुआ और मीठे स्वरों में बोली  ।

यमुना - पुत्र, मैं तुम्हारी सभी जिज्ञासाओं को पूरा करूँगी ।


मैं - जी, माते 


आगे की कहानी के लिए कृपया वक़्त लगेगा ।


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