""कुछ यादगार लम्हें .........की!!!!""
मुझे अच्छी तरह से याद हैं!!..
जब मैं पहली बार तुमसे मिला था! वो दिन बजट-सत्र का आखिरी दिन था और मैं पहली बार दिल्ली की जमीं पर कदम रखा था।
ना दिल में चैन था और ना मन को सुकून! हर वक़्त याद कर कर के मन विचलित और रूह परेशान था।
भला याद करूँ भी क्यों नहीं?!!..
तुम मेरे रूह में इस कदर समा गई थी, हमबिस्तर बन के। तुम्हारी जरा सी भी आहत मुझे बेचैन कर देती थी और मैं खोजने लगता था विकल होके, और तुम कही छुप जाती थी और हाँ...!!
मिलती कहाँ थी, आसानी से ....
असल में तुम्हारा और मेरा खून का रिश्ता जो ठहरा।
तुम्हारे छोटे छोटे दाँतो की काटी हुई चुभन का तो मैं मुरीद हो गया था !!, जहाँ भी काटती,,,, वहाँ का दाग भी कितना भयानक होता और ऐसे दाग को लोगों से छुपाना पड़ता वरना मेरी खिल्ली उड़ जाती।
पता हैं एक बार घर जो गया था। तुम्हारे शातिर बदमाशी को देखकर घर वाले भी हैरान थे। लाल-लाल के चकते जो इतने खतरनाक दिख रहे थे। जो जख्म हरे थे वे दवा लगाने के बाद भी जल्दी से ठीक नहीं हुए।
ख़ैर अभी कुछ चैन हैं जबसे चारपाई बदली हुई हैं।
#""खटमल की याद में""#
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