Thursday, 30 November 2017
जम्मू-कश्मीर भ्रमणकाल🏃🏃
Saturday, 25 November 2017
एक कशक :- कोशिश की
यह दूरियां अक्सर मुझे सताती है
वक्त-बेवक्त खुद-ब-खुद आकर तन्हाइयों से सराबोर कर देती है
विचलित,बेबस, बेपरवाह और आवारा मन उसके ओत-प्रोत होने के लिए व्याकुल रहता है
और इतना कुछ होना भी लाजमी है
पर खुद को क्या पता की जिंदगी इस कदर पराया बना देगी।
क्या एक तल्ख दीदार करने से भी खुद को जुदा कर देगी?
आंखों का बरबस यादों में समाए रखना और नींद का भी इस कदर जुदा हो जाना, बड़ा अजीब और गजब का समन्वय इन यादों और आँखों का है ।
मुस्कुराते हुए संजीदे चेहरे और चेहरे पर घिरे हुए बाल जिसकी महक आज के गुजरे कल की यादों का गुलाम बना बैठा हैं ।
आज तक तकते इन सुनहरे ख्वाबों को कैसे समझाऊं
कि जिस पर तुम्हें इतना गुमान था वह एक कोरी काल्पनिक है ।
आज भी भला कैसे भूल सकता हूं उन चेहरे की भाव भंगिमा और निश्चल आंखों को, जो पल भर में गंगा- यमुना की अविरल धारा एक साथ प्रवाहित कर देती थी और पलभर के लिए जीवन का सर्वस्व निछावर करने को मजबूर कर देती थी, जिसे शायद खुदा को भी एहसास ना हो । आंखों से आंखों का आकर्षण जो गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन होकर दूरियों को स्वतः ही कम कर देता था और पलभर के लिए देखकर हँसना और फिर बेबाक बोलते जाना ।
मनचली और कलकली सी आखों की टकटकी लगाकर देखना इस कदर बना देता था की जैसे चांद को देखते देखते ही चकोर पक्षी पूरी रात गुजार देता है ।
और अगले पल में मुस्कुरा के कह देना कि
भक्क,
ऐसे क्यों देखते हो। लगता है कि ......
बस इतना कहते 440 वोल्ट का करंट पूरे बदन में दौड़ जाना और पूरा बदन का सिहर जाना फिर खुद को सबसे बड़ा सौभाग्यशाली मानकर फुले ना समाना ।
यह मेरी पहली मुलाकात थी यकीनन मैं पहली बार कुछ ज्यादा ही डर गया था ।
बदन की बनावट कुछ इस तरह थी जैसे ईश्वर ने करोड़ों में एक बनाकर भेजा हो।
गहरी झील सी आंखें जिनमे ख्वाबों की नावे स्वतः ही गतिमान हो जाती है । पलकों की बनावट बिल्कुल मोरनी के पंख जैसे सावन महीने में मोर का पंख फैलाकर नृत्य के पश्चात शर्माते हुए पंखों को सिकोड़ लेना । पतली, लंबी और नुकीली नाक जो उभरे हुए चेहरे को चार चांद लगा देती है।
काले घने लंबे बाल और बालों में धारदार बनावट जो देखने में बिल्कुल अजीब सा लगता है चेहरे की लालिमा और शांतिप्रिय इस बात का एहसास करा रहा हो जैसे शालीनता और सुलक्षण और सुविचार से भरा हो ।
यकीन मानिए तो एक कोरी कल्पना है ।
Monday, 13 November 2017
शुभ बाल-दिवस🍖🍖🍝🍝🍭🍭
आज 14 नवंबर चाचा नेहरु जी का जन्मदिवस है । उनका छोटे छोटे बच्चों के प्रति प्यार दुलार, समर्पण, स्नेह और लगाव के रूप में ही बाल दिवस मनाया जाता है । यहाँ तक तो आप सब बखूबी जानते है पर चाचा नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री हुए थे बच्चों में देश के भविष्य के प्रति क्या भावना थी और क्या सपना पूरे होते हुए दिख रहे हैं ।
कहते है, शिक्षा ही देश को महान बनाता है । क्या वास्तविक शिक्षा देश के हर बच्चों को मिल रहा है ।
आधुनिक शिक्षा के परिवेश में शिक्षा का जिस तरह से व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो रहा है इस तरह से हर बच्चे को समुचित शिक्षा मिलना नामुमकिन है ।
नही । इसके बारे में चर्चा करना अभी बाकी है ।
वर्तमान समय मे सरकारी स्कूलों की बात की जाए तो ऐसा लगता जैसे खैरात में शिक्षा मिल रहा है और ख़ैरात की बात करे तो महज वह स्थान जहाँ केवल गरीबो के लिए दवा मिलने का केन्द्र है । जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता और भर्ष्टाचार से लिप्त कर्मी, विगत महीने ही जिले में किसी डॉक्टर साहेब को आशा कर्मी से लाखों रुपये गबन करते पकड़े गए ।
हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है इस दिन स्कुली बच्चों में खेलकूद से संबंधित प्रतियोगिता जैसे कबड्डी, खो-खो, दौड़ भाग और मनोरंजक गेम का आयोजन किया जाता है ।
अगर चाचा नेहरू के सपनों को सही साकार करना है तो स्कूलों का निजीकरण और व्यावसायिकरण को देश से हटाना होगा साथ ही सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को अपने कर्तव्यों के प्रति सही रूप से समर्पण करना होगा। हर सरकारी स्कूल के प्राथमिक विद्यालय से ही कंप्यूटर का ज्ञान कराना होगा, व्यावसायिक शिक्षक को रखना होगा और शिक्षा के क्षेत्र से धाँधली रोकनी होगी ।
।। शुभ बाल दिवस ।।
Wednesday, 8 November 2017
हैप्पी हैप्पी माई डिअर
काका सहम गए फर्स्ट जनवरी का पार्टी गंगा जी के किनारे काहे ...मना कर दिए कि अभी एक तारीख को पिंसिन मिलेगा त पैसा होगा अभी हमारा हाथ खुद ही खाली है ।
चहल पहल सब जगह दिखाई पड़ती है । 31 दिसंबर को सबकी सेटिंग् रहती है । पार्टी मनाने का जुनून सबके सर पर शुमार रहती है । कोई मनाने के लिए गोआ जाता है तो कोई सिक्किम ,कोई हिमाचल की तराईयों में तो कोई नदी, तालाब या नहर का किनारे ही सही । आने वाला साल खुशनुमा हो, बेहतर और फलदायक हो इसकी आस लगाए रहते है ।