Thursday, 30 November 2017

जम्मू-कश्मीर भ्रमणकाल🏃🏃

नवंबर 2014 में गुजरे वह दिन कैसे भुलाया जा सकता है ? हम अपने नौजवान साथियों के साथ जम्मू कश्मीर निकले थे । जैसा कि जम्मू-कश्मीर का नाम सुनते हैं हम पल भर के लिए सहम जाते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर की वादियों को देखने का बहुत दिन से ललक थी, वह समय आया।
नवंबर 2014 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव था । मुझे चुनाव ड्यूटी में जाने का मौका मिला, पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब,जहाँ सिख धर्म की जन्मस्थली मानी जाती है, से  शाम के 7:30 बजे बस पकड़ जम्मू के लिए रवाना हुए, जम्मू से मुझे डोडा जाना था । बस में सवार होते ही जब ऊना (हिम.प्रदेश) से आगे निकले खूबसूरत पहाड़ियों को देखकर  मन में तरह-तरह के सवाल पैदा होने लगे, बहुत सारे अच्छे तो कुछ बुरे भी। पहली बार और अकेला मैं जम्मू-कश्मीर के लिए निकला था ।  ठंड से बचने के लिए पहले से ही बेडिंग बाँध रखा था और निकलने के लिए स्लीपिंग बैग भी ले लिया।   मेरी बस रात के 1:30 बजे जम्मू बस स्टैंड पहुंची, जहां से दूसरे बस स्टैंड पहुंच कर वहां से टिकट लिया और हम डोडा जाने वाली बस पकड़ लिए। समय सुबह 3.30 बस खुल गई, मैंने कंडक्टर से कह कर खिड़की के बगल में सीट ले ली ।
कुछ ही घंटों में गहरी नींद आ गई और मैं सो गया । सुबह जब आंखें खुली तो दिल मचल उठा, देखा दाईं तरफ ऊंची ऊंची खूबसूरत पहाड़ियां और जिस पर लंबे-लंबे पेड़ लगे हुए थे। बड़ा ही मनोरम दृश्य था । प्रकृति का इतना सुंदर सौंदर्य पहली बार मैं अपनी खुली आंखों से देख रहा था । यकीन नहीं हो रहा था कि हमारे भारत में ऐसा भी सुंदर जगह है! वही बाएं तरफ जहाँ 60 से 70 फीट गहरा गहरी खाई दिखाई दिया तो डर लगा । इतनी गहराई की भगवान न करें कुछ हो जाता तो शायद पता लगाना भी मुमकिन नही । वाकई वहां के चलाने बस चालकों की कला की दाद देनी पड़ेगी । जलेबी कज तरह घुमावदार पतले उबड़-खाबड़ रास्तों में भी गजब का स्पीड और जान जोखिम में डालकर चलाने वाली कला को देखकर दंग रह गया । भगवान की कृपा से सुबह 8:30 बजे मैं डोडा पहुंचा । बस से जैसे उतरा बगल में गहरे नीली रंग की चिनाब नदी को देखकर दिल प्रसन्न हो उठा। बचपन मे जो नदी किताबों में पढ़ा था, देखने का सपना पूरा हुआ ।
जम्मू पहुंचते ही मोबाइल का SIM काम करना बंद कर दिया था यह भी एक संकट से कम नहीं था क्योंकि डोडा जहां मुझे बस ने उतारा था वहां से 7 किलोमीटर दूर डोडा सिटी जाना था, लेकिन पता पूरी तरह से कंठस्थ था । पूरे 5 चरणों में हुए विधानसभा चुनाव में पांच जगह डोडा, अनंतनाग,मंडी, कुपवाडा और जम्मू घूमने का जो आनंद आया, वह स्मरणीय हैं । मंडी में भारतीय जवानों से मिलकर बहुत खुशी मिली ।  हाड़ कंपा देने वाली ठंड में माइनस 10 डिग्री पर सुबह के समय पूरी धरती बर्फ से पट जाती थी और सूर्य की किरणों की चमक से आंखें चौकाचौंध हो जाती थी । बर्फ के साथ खेलना भी काफी सुखद रहा।
5 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर चढ़ने पर प्राण पखेरू के उड़ जाने जैसा हालात होना तो वही संकरी और ऊंचे- नीचे पहाड़ों से बने हुए रास्ते में चलकर गंतव्य स्थान तक पहुँचना और पहाड़ियों में जोर जोर से चिल्लाने के साथ आवाज की प्रतिध्वनि वापिस लौट कर आना,बहुत अच्छा लगा । हारे-थके झरने का पानी  और रास्ते में बच्चों से पानी मंगा मंगा कर पीने यादें आज भी जवाँ हो जाती है । जम्मू में एक ग्रामीण भाई का प्यार देखकर बीते समय याद आ जाते है ।

ठंडी ज्यादा होने की वजह से रोज-रोज नहाना मुमकिन नहीं था पर चश्मे का ऐसा चस्का था कि रोज नहा लेते थे । चश्मा एक ऐसा हौज होता है जो झरने से गिरते हुए पानी को रोकता है और यहां का पानी इतना ठंडा नहीं होता । जम्मू कश्मीर में भी जाकर मां वैष्णो देवी का दर्शन न कर पाना बहुत बड़ा अफसोस रह गया ।

#वादी_ए_कश्मीर 

धरती का साक्षात स्वर्ग  कश्मीर की वादियों में इन अद्भुत और ख़ुशनुमा नजारा स्वयः को गौरव से अभिभूत करा देता हैं । 

ईश्वर ने अगर कही कड़ाके की तपती धूप दिया तो कही हाड़ काँपा देने वाली ठंड, जहाँ रेगिस्तान ही रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ मांसिराम जैसे बरसाती मौसम । मानिये तो चहु ओर प्रकृति में अलग-अलग विविधता उसी तरह दिखाई देती है जैसे हमारे धर्मो की विविधता है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, जैन इत्यादि और इन सबके ऊपर एक समान सामाजिक समरसता, धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा, प्रेम, व स्नेह-सौहार्द ।।

सचमुच भारत वर्ष में ही रहकर मनचाहे इच्छित जगहों का रसानुभूति कर सकते है, किसी और देश की तरफ मुड़कर देखने की  जरूरत नही हैं ।

।। धन्य भाग हे भारतमाता, आपसे हमे है अद्भुत नाता ।।

सचमुच धरती का स्वर्ग कही है तो जम्मू- कश्मीर में है।

(आलेख में अज्ञानवश कुछ त्रुटि हुई हो तो क्षमा चाहता हूँ),🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, 25 November 2017

एक कशक :- कोशिश की

यह दूरियां अक्सर मुझे सताती है
वक्त-बेवक्त खुद-ब-खुद आकर तन्हाइयों से सराबोर कर देती है
विचलित,बेबस, बेपरवाह और आवारा मन उसके ओत-प्रोत होने के लिए व्याकुल रहता है

और इतना कुछ होना भी लाजमी है
पर खुद को क्या पता की जिंदगी इस कदर पराया बना देगी।

क्या एक तल्ख दीदार करने से भी खुद को जुदा कर देगी?

आंखों का बरबस यादों में समाए रखना और नींद का भी इस कदर जुदा हो जाना, बड़ा अजीब और गजब का समन्वय इन यादों और आँखों का है ।

मुस्कुराते हुए संजीदे चेहरे और चेहरे पर घिरे हुए बाल जिसकी महक आज के गुजरे कल की यादों का गुलाम बना बैठा हैं ।

आज तक तकते इन सुनहरे ख्वाबों को कैसे समझाऊं
कि जिस पर तुम्हें इतना गुमान था वह एक कोरी काल्पनिक है ।

आज भी भला कैसे भूल सकता हूं उन चेहरे की भाव भंगिमा और निश्चल आंखों को, जो पल भर में गंगा- यमुना की अविरल धारा एक साथ प्रवाहित कर देती थी और पलभर के लिए जीवन का सर्वस्व निछावर करने को मजबूर कर देती थी, जिसे शायद खुदा को भी एहसास ना हो  । आंखों से आंखों का आकर्षण जो गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन होकर दूरियों को स्वतः ही कम कर देता था और पलभर के लिए देखकर हँसना और फिर बेबाक बोलते जाना ।

मनचली और कलकली सी आखों की टकटकी लगाकर देखना इस कदर बना देता था की जैसे चांद को देखते देखते ही चकोर पक्षी पूरी रात गुजार देता है ।

और अगले पल में मुस्कुरा के कह देना कि
भक्क,

ऐसे क्यों देखते हो। लगता है कि ......

बस इतना कहते 440 वोल्ट का करंट पूरे बदन में दौड़ जाना और पूरा बदन का सिहर जाना फिर खुद को सबसे बड़ा सौभाग्यशाली मानकर फुले ना समाना ।

यह मेरी पहली मुलाकात थी यकीनन मैं पहली बार कुछ ज्यादा ही डर गया था ।

बदन की बनावट कुछ इस तरह थी जैसे ईश्वर ने करोड़ों में एक बनाकर भेजा हो।

गहरी झील सी आंखें जिनमे ख्वाबों की नावे स्वतः ही गतिमान हो जाती है । पलकों की बनावट बिल्कुल मोरनी के पंख जैसे सावन महीने में मोर का पंख फैलाकर नृत्य के पश्चात शर्माते हुए पंखों को सिकोड़ लेना । पतली, लंबी और नुकीली नाक जो उभरे हुए चेहरे को चार चांद लगा देती है।

काले घने लंबे बाल और बालों में धारदार बनावट जो देखने में बिल्कुल अजीब सा लगता है चेहरे की लालिमा और शांतिप्रिय इस बात का एहसास करा रहा हो जैसे शालीनता और सुलक्षण और सुविचार से भरा हो ।

यकीन मानिए तो एक कोरी कल्पना है ।

Monday, 13 November 2017

शुभ बाल-दिवस🍖🍖🍝🍝🍭🍭

आज 14 नवंबर चाचा नेहरु जी का जन्मदिवस है । उनका छोटे छोटे बच्चों के प्रति प्यार दुलार, समर्पण, स्नेह और लगाव के रूप में ही बाल दिवस मनाया जाता है । यहाँ तक तो आप सब बखूबी जानते है पर चाचा नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री हुए थे बच्चों में देश के भविष्य के प्रति क्या भावना थी और क्या सपना पूरे होते हुए दिख रहे हैं ।

कहते है, शिक्षा ही देश को महान बनाता है । क्या वास्तविक शिक्षा देश के हर बच्चों को मिल रहा है ।
आधुनिक शिक्षा के परिवेश में शिक्षा का जिस तरह से व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो रहा है इस तरह से हर बच्चे को समुचित शिक्षा मिलना नामुमकिन है ।

नही । इसके बारे में चर्चा करना अभी बाकी है ।

वर्तमान समय मे सरकारी स्कूलों की बात की जाए तो ऐसा लगता जैसे खैरात में शिक्षा मिल रहा है और ख़ैरात की बात करे तो महज वह स्थान जहाँ केवल गरीबो के लिए दवा मिलने का केन्द्र है । जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता और भर्ष्टाचार से लिप्त कर्मी,  विगत महीने ही जिले में किसी डॉक्टर साहेब को आशा कर्मी से लाखों रुपये गबन करते पकड़े गए ।

हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है इस दिन स्कुली बच्चों में खेलकूद से संबंधित प्रतियोगिता जैसे कबड्डी, खो-खो, दौड़ भाग और मनोरंजक गेम का आयोजन किया जाता है ।

अगर चाचा नेहरू के सपनों को सही साकार करना है तो स्कूलों का निजीकरण और व्यावसायिकरण को देश से हटाना होगा साथ ही  सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को अपने कर्तव्यों के प्रति सही रूप से समर्पण करना होगा।  हर सरकारी स्कूल के प्राथमिक विद्यालय से ही कंप्यूटर का ज्ञान कराना होगा, व्यावसायिक शिक्षक को रखना होगा और शिक्षा के क्षेत्र से धाँधली रोकनी होगी ।

।। शुभ बाल दिवस ।।

Wednesday, 8 November 2017

हैप्पी हैप्पी माई डिअर

चिंटूआ कल से ही घर में उत्पात मचा के रखा है कि हम भी इस बार दोस्तों के साथ गंगा जी के किनारे जाकर फर्स्ट जनवरी का पार्टी मनायेंगे । जब काका को इस बात का खबर लगा तो बोले की पार्टी अऊर गंगा जी के तीरे ....ई कैसा पार्टी है । किस बात का पार्टी अऊर गंगा जी के किनारे काहे ?
कलुआ बोला काका कल फस्ट जनवरी नु है इसी का पार्टी ...
 काका सहम गए फर्स्ट जनवरी का पार्टी गंगा जी के किनारे काहे ...मना कर दिए कि अभी एक तारीख को पिंसिन मिलेगा त पैसा होगा अभी हमारा हाथ खुद ही खाली है ।
फर्स्ट जनवरी आने का इंतज़ार हर किसी को होता है । चाहे सुदूर गाँव-गिराज के लोग हो या शहर के ...
चहल पहल सब जगह दिखाई पड़ती है । 31 दिसंबर को सबकी सेटिंग् रहती है । पार्टी मनाने का जुनून सबके सर पर शुमार रहती है । कोई  मनाने के लिए गोआ जाता है तो कोई सिक्किम ,कोई हिमाचल की तराईयों में तो कोई नदी, तालाब या नहर का किनारे ही सही । आने वाला साल खुशनुमा हो, बेहतर और फलदायक हो इसकी आस लगाए रहते है ।
आपस में एक बहस होती है, 2015 मेरे लिए अच्छा नही था, 2016 ठीक था मेरा ख्वाब पूरा हुआ था , 4 साल जीतोड़ मेहनत करने के बाद नौकरी मिली थी और नया जमीन भी खरीदा था,लेकिन 2017 उतना अच्छा नही रहा । 2017 तो विराट कोहली के लिए अच्छा था क्योंकि इतनी सुंदर अनुष्का मिली । रोहित शर्मा के लिए भी ठीक रहा क्योंकि इसने भारत का नाम रोशन किया और इस साल सबसे ज्यादा छक्का मारकर  नाम कमाया,इत्यादि चर्चा करते रहते है ...
पार्टी की मनाने की सोच में अचानक धियान 2012 में चला गया । हाय रे दइया ...कहाँ गये वो सब दिन जब हम पूजावा को वेलेंटाइन कार्ड देने के चक्कर मे खूब कुटाये थे । क्या प्यार था इसके बाद पियार पर यकीन नही हुआ तो उसने काली माई अऊर बरहम बाबा का किरिया खिया के यकीन दिलाई थी कि सूरज पूरब से पच्छिम उग सकता है लेकिन खखनु हम तोहरे प्यार के बिना नही .... दिल के बेचैनी अऊर धड़कन के आवाज करेजा पर कान रखकर रहरी में सुनती थी । खखनु भी फर्स्ट जनवरी के दिन बगसर पिपरपाती रोड से गुरहिया जलेबी अऊर समोसा लेकर चुपके से साझी के साढ़े सात बजे दिए थे ..  उस समय पियार का जुनून बाजार से शुरू और बाजार में खत्म हो जाता था ... एक बार दर्शन के लिए चौक चैराहे पर घंटो बैठकर आँखे इंतज़ार में अंधी और कान बहरे हो जाते थे ... का बात है ललन के लइकवा रोज चौक पर ही बैठा रहता है ...    तब अब के जइसा फेसबुक, भटसेप नही था।
जरा सोचिए, फर्स्ट जनवरी को हम सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई भाई पर्व की तरह क्यों मनाते है ? सीधा जबाब है हम टीवी, अखबार में देखते है, पढ़ते है कि बड़े बड़े लोग टीवी पर प्रोग्राम के जरिये मनोरंजन करते है, कंपनियां नए साल का ऑफर देती है, पब, बार, रेस्टोरेंट वाले सजाकर रखते है और ग्राहकों को लुभाते है इत्यादि से ग्रसित होकर पार्टी का आयोजन करते है पर पार्टियां भी ऐसी जिसमे लाखों बेजुबानों की बलि चढ़ा दी जाती है, मैकडॉनल्ड्स, बेगपिपर, वोडका और न जाने कितने नशीले पदार्थों के माध्यम से एक रात में लोग लाखों रुपये पानी की तरह बहा देते है । पोस्ट का मतलब ये नही है कि आप इस दिन शराब मत पियो, मुर्गा मांस मत खाओ बल्कि मतलब यह है कि इस दिन नये नए लड़को को बेबड़ा बनने के लिए प्रेरित न करो ।
अगर सच मे फर्स्ट जनवरी मनाना है तो माँ बाप की सेवा करो, पूरे परिवार के साथ किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा घूमने जाओ, ठिठुरते ठंड में जरूरत मंदो को कंबल दो, भूखे प्यासे को भूख मिटाकर तृप्त कराओ ताकि माँ-बाप, गरीबो से आपके लिए दिल से दुआ निकले और यही दुआ आपको नए साल के लिए खुशियों की सौगात लाएगी ।


मित्रों, अगर नए साल में कुछ बदलाव लाना तो अपने मित्रों, परिवारजनों, और सगे संबंधियों के बीच हुए वाद-विवाद को मिटाकर गले लगाओ साथ ही प्रतिज्ञा करो कि हम एक दूसरे के सुख-दुख में परस्पर शामिल रहेंगे और खुशियो के साथ भेदभाव जैसी विसंगतियों, देश की कुप्रथाओं को जड़ से उखाड़ फेकेंगे ।
यही सुविचार के साथ ...नव वर्ष की अग्रिम बधाई।
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