Thursday 3 May 2018

!! मेरी रूह !!

* मेरी रूह *
मेरी रूह बसती है उस दुवार पर,
जहाँ रोज सुबह के आठ बजे सुकुरती डेरा डालती है। और जब वो पूँछ हिलाते हुए पहुँचती है, तो माँ कहती है

"जा एगो रोटी दे दऽ, बेचारी भूखाइल होई"

मेरी रूह बसती है उस घर में,
जहाँ पेट भरने के बाद भी माँ जबरदस्ती अपने हाथों से ठूँस-ठूँस कर खाना खिलाते हुए कहतीीm है..

"खा ल, काहे काहे चिंताऽ करत बाड़ऽ!,  तहरा कमाई के आसरा नइखे"

मेरी रूह बसती है वहाँ,
जहाँ एक गइया है जो सुबह-सुबह खाने के लिए मकई की टाटी पर पूँछ पटकती है और लेट होने पर अलार्म के तौर पर रंभाती है।

मेरी रूह बसती है उस खलिहान में,
जहाँ हम बचपन में क्रिकेट और बॉलीबाल खेलते थे। इस दौरान खेल गेंद किसी के पाथे हुए गोबर में चले जाने से उसे कचटने पर गालियाँ सुनकर हँसते थे।

"तब ना तो कोई अदब था और ना ही कोई गुरुर"

मेरी रूह बसती है ब्रह्म बाबा स्थान में,
जहाँ मेरा बचपन घोड़ा बैठने, लट्टू, गोली, चीका, कबड्डी खेलने में गुज़रा। वहाँ जब बारिस होती, तो बेंग की आवाज सुनने के लिए टाइम निकाल लेते और फुरसत से कागज की नाव बनाते।

" पूरे गाँव का आस्था और भक्ति का केन्द्र है"

मेरी रूह बसती है उस आँगन में,
जहाँ होली के दिन पंकजवा भाँग खाके अपना भउजी पर रंग से जादा गोबर उड़ेलकर होली खेलता था।

"तब ना आपस में बैर था, न कोई आशंका"

मेरी रूह बसती हैं मेरे गाँव गोप भरौली,सिमरी,बक्सर में,
जहाँ कोई आलीशान बिल्डिंग नहीं हैं,
गुजर-बसर करने लायक कुछ कच्चे-पक्के-करकट-माटी के मकान, जिन तक अभी पक्की सड़क नहीं पहुँची है, सुना है वो कहीं रास्ते में हैं

" पर बसता वहाँ सुकून हैं"

            :-  सुजीत पाण्डेय छोटू

【विशेष आभार:-  Sri Krishna Jee Pandey】

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