मन का राही
चल पड़ा हूँ बस कुछ सार्थक विचार और ढेर सारे सुनहरे सपनो से साथ
Sunday, 31 May 2020
गँगा दशहरा
Sunday, 10 May 2020
मदर्स डे स्पेशल
Wednesday, 6 May 2020
मच्छड़ हूँ!!
Friday, 20 September 2019
पापा। मुझे छोड़के चले जाओगे न!
मैं भी देश की सेवा करती, बर्दी पहनती, 26 जनवरी के दिन राजपथ पर जैसे बाकी लड़कियां सैल्यूट करती हैं, मैं भी करती और घर की सारी जिम्मेदारियां चाहे दादी की इलाज का खर्च हो या बड़ी बहन की शादी में गिरवी रखीं ज़मीन को वापिस लेना, सबकुछ उठा लेती।
न जाऊँ...
बहुत सारी बातें हुई. भाई लगातार समझाते बुझाते रहा कि गाड़ी के आने का अनाउंस हो गया..
Thursday, 19 September 2019
#दिल्ली
तब खुद का खुद के लिए होना नहीं होता हैं तुम्हारे लिए होता हैं.. मजबूरियों से लड़ रहा मैं केवल अकेला ही नहीं न जाने कितने होंगे इस शहर में..
रोज दूर चले जाता हूँ तुम्हें छोड़कर और कुछ ही घंटों में वापिस आके मिल लेता हूँ. इन मिलने-जुलने और बाद में बिछड़न से बनी दूरी एहसास कराती हैं तुम्हारी मधुता का, अपनत्व का और एक प्रेमी मन का जो उत्कट आकांक्षाओं में भी तुम्हे खोजता रहता हैं।
बड़ा अजीब हुनर हैं तुममें.
मैं तुझमें नहीं तुम मुझमें बसती हैं बरबस और बेहिसाब-सी।
जी करता हैं जीभर जिऊँ, तुममें तुमतक होकर और जिंदगी बस तुमतक ही हो।
वीरान सी दुनिया में अपलक से भागती दौड़ती तो कभी हँसती मुस्कुराती तमाम तरह की अठखेलियाँ बसती हैं तुममें।
कुछ तो हैं कि बिसरती नहीं तुम, कितना भी भूलाये समा लेती हो अपने आपा में जहाँ न हम हम होते हैं और न कोई और दिखता कहीं।
एक बहुत बड़ी भीड़ हैं जो तुम्हें हर वक़्त नजरें टिकाए रखती हैं न दूर जाने देना चाहती हैं नजरों से.... बड़ी मुश्किल हैं इन जिंदगी के तमाशबीन दौर में सुलझना क्योंकि पता नहीं एक कूड़ा के ढेर मानिंद दिखते हैं विशाल पर, ये रहबर नहीं यहाँ के, बस मुफ़ीद हैं कुछ दिनों के..
तुम मुझसे प्यार करते हो या शहर से??
शहर से; क्योंकि मेरा शहर तुम हो..
#दिल्ली
एक बात पूछूं
नहीं, मुझे कुछ नहीं बताना।
ठीक हैं।
दो दिन बाद
मुझे एक जानकारी लेना था.
क्या??
नहीं कुछ!
Thursday, 25 July 2019
सावन
Sunday, 30 June 2019
पत्र
सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री जी
भारत सरकार
द्वारा:- उचित माध्यम
विषय:- गोप भरौली, सिमरी जिला- बक्सर ( बिहार) में सड़क निर्माण के संबंध में.
श्रीमान,
विषय अंतर्गत निवेदन है, कि आजादी के सत्तर वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी ग्राम गोप भरौली ब्लॉक सिमरी जिला बक्सर (बिहार) के हम लोग एक दो फिट की पगडंडियों पर चलने को विवश हैं । और मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं।
आदरणीय बरसात के दिनों में जहाँ हमें किसी रोगी या प्रसव पीड़िता को डेढ़ किलोमीटर दूर खाट पर कीचड़ में लथपथ होकर अस्पताल ले जाना पड़ता हैं । तो वही बच्चों का स्कूल जाना पूरे बरसात भर ठप हो जाता हैं। गांव में कोई भी चार या तीन पहिया वाहन गर्मियों के अलावा (तब खेत खाली होते है ) अन्य ऋतुओं में नही आ पाता है ।
जिला प्रशासन के पास कई बार पत्राचार करने के बाद भी हमारी समस्या का दस्तावेज लंबित पड़ा हुआ हैं और किसी की कोई सुध नहीं हैं।
लोक शिक़ायत में आवेदन देने के बाद भू-अर्जन विभाग द्वारा कोई ठोस कारवाही नहीं की जा रही हैं, ताकि हमारी समस्या का हल निकले।
श्रीमान जी, अवगत कराना चाहूँगा की हमारे गाँव को मुख्य सड़क (आशा पड़री- सिमरी) से जोड़ने के लिए दो तरफ़ से रोड के लिए भू स्वामियों की सहमत थी लेकिन किसी एक तरफ से भी नहीं बन रहा हैं।
महोदय से सादर विनती हैं कि हमारी साढ़े ग्यारह सौ लोगों की पीड़ा को ध्यान में रखते हुए मात्र डेढ़ किमी के संपर्क मार्ग हेतु संबंधित अधिकारियों को अग्रिम कार्यवाही हेतु आदेश दिया जाय, इसके लिए समस्त ग्रामीण जनता आभारी रहेगी..
प्रार्थी
समस्त ग्रामीण
गोप भरौली,
ब्लॉक सिमरी जिला:- बक्सर ( बिहार)
Tuesday, 18 June 2019
मुजफ्फरपुर
क के माँग हर जगह उठावे वाला बिहार में तवाँ जाला,
हरदम चिचियात रहे गरीबन खातिर, ऊहो मुँह लुकवा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
देस-बिदेस में बसल बाड़ें बड़हन नेता, अभिनेता आ पत्रकार
बाकी अब त राजनीति करे में लोग अझुरा जाला।
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
लाश जतने छोट आवे, तन-मन के ओतने झकझोरेला
बेबस माई-बाप, परिवार के करेजा चरचरा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
बहरी के एगो छोटो घटना, टीबी के बड़ खबर बनेला
बिदेसो से हरसंभव मदत, सांत्वना आ सलाह आ जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
फिकिर में के बा, बाढ़ में हर साल दहत बिहार बा
बिकास पुरुस कागजी, गरीबी-पलायन प चुपा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
बेमउअत मउअत के जबाबदेह के बा, गरीब के सँघाती-इयार के बा
जे आपन केहू बिछुड़े त असली दरद बुझा जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
रोज टीबी प रोवत माई बाबू के आँखि देखी सुजीत के अँखिया लोरा जाला
कब ले होइ निदान इहे चाहे ला मनवा कसक जाला
हं, बिहारियो बिहारी के दुख अब भुला जाला।
:- सु जीत, बक्सर।
[विशेष अभार:- श्री कृष्णा जी पाण्डेय]
Thursday, 13 December 2018
चुनाव
Monday, 5 November 2018
शुभ दिवाली
Thursday, 20 September 2018
माँ की ममता
आज दूसरा दिन था.. मां बेहद आहत थी और उसे ऐसा लग रहा था कि बच्चा आँख खोल देगा...
गाड़ियों को आना-जाना लगा हुआ था. बगल के पुल पर और भी बहुत से बंदर देख रहे थे, उनकी आँखे भी गीली थी और मन में एक ही पच्छताप हो रहा था. हम क्यों बच्चे को लेकर इस रास्ते से गुजरे.
माँ अपने बेटे को जोर-जोर से झकझोरती और पुनः उठाने के लिये उसकी आँखें खोलती पर आँखे तो सदा के लिए बंद हो चुकी थी. कभी उसे दुलारती कभी पुचकारती तो कभी-कभी केले के टुकड़े को उसके मुँह तक ले जाती पर नहीं खाने पर गले लगाती और ऐसा लग रहा था कि वो पूछना चाहती हैं " क्यों नहीं खा रहे हो?. कभी उसके बालों में से जुयें को निकालती और उसे खा लेती..
आने जाने वाले वे लोग जो पैदल या साइकिल से गुजरते और कुछ मिनट के लिए ऐसी घटना को देखकर भावुक हो जाते और यहाँ तक कि किसी- किसी के आँखों से आँसू भी निकल आते और उन्हें याद आती " माँ की ममता...
बीस घंटे गुजर चुके थे.और बंदरिया अपने बच्चे से बिल्कुल अलग नहीं हो रही थी. न उसे खाना की फिकर थी और न प्यास लग रही थी, बस उसे अपने बच्चे को काल के गाल से खींचने की आस लगी थी. शायद उस समय उसे खुद का भी प्राण त्यागने में भी कोई ग्लानि महसूस नहीं होती!
अन्त में देखा गया कि बंदरों की झुंड से एक बूढ़ा बंदर निकला, ऐसा लग रहा था वो उनलोगों का शायद मुखिया हो और एक दो उसके सम उम्र बंदर उसके पास गये और कुछ देर वहाँ बैठकर कुछ आपस मे बात करने लगे. शायद वो जीवन-मृत्यु के रहस्य और सहानुभूति प्रकट करा रहे थे.
दस मिनट बाद अब धीरे धीरे बाकी बन्दर भी इकठ्ठा होने लगे और उस बनदरिया को साथ लेकर चले गए. जाने के क्रम में बंदरिया बार बार पीछे मुड़कर देखती पर असहाय हो पैर आगे बढ़ा लेती..
{ कृपया सड़क पर चलते समय ध्यान रखें, मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों के भी परिवार होते हैं। सुख- दुःख की अनुभूति उन्हें भी होती हैं}
@सुजीत, बक्सर.