मन का राही

चल पड़ा हूँ बस कुछ सार्थक विचार और ढेर सारे सुनहरे सपनो से साथ

Sunday, 17 December 2017

चाय की चर्चा ☕☕

यूं कहें तो बड़ी लजीज चीज है, सुबह दिन की शुरुआत हो या काम की शुरुआत या फिर चाहे आगंतुक सत्कार ।। दूसरे शब्दों में इसे

निद्रानास्ति
स्फुर्तिदात्री
टाइमपासिनी
सरदर्दनिवारिणी

के साथ साथ ठंडहारिणी भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । जी हाँ, अब आप तो अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि आज मैं आपसे चाय पर चर्चा करने वाला हुँ । आज देश के लगभग हर परिवार में दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका है। आप भी इससे अछूता नही होंगे । चाय की अनेक किस्में है जैसे लेमन टी, ग्रीन टी, मसालेदार टी, कॉफी मिश्रित टी, और अन्य । बचपन से आज कल बच्चों को चाय दे दिया जाता है और बाद में बच्चों की जिद्द भी हो जाती है । वजह यह है कि दूसरे की देखा देखी में बच्चे भी चाय के शौक पाल लेते है। मैं भी पीछे कहाँ रहने वाला था । चाय का आशिक बन बैठा था पर पीने की नही बल्कि दिन की शुरूआत चाय के साथ रोटी को गोल लपेट कर चाय रोटी खाने की ।

"" कुछ साल गुजरे । क्लास 8 में पहुँचा तब तक बिना रोटी के साथ चाय लिया नही था । इसी बीच दीदी की शादी हुई और शादी के दो दिन बाद ससुराल पहुँचा । आमतौर पर जैसे की समाज मे रिवाज चलता है । मीठा पानी के बाद चाय आया । पहले तो चाय लेने से मैने मना कर दिया पर साथ मे बैठे कुछ लोग हँसने लगे और मजाकिया अंदाज में बोल बैठे । पी लो जीजा शौख से लाये है । चाय तो ले लिया और बगल में रख दिया । तब तक बगल के पड़ोसी कहने लगे, लगता है लड़का शर्मा रहा है । अन्ततः चाय जैसे ही ओठ तक पहुँचाया, जीभ जल गई और यह देख बैठे सभी लोग जोर जोर से हँसने लगे।""

आज कल चाय का क्रेज इतना बढ़ चुका है कि महज चाय के कारोबार से लोग लाखों करोड़ों में खेलने लगे । आज के दौर में एक अच्छी नौकरी वालो से भी ज्यादा इनकम एक चाय वाले की है । लगभग हर शहर में आपको वहाँ के मशहूर चाय की दुकान मिल जाएगी जिसमें चाय लेने के लिए 5-10 मिनट का इंतज़ार करना पड़ता होगा । आज के दौर में सस्ता और यादगार पार्टी करनी हो तो सबसे बेहतरीन जरिया है चाय पार्टी (टी-पार्टी) । ऐसी पार्टी के लिए हर कोई तैयार हो जाता है और खुशी खुशी से रजामंद होकर दोस्त शरीक हो जाते है । पटना में मशहूर चाय का दुकान आज भी याद है जिसके लिए राहुल, रवि के साथ सुबह सुबह निकल जाते थे । क्या गजब की चाय बनाता था वह बंदा कड़क और अजब गजब आज भी मेरे नजर में उसके लिए तारीफ भरा पड़ा है ।

अगर आप राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रह रहे है तो एक बार निर्माण भवन के पास पवन का मशहूर चाय पी सकते है । सुबह से ही चाय पीने वाले लोगो की कतार लगी रहती है । कल बटर वाली चाय का सुरूर चढ़ा और अपने एक साथी से जामा मस्जिद के गेट 01 पर चाय की दुकान के बारे में सुना था इसलिए निकल पड़ा सुबह सुबह..... मंजिल चाय तक के लिए निकाला और सड़कों की उलटफेर में गंतव्य तक पहुँचने में काफी देर हो गई और ईश्वर को मंजूर नही था कि यहाँ का इच्छित चाय पी सके । आननफानन में दोस्त को फ़ोन लगाया तो उसका मोबाइल स्विच बन्द पाया । गली में तो बहुत सारी दुकाने थी पर वो दुकान नही मिल पाई। अन्ततः गली में ही एक दुकान पर चाय पिया लेकिन चाय पीने से ही ऐसा एहसास हो रहा था कि हम गलत दुकान पर है, हालांकि चाय अच्छा था। पर क्या आप चाय से होने वाले बीमारियों से वाकिफ है ?

अगर नही तो आज मैं इसके दुष्परिणाम का वर्णन करने जा रहा हूँ । जिस चाय को हम इतना बखान किये है वह भी एक प्रकार का नशा है जो हमारे स्वस्थ शरीर में दर्जनों रोगों को आमंत्रण करता हैं । चाय पीने से याददाश्त कमजोर होने लगती है । लीवर से संबंधित रोग होने की प्रबल संभावना रहती है कैंसर और अनिद्रा रोग सक्रिय हो जाते है । चीनी के सेवन से मधुमेह होना लाजिमी है और शरीर का वजन की बढ़ने लगता है ।कैफीन होने की वजह से शरीर के सक्रिय सेलों में आलस पैदा करता है और कमजोर बनाता है । सेक्स से संबंधित जैसे वीर्य को पतला करता है और नपुंसकता आदि को बढ़ावा देता है । अक्सर दुकानों पर अल्युमिनियम के बर्तनों में बने चाय से अलमुनियम निकलकर शरीर को प्रभावित करता है साथ ही दुकानदार एक ही चायपत्ती को बारी बारी से यूज करता है जो बेहद ही खतरनाक होता है । दुनिया में कहने समझाने वालो की कोई कमी नही है पर जरूरी है कितने लोग इसे अमल में लाते है और कितने नही ।

on December 17, 2017 No comments:
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Thursday, 30 November 2017

जम्मू-कश्मीर भ्रमणकाल🏃🏃

नवंबर 2014 में गुजरे वह दिन कैसे भुलाया जा सकता है ? हम अपने नौजवान साथियों के साथ जम्मू कश्मीर निकले थे । जैसा कि जम्मू-कश्मीर का नाम सुनते हैं हम पल भर के लिए सहम जाते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर की वादियों को देखने का बहुत दिन से ललक थी, वह समय आया।
नवंबर 2014 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव था । मुझे चुनाव ड्यूटी में जाने का मौका मिला, पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब,जहाँ सिख धर्म की जन्मस्थली मानी जाती है, से  शाम के 7:30 बजे बस पकड़ जम्मू के लिए रवाना हुए, जम्मू से मुझे डोडा जाना था । बस में सवार होते ही जब ऊना (हिम.प्रदेश) से आगे निकले खूबसूरत पहाड़ियों को देखकर  मन में तरह-तरह के सवाल पैदा होने लगे, बहुत सारे अच्छे तो कुछ बुरे भी। पहली बार और अकेला मैं जम्मू-कश्मीर के लिए निकला था ।  ठंड से बचने के लिए पहले से ही बेडिंग बाँध रखा था और निकलने के लिए स्लीपिंग बैग भी ले लिया।   मेरी बस रात के 1:30 बजे जम्मू बस स्टैंड पहुंची, जहां से दूसरे बस स्टैंड पहुंच कर वहां से टिकट लिया और हम डोडा जाने वाली बस पकड़ लिए। समय सुबह 3.30 बस खुल गई, मैंने कंडक्टर से कह कर खिड़की के बगल में सीट ले ली ।
कुछ ही घंटों में गहरी नींद आ गई और मैं सो गया । सुबह जब आंखें खुली तो दिल मचल उठा, देखा दाईं तरफ ऊंची ऊंची खूबसूरत पहाड़ियां और जिस पर लंबे-लंबे पेड़ लगे हुए थे। बड़ा ही मनोरम दृश्य था । प्रकृति का इतना सुंदर सौंदर्य पहली बार मैं अपनी खुली आंखों से देख रहा था । यकीन नहीं हो रहा था कि हमारे भारत में ऐसा भी सुंदर जगह है! वही बाएं तरफ जहाँ 60 से 70 फीट गहरा गहरी खाई दिखाई दिया तो डर लगा । इतनी गहराई की भगवान न करें कुछ हो जाता तो शायद पता लगाना भी मुमकिन नही । वाकई वहां के चलाने बस चालकों की कला की दाद देनी पड़ेगी । जलेबी कज तरह घुमावदार पतले उबड़-खाबड़ रास्तों में भी गजब का स्पीड और जान जोखिम में डालकर चलाने वाली कला को देखकर दंग रह गया । भगवान की कृपा से सुबह 8:30 बजे मैं डोडा पहुंचा । बस से जैसे उतरा बगल में गहरे नीली रंग की चिनाब नदी को देखकर दिल प्रसन्न हो उठा। बचपन मे जो नदी किताबों में पढ़ा था, देखने का सपना पूरा हुआ ।
जम्मू पहुंचते ही मोबाइल का SIM काम करना बंद कर दिया था यह भी एक संकट से कम नहीं था क्योंकि डोडा जहां मुझे बस ने उतारा था वहां से 7 किलोमीटर दूर डोडा सिटी जाना था, लेकिन पता पूरी तरह से कंठस्थ था । पूरे 5 चरणों में हुए विधानसभा चुनाव में पांच जगह डोडा, अनंतनाग,मंडी, कुपवाडा और जम्मू घूमने का जो आनंद आया, वह स्मरणीय हैं । मंडी में भारतीय जवानों से मिलकर बहुत खुशी मिली ।  हाड़ कंपा देने वाली ठंड में माइनस 10 डिग्री पर सुबह के समय पूरी धरती बर्फ से पट जाती थी और सूर्य की किरणों की चमक से आंखें चौकाचौंध हो जाती थी । बर्फ के साथ खेलना भी काफी सुखद रहा।
5 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर चढ़ने पर प्राण पखेरू के उड़ जाने जैसा हालात होना तो वही संकरी और ऊंचे- नीचे पहाड़ों से बने हुए रास्ते में चलकर गंतव्य स्थान तक पहुँचना और पहाड़ियों में जोर जोर से चिल्लाने के साथ आवाज की प्रतिध्वनि वापिस लौट कर आना,बहुत अच्छा लगा । हारे-थके झरने का पानी  और रास्ते में बच्चों से पानी मंगा मंगा कर पीने यादें आज भी जवाँ हो जाती है । जम्मू में एक ग्रामीण भाई का प्यार देखकर बीते समय याद आ जाते है ।

ठंडी ज्यादा होने की वजह से रोज-रोज नहाना मुमकिन नहीं था पर चश्मे का ऐसा चस्का था कि रोज नहा लेते थे । चश्मा एक ऐसा हौज होता है जो झरने से गिरते हुए पानी को रोकता है और यहां का पानी इतना ठंडा नहीं होता । जम्मू कश्मीर में भी जाकर मां वैष्णो देवी का दर्शन न कर पाना बहुत बड़ा अफसोस रह गया ।

#वादी_ए_कश्मीर 

धरती का साक्षात स्वर्ग  कश्मीर की वादियों में इन अद्भुत और ख़ुशनुमा नजारा स्वयः को गौरव से अभिभूत करा देता हैं । 

ईश्वर ने अगर कही कड़ाके की तपती धूप दिया तो कही हाड़ काँपा देने वाली ठंड, जहाँ रेगिस्तान ही रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ मांसिराम जैसे बरसाती मौसम । मानिये तो चहु ओर प्रकृति में अलग-अलग विविधता उसी तरह दिखाई देती है जैसे हमारे धर्मो की विविधता है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, जैन इत्यादि और इन सबके ऊपर एक समान सामाजिक समरसता, धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा, प्रेम, व स्नेह-सौहार्द ।।

सचमुच भारत वर्ष में ही रहकर मनचाहे इच्छित जगहों का रसानुभूति कर सकते है, किसी और देश की तरफ मुड़कर देखने की  जरूरत नही हैं ।

।। धन्य भाग हे भारतमाता, आपसे हमे है अद्भुत नाता ।।

सचमुच धरती का स्वर्ग कही है तो जम्मू- कश्मीर में है।

(आलेख में अज्ञानवश कुछ त्रुटि हुई हो तो क्षमा चाहता हूँ),🙏🙏🙏🙏🙏

on November 30, 2017 3 comments:
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Labels: जम्मू-कश्मीर ।

Saturday, 25 November 2017

एक कशक :- कोशिश की

यह दूरियां अक्सर मुझे सताती है
वक्त-बेवक्त खुद-ब-खुद आकर तन्हाइयों से सराबोर कर देती है
विचलित,बेबस, बेपरवाह और आवारा मन उसके ओत-प्रोत होने के लिए व्याकुल रहता है

और इतना कुछ होना भी लाजमी है
पर खुद को क्या पता की जिंदगी इस कदर पराया बना देगी।

क्या एक तल्ख दीदार करने से भी खुद को जुदा कर देगी?

आंखों का बरबस यादों में समाए रखना और नींद का भी इस कदर जुदा हो जाना, बड़ा अजीब और गजब का समन्वय इन यादों और आँखों का है ।

मुस्कुराते हुए संजीदे चेहरे और चेहरे पर घिरे हुए बाल जिसकी महक आज के गुजरे कल की यादों का गुलाम बना बैठा हैं ।

आज तक तकते इन सुनहरे ख्वाबों को कैसे समझाऊं
कि जिस पर तुम्हें इतना गुमान था वह एक कोरी काल्पनिक है ।

आज भी भला कैसे भूल सकता हूं उन चेहरे की भाव भंगिमा और निश्चल आंखों को, जो पल भर में गंगा- यमुना की अविरल धारा एक साथ प्रवाहित कर देती थी और पलभर के लिए जीवन का सर्वस्व निछावर करने को मजबूर कर देती थी, जिसे शायद खुदा को भी एहसास ना हो  । आंखों से आंखों का आकर्षण जो गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन होकर दूरियों को स्वतः ही कम कर देता था और पलभर के लिए देखकर हँसना और फिर बेबाक बोलते जाना ।

मनचली और कलकली सी आखों की टकटकी लगाकर देखना इस कदर बना देता था की जैसे चांद को देखते देखते ही चकोर पक्षी पूरी रात गुजार देता है ।

और अगले पल में मुस्कुरा के कह देना कि
भक्क,

ऐसे क्यों देखते हो। लगता है कि ......

बस इतना कहते 440 वोल्ट का करंट पूरे बदन में दौड़ जाना और पूरा बदन का सिहर जाना फिर खुद को सबसे बड़ा सौभाग्यशाली मानकर फुले ना समाना ।

यह मेरी पहली मुलाकात थी यकीनन मैं पहली बार कुछ ज्यादा ही डर गया था ।

बदन की बनावट कुछ इस तरह थी जैसे ईश्वर ने करोड़ों में एक बनाकर भेजा हो।

गहरी झील सी आंखें जिनमे ख्वाबों की नावे स्वतः ही गतिमान हो जाती है । पलकों की बनावट बिल्कुल मोरनी के पंख जैसे सावन महीने में मोर का पंख फैलाकर नृत्य के पश्चात शर्माते हुए पंखों को सिकोड़ लेना । पतली, लंबी और नुकीली नाक जो उभरे हुए चेहरे को चार चांद लगा देती है।

काले घने लंबे बाल और बालों में धारदार बनावट जो देखने में बिल्कुल अजीब सा लगता है चेहरे की लालिमा और शांतिप्रिय इस बात का एहसास करा रहा हो जैसे शालीनता और सुलक्षण और सुविचार से भरा हो ।

यकीन मानिए तो एक कोरी कल्पना है ।

on November 25, 2017 No comments:
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Monday, 13 November 2017

शुभ बाल-दिवस🍖🍖🍝🍝🍭🍭

आज 14 नवंबर चाचा नेहरु जी का जन्मदिवस है । उनका छोटे छोटे बच्चों के प्रति प्यार दुलार, समर्पण, स्नेह और लगाव के रूप में ही बाल दिवस मनाया जाता है । यहाँ तक तो आप सब बखूबी जानते है पर चाचा नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री हुए थे बच्चों में देश के भविष्य के प्रति क्या भावना थी और क्या सपना पूरे होते हुए दिख रहे हैं ।

कहते है, शिक्षा ही देश को महान बनाता है । क्या वास्तविक शिक्षा देश के हर बच्चों को मिल रहा है ।
आधुनिक शिक्षा के परिवेश में शिक्षा का जिस तरह से व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो रहा है इस तरह से हर बच्चे को समुचित शिक्षा मिलना नामुमकिन है ।

नही । इसके बारे में चर्चा करना अभी बाकी है ।

वर्तमान समय मे सरकारी स्कूलों की बात की जाए तो ऐसा लगता जैसे खैरात में शिक्षा मिल रहा है और ख़ैरात की बात करे तो महज वह स्थान जहाँ केवल गरीबो के लिए दवा मिलने का केन्द्र है । जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता और भर्ष्टाचार से लिप्त कर्मी,  विगत महीने ही जिले में किसी डॉक्टर साहेब को आशा कर्मी से लाखों रुपये गबन करते पकड़े गए ।

हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है इस दिन स्कुली बच्चों में खेलकूद से संबंधित प्रतियोगिता जैसे कबड्डी, खो-खो, दौड़ भाग और मनोरंजक गेम का आयोजन किया जाता है ।

अगर चाचा नेहरू के सपनों को सही साकार करना है तो स्कूलों का निजीकरण और व्यावसायिकरण को देश से हटाना होगा साथ ही  सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को अपने कर्तव्यों के प्रति सही रूप से समर्पण करना होगा।  हर सरकारी स्कूल के प्राथमिक विद्यालय से ही कंप्यूटर का ज्ञान कराना होगा, व्यावसायिक शिक्षक को रखना होगा और शिक्षा के क्षेत्र से धाँधली रोकनी होगी ।

।। शुभ बाल दिवस ।।

on November 13, 2017 No comments:
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Wednesday, 8 November 2017

हैप्पी हैप्पी माई डिअर

चिंटूआ कल से ही घर में उत्पात मचा के रखा है कि हम भी इस बार दोस्तों के साथ गंगा जी के किनारे जाकर फर्स्ट जनवरी का पार्टी मनायेंगे । जब काका को इस बात का खबर लगा तो बोले की पार्टी अऊर गंगा जी के तीरे ....ई कैसा पार्टी है । किस बात का पार्टी अऊर गंगा जी के किनारे काहे ?
कलुआ बोला काका कल फस्ट जनवरी नु है इसी का पार्टी ...
 काका सहम गए फर्स्ट जनवरी का पार्टी गंगा जी के किनारे काहे ...मना कर दिए कि अभी एक तारीख को पिंसिन मिलेगा त पैसा होगा अभी हमारा हाथ खुद ही खाली है ।
फर्स्ट जनवरी आने का इंतज़ार हर किसी को होता है । चाहे सुदूर गाँव-गिराज के लोग हो या शहर के ...
चहल पहल सब जगह दिखाई पड़ती है । 31 दिसंबर को सबकी सेटिंग् रहती है । पार्टी मनाने का जुनून सबके सर पर शुमार रहती है । कोई  मनाने के लिए गोआ जाता है तो कोई सिक्किम ,कोई हिमाचल की तराईयों में तो कोई नदी, तालाब या नहर का किनारे ही सही । आने वाला साल खुशनुमा हो, बेहतर और फलदायक हो इसकी आस लगाए रहते है ।
आपस में एक बहस होती है, 2015 मेरे लिए अच्छा नही था, 2016 ठीक था मेरा ख्वाब पूरा हुआ था , 4 साल जीतोड़ मेहनत करने के बाद नौकरी मिली थी और नया जमीन भी खरीदा था,लेकिन 2017 उतना अच्छा नही रहा । 2017 तो विराट कोहली के लिए अच्छा था क्योंकि इतनी सुंदर अनुष्का मिली । रोहित शर्मा के लिए भी ठीक रहा क्योंकि इसने भारत का नाम रोशन किया और इस साल सबसे ज्यादा छक्का मारकर  नाम कमाया,इत्यादि चर्चा करते रहते है ...
पार्टी की मनाने की सोच में अचानक धियान 2012 में चला गया । हाय रे दइया ...कहाँ गये वो सब दिन जब हम पूजावा को वेलेंटाइन कार्ड देने के चक्कर मे खूब कुटाये थे । क्या प्यार था इसके बाद पियार पर यकीन नही हुआ तो उसने काली माई अऊर बरहम बाबा का किरिया खिया के यकीन दिलाई थी कि सूरज पूरब से पच्छिम उग सकता है लेकिन खखनु हम तोहरे प्यार के बिना नही .... दिल के बेचैनी अऊर धड़कन के आवाज करेजा पर कान रखकर रहरी में सुनती थी । खखनु भी फर्स्ट जनवरी के दिन बगसर पिपरपाती रोड से गुरहिया जलेबी अऊर समोसा लेकर चुपके से साझी के साढ़े सात बजे दिए थे ..  उस समय पियार का जुनून बाजार से शुरू और बाजार में खत्म हो जाता था ... एक बार दर्शन के लिए चौक चैराहे पर घंटो बैठकर आँखे इंतज़ार में अंधी और कान बहरे हो जाते थे ... का बात है ललन के लइकवा रोज चौक पर ही बैठा रहता है ...    तब अब के जइसा फेसबुक, भटसेप नही था।
जरा सोचिए, फर्स्ट जनवरी को हम सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई भाई पर्व की तरह क्यों मनाते है ? सीधा जबाब है हम टीवी, अखबार में देखते है, पढ़ते है कि बड़े बड़े लोग टीवी पर प्रोग्राम के जरिये मनोरंजन करते है, कंपनियां नए साल का ऑफर देती है, पब, बार, रेस्टोरेंट वाले सजाकर रखते है और ग्राहकों को लुभाते है इत्यादि से ग्रसित होकर पार्टी का आयोजन करते है पर पार्टियां भी ऐसी जिसमे लाखों बेजुबानों की बलि चढ़ा दी जाती है, मैकडॉनल्ड्स, बेगपिपर, वोडका और न जाने कितने नशीले पदार्थों के माध्यम से एक रात में लोग लाखों रुपये पानी की तरह बहा देते है । पोस्ट का मतलब ये नही है कि आप इस दिन शराब मत पियो, मुर्गा मांस मत खाओ बल्कि मतलब यह है कि इस दिन नये नए लड़को को बेबड़ा बनने के लिए प्रेरित न करो ।
अगर सच मे फर्स्ट जनवरी मनाना है तो माँ बाप की सेवा करो, पूरे परिवार के साथ किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा घूमने जाओ, ठिठुरते ठंड में जरूरत मंदो को कंबल दो, भूखे प्यासे को भूख मिटाकर तृप्त कराओ ताकि माँ-बाप, गरीबो से आपके लिए दिल से दुआ निकले और यही दुआ आपको नए साल के लिए खुशियों की सौगात लाएगी ।


मित्रों, अगर नए साल में कुछ बदलाव लाना तो अपने मित्रों, परिवारजनों, और सगे संबंधियों के बीच हुए वाद-विवाद को मिटाकर गले लगाओ साथ ही प्रतिज्ञा करो कि हम एक दूसरे के सुख-दुख में परस्पर शामिल रहेंगे और खुशियो के साथ भेदभाव जैसी विसंगतियों, देश की कुप्रथाओं को जड़ से उखाड़ फेकेंगे ।
यही सुविचार के साथ ...नव वर्ष की अग्रिम बधाई।

on November 08, 2017 1 comment:
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Sunday, 29 October 2017

सतर्कता जागरूकता सप्ताह 30.10 से 04.11

भाइयों,
हम सीधे- साधे गाँव के लोग है । भ्रष्टाचार शब्द सुने नही है लेकिन हॉ, कसम से सही अर्थ बता देंगे, क्योंकि बचपन से ही हम सन्धि विच्छेद करने में माहिर आदमी है ।

भ्रष्टाचार -  भ्रष्ट+ आचार ।

आचार की बात जब भी आती है, हमारे जीभ से पानी आने लगता है । यानी लालच बढ़ा देता है और यही लालच हमारे समाज को, राज्य को, और देश को बर्बाद करने लगा है ।

विश्व में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें पायदान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि।

भरष्टाचार ऐसी बीमारी है जो जनमानस के दिमाग को धीरे-धीरे खोखला बना देती है और इसके प्रभाव से सत्य और  ईमानदारी फीकी पड़ती जा रही है । आसमान पर उड़ने का हौसला रखने वाले को धरा नसीब होती है, हौसला रूपी सारे पंख टूट जाते है जब बगल का चिन्टूआ जो पढ़ने में तरह बाइस था, आज 10 लाख घुस  देकर स्टेशन मास्टर बन गया । ऐसे बहुत से चिन्टूआ  है जो बैंक पीओ, दरोगा, मास्टर और ना जाने क्या क्या बन जाते है जबकी तेज-तराज लड़को के हौसले पस्त हो जाते है और उम्मीदें ठंडी होकर पेट पालने के लिए निकल पड़ते है रोजी मजूरी करने ....

आजकल की भर्तीयो को आपने बेहद करीब से देखा होगा । सरकार के लाख लगाम लगने के बाबजूद पेपर का लीक होने आम बात बन चुका है । कभी SSC सीपीओ का पेपर लीक हो जाता है तो कभी सीजीएल का तो कभी सचिवालय क्लर्क का तो कभी बैंक पीओ का …..

भर्ष्टाचार दिमाग की ऐसी उपज बनते जा रहा है जिसका विनाश न होकर दिन प्रतिदिन फ़लीभूत
होते जा रहा है । इसमें कोई संसय नही की, इनमे कुछ ऐसे तंत्र मौजूद होते है जिन्हें अच्छी खासी माहवारी मिलती है, इसके बावजूद भी जेहन में ऐसी गंदी सोच को बढ़ावा दे रहा है ।

बैंकों में आपको लोन लेना हो या कोई संस्थान कोई जरूरी कागजात निकालनी हो । स्टेशन पर टिकट बनवानी हो या किसी धार्मिक संस्थान में माथा टेकने हो । आपको इन भ्रष्टाचारियो के माध्यम से होकर गुजरना मजबूरी बन जाता है और अगर ऐसा नही करो तो लोग बेवकूफ या अन्य नाम दे देते है ।

सतर्कता जागरूकता अभियान सप्ताह दिनांक 30 अक्टूबर से 04 नवंबर तक मनाया जा रहा है । जिसका मोटो है --

मेरा लक्ष्य -- भ्रष्टाचार मुक्त भारत ।

अगर हम सब ईमानदारी से अपना काम करे, ईमानदारो का साथ दे और समाज मे भरष्टाचारियों के खिलाफ़ लड़े तो हमारा सपना साकार हो सकता है । सतर्कतापूर्वक रहना हम सबकी जिम्मेदारी भी है । इसके खिलाफ लड़ाई उस भारतीय से शुरू होगी जो इस लड़ाई के अंतिम लाइन में खड़ा है ।

आजकल आधुनिक उपकरणों का अभाव नही है जो इनके विरुद्ध में मिशाल कायम कर रहे है पर जरूरत है इसे अधिक से अधिक विस्तार करने की । कुछ बेहतरीन माध्यम मोबाइल, कैमरे, सीसीटीवी आदि नकेल के मुख्य स्रोत है ।

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on October 29, 2017 1 comment:
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Friday, 27 October 2017

प्रेम पत्र की आशा में 🤔

क्या जमाना आ गया भाई, एक समय था जब लोग 20- 30 दिन तक इंतजार करते थे की बबुआ को लोधियाना गए हुए एक महीना हो गया,अभी तक कोई खोज-खबर नहीं  भेजवाया । मां-बाप, दादा-दादी के साथ-साथ पूरे मोहल्ले के लोग चिंतित रहते थे। दोस्त रिश्तेदार भी आकर कुशलक्षेम पूछते थे ।

घर मैं मेहरारू अलगे छटपटा रही है । काली माई अऊर बरहम बाबा के किरिया सलोनीआ के बाबू खबर भेजवा देते कि हम ठीक हैं तो प्रसादी चढ़ाते और पूरे गांव में बंटवाते। इधर  सास-ससुर  से  कुछ कहने में  शर्म भी आ रहा है कि एक और चिट्ठी भेज दिया जाता तो शायद उनतक पहुँच जाता । अंत में  सासु जी से शरमाते हुए कहती हैं । अंतरदेशी मँगाती है और  चिट्ठी में  लिखती है 

प्रिय  पति परमेश्वर 
मैं  आपके  दुआ सलामत के लिए  मां काली जी से मनाया करती हूं  की  जो सुनकर  दिल खुश हो ।  यहां का  सब समाचार  अच्छा है  घर में सब ठीक-ठाक है। गाय बछिया दिया है और दूध भी खूब कर रही है । लेकिन आप नही है बस नही कमी है । आज कल सलोनी की स्कूल जाने की जिद में बबुआ जी नाम आंगनबाड़ी में लिखा दिया गया है । रोज सुबह सुबह उठकर फटाफट नहाधोकर बैग ले लेती है । अगर सबकुछ ठीक रहा तो मंटू जी के यहाँ टीशन पढ़ाएंगे, एगो तो लईकी है आँख के पुतरी .... अभी हमारे लिए सबकुछ यही न है ....
बाकी अपना धियान देना । खाने पीने में कोई कसर मत छोड़ना । हम उम्मीद करते है कि आप होली में घर आइयेगा और बुचिया के लिए कपड़ा लोधियाना से ही ले आइयेगा ।

आपकी अपनी
ABCD

दो बार चिट्ठी भेजने के बाद भी कोई खबर नहीं आया ना कोई चिट्ठी आया और ना ही कोई तार। परेशान होकर सलोनिया की आजी गांव के बंशीधर बो काकी के पास शगुन निकालने के लिए जाती है । एक डाली में गाय के गोबर के गोल बनाकर उसमें दूबी घास लगाकर मनौती करती हैं । अगर दुब ऊपर खड़ी जो जाय तो वही शुभ माना जाता और नीचे दब गई तो अपशगुन  । उनकी शगुन की चर्चा पूरे जवार में है ,आसपास के 2 कोस से लोग आते है ।

बीरजु चाचा दूसरी बार आकर समझा गए की लोधियाना में काम-धाम के चलते फुर्सत नहीं मिल रहा होगा और महीना में कहीं एक-दो दिन छुट्टी मिल जाता है इसलिए शायद  खबर नहीं भेज रहा है,  चिंता मत कीजिए सब कुछ बढ़िया है, रजुआ अगहन में वहाँ से आ रहा है वह सही बताएगा ।

मुझे लगता है कि उस समय लोगों में सुख, शांति और सुकून के साथ साथ मन में विश्वास था कि शगुन किया हुआ सही होता है । भला आज का समाज उसे कैसे स्वीकार करेगा। आज तो हर किसी को प्रत्यक्ष प्रमाण की जरूरत है। आजकल समाज में नाही बंसीधर बो काकी का शगुन का महत्व रहा और ना ही बंसीधर  चाचा के समझाने का कोई फायदा ।

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हम प्रतिदिन अखबारो  और टीवी चैनलों की सुर्ख़ियों में देखते हैं कि समाज में इसी असंतोष की भावना के चलते दिन  प्रतिदिन न जाने कितने लोग गलतफहमियों का शिकार होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं ।  हां,  इसके पीछे कुछ लोगों की मजबूरिया भी हैं  और यह मजबूरी  ऐसी है कि जिसे मिटाया नहीं जा सकता और ना ही इससे कम किया जा सकता। हमारा समाज बहुबंधन मुक्त होना चाहता है, सबकी सोच यही है कि एकल परिवार में खुशी मिलेगी पर यह असंभव है ।

सुजीत पाण्डेय "छोटू"💐💐💐💐

on October 27, 2017 No comments:
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Tuesday, 24 October 2017

आखिर क्यों दिल मे शुमार है छठ पर्व

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आखिर क्यों हर बिहारवासी के लिए खास है छठ पर्व ।।

काँच ही बास के बहंगिया, बहँगी लचकत जाए ।
मूल गीत यही है जो सदियों से दादी-नानी, मॉ-बहने गाती चली आ रही है। आज भी इस गीत में कोई परिवर्तन नही हुआ, न मुखड़ा बदला और न अंतरा ।जब भी छठी मईया का यह गीत कानों तक पहुँचता है तन सिहर उठता है और मन की तरंगें घाट की ओर खींचने लगता है । 
दोस्तों से पूछना शुरू होता है । अरे भाई, कब से नान वेज बन्द करना है । नहाय खाय और अंतिम अरघ कितना तारीख को है ।
छुट्टी की जिद्द लिए बॉस के पास जाना, चेहरे पर भाव-भंगिमा उकेरना, विनम्र प्रार्थना के साथ छुट्टी के लिए विवश कराना, रिजर्वेसन न होने के बाद भी भाग भागकर गाड़ी पकड़ना,स्लीपर कोच में खचाखच भीड़ होने की वजह से टॉयलेट के पास खड़े होकर 14 घंटा बिताना , कैसे भूलेंगे ??
छत पर धोकर डाले गेहूं की पहरेदारी शुरू होती है । घर का सबसे छोटा लड़का का यह काम होता है और बड़ा लड़का बाजार से पूजा का समान के लिए नियुक्त होता है । पिछली बार छोटुआ गेहूं रखवाली से 1 मिनट हट गया था, खूब डॉट सुनना पड़ा था ।
बूढ़ी दादी सोये देखकर बड़बड़ाना शुरू करती है, सोये रहो सब घाट बना रहा है और तुम्हारा नींद पर यमराज आये है । 2 मिनट के बाद झट खुरपी, कुदाल, बाल्टी,लोटा लेकर गंगा किनारे या पुरखों से चले आ रहे जगह पर निकल पड़ते है । घाट पर घास साफ करना, बेदी बनाना, पीली मिट्टी और गाय के गोबर से लीपना भला कैसे कोई भूल सकता है ।
पृथ्वी पर साक्षात देवता भगवान सूर्य और माँ गंगा के समक्ष किया जाने वाला यह पर्व बहुत ही कठिन और उत्तम फल देने वाला है । इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे बिना अन्न और जल के रहती है । इसकी शुरुआत 3 दिन  नहाय खाय, खरना, साय काल अर्घ और सुबह के अर्घ से होता है ।
12 साल बाद बटेशर जादो छठ करने आये है, नाती का सपना पूरा हुआ और इस बार गाँव से ही छठ के लिए आये है । लाल चटक रंग की कढ़ाई वाली साड़ी पहने भौजाई और उनकी छोटी बहन पर चर्चा करना तो वही दूसरी तरफ 70 साल के रामकेश काका को घर से लेकर घाट तक (भू-परी) लेट कर आना और इतनी बड़ी आस्था को देख सर झुकाना ।
डालडा या घी, चीनी या गुड़ के ठेकुए के साथ कुछ खट्टे तो कुछ मीठे फलो के साथ 7 फिट लंबे ईख खाने की ललक पैदा होने की जिद्द पर डॉट सुनकर सुबह तक खेशरिया का आश लगाना ।
घाट पर पटाखे फोड़ना, शीशी में आकाशबाड़ी डालकर आकाश में परीक्षण करना कि किसका रंग करता है और किसका बम फूटता है । रनुआ का नोयडा से पटाखा लाकर सबको दिखाना और छोटे छोटे बच्चों को छुरछुरी जलाना ।
जगमगाती लाइटो में पूरी रात लड़को के साथ जागकर घाट की रखवाली करना, कुत्ते भगाना, जेनेरेटर में तेल डालना और कृष्णलीला देखना, शायद आप भी नही भूले होंगे ।
जय छठी माता ।
sujit1992.blogspot.com
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जीवन का रेसिपी With 4 comments
कितना बदल गया इंसान With 1 comment
। दो जिस्म एक जान ।

Author: सुजीत कुमार पाण्डेय

मैं सुजीत कुमार पाण्डेय बिहार के जिला बक्सर प्रखंड सिमरी गाँव गोप भरौली का निवासी हूँ । View all posts by सुजीत कुमार पाण्डेय
Author सुजीत कुमार पाण्डेयPosted onOctober 24, 2017CategoriesUncategorized

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काँच ही बास के बहंगिया, बहँगी लचकत जाए ।
मूल गीत यही है जो सदियों से दादी-नानी, मॉ-बहने गाती चली आ रही है। आज भी इस गीत में कोई परिवर्तन नही हुआ, न मुखड़ा बदला और न अंतरा ।जब भी छठी मईया का यह गीत कानों तक पहुँचता है तन सिहर उठता है और मन की तरंगें घाट की ओर खींचने लगता है ।
दोस्तों से पूछना शुरू होता है । अरे भाई, कब से नान वेज बन्द करना है । नहाय खाय और अंतिम अरघ कितना तारीख को है ।
छुट्टी की जिद्द लिए बॉस के पास जाना, चेहरे पर भाव-भंगिमा उकेरना, विनम्र प्रार्थना के साथ छुट्टी के लिए विवश कराना, रिजर्वेसन न होने के बाद भी भाग भागकर गाड़ी पकड़ना,स्लीपर कोच में खचाखच भीड़ होने की वजह से टॉयलेट के पास खड़े होकर 14 घंटा बिताना , कैसे भूलेंगे ??
छत पर धोकर डाले गेहूं की पहरेदारी शुरू होती है । घर का सबसे छोटा लड़का का यह काम होता है और बड़ा लड़का बाजार से पूजा का समान के लिए नियुक्त होता है । पिछली बार छोटुआ गेहूं रखवाली से 1 मिनट हट गया था, खूब डॉट सुनना पड़ा था ।
बूढ़ी दादी सोये देखकर बड़बड़ाना शुरू करती है, सोये रहो सब घाट बना रहा है और तुम्हारा नींद पर यमराज आये है । 2 मिनट के बाद झट खुरपी, कुदाल, बाल्टी,लोटा लेकर गंगा किनारे या पुरखों से चले आ रहे जगह पर निकल पड़ते है । घाट पर घास साफ करना, बेदी बनाना, पीली मिट्टी और गाय के गोबर से लीपना भला कैसे कोई भूल सकता है ।
पृथ्वी पर साक्षात देवता भगवान सूर्य और माँ गंगा के समक्ष किया जाने वाला यह पर्व बहुत ही कठिन और उत्तम फल देने वाला है । इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे बिना अन्न और जल के रहती है । इसकी शुरुआत 3 दिन  नहाय खाय, खरना, साय काल अर्घ और सुबह के अर्घ से होता है ।
12 साल बाद बटेशर जादो छठ करने आये है, नाती का सपना पूरा हुआ और इस बार गाँव से ही छठ के लिए आये है । लाल चटक रंग की कढ़ाई वाली साड़ी पहने भौजाई और उनकी छोटी बहन पर चर्चा करना तो वही दूसरी तरफ 70 साल के रामकेश काका को घर से लेकर घाट तक (भू-परी) लेट कर आना और इतनी बड़ी आस्था को देख सर झुकाना ।
डालडा या घी, चीनी या गुड़ के ठेकुए के साथ कुछ खट्टे तो कुछ मीठे फलो के साथ 7 फिट लंबे ईख खाने की ललक पैदा होने की जिद्द पर डॉट सुनकर सुबह तक खेशरिया का आश लगाना ।
घाट पर पटाखे फोड़ना, शीशी में आकाशबाड़ी डालकर आकाश में परीक्षण करना कि किसका रंग करता है और किसका बम फूटता है । रनुआ का नोयडा से पटाखा लाकर सबको दिखाना और छोटे छोटे बच्चों को छुरछुरी जलाना ।
जगमगाती लाइटो में पूरी रात लड़को के साथ जागकर घाट की रखवाली करना, कुत्ते भगाना, जेनेरेटर में तेल डालना और कृष्णलीला देखना, शायद आप भी नही भूले होंगे ।
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