मन का राही

चल पड़ा हूँ बस कुछ सार्थक विचार और ढेर सारे सुनहरे सपनो से साथ

Tuesday, 24 October 2017

आखिर क्यों दिल मे शुमार है छठ पर्व

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आखिर क्यों हर बिहारवासी के लिए खास है छठ पर्व ।।

काँच ही बास के बहंगिया, बहँगी लचकत जाए ।
मूल गीत यही है जो सदियों से दादी-नानी, मॉ-बहने गाती चली आ रही है। आज भी इस गीत में कोई परिवर्तन नही हुआ, न मुखड़ा बदला और न अंतरा ।जब भी छठी मईया का यह गीत कानों तक पहुँचता है तन सिहर उठता है और मन की तरंगें घाट की ओर खींचने लगता है । 
दोस्तों से पूछना शुरू होता है । अरे भाई, कब से नान वेज बन्द करना है । नहाय खाय और अंतिम अरघ कितना तारीख को है ।
छुट्टी की जिद्द लिए बॉस के पास जाना, चेहरे पर भाव-भंगिमा उकेरना, विनम्र प्रार्थना के साथ छुट्टी के लिए विवश कराना, रिजर्वेसन न होने के बाद भी भाग भागकर गाड़ी पकड़ना,स्लीपर कोच में खचाखच भीड़ होने की वजह से टॉयलेट के पास खड़े होकर 14 घंटा बिताना , कैसे भूलेंगे ??
छत पर धोकर डाले गेहूं की पहरेदारी शुरू होती है । घर का सबसे छोटा लड़का का यह काम होता है और बड़ा लड़का बाजार से पूजा का समान के लिए नियुक्त होता है । पिछली बार छोटुआ गेहूं रखवाली से 1 मिनट हट गया था, खूब डॉट सुनना पड़ा था ।
बूढ़ी दादी सोये देखकर बड़बड़ाना शुरू करती है, सोये रहो सब घाट बना रहा है और तुम्हारा नींद पर यमराज आये है । 2 मिनट के बाद झट खुरपी, कुदाल, बाल्टी,लोटा लेकर गंगा किनारे या पुरखों से चले आ रहे जगह पर निकल पड़ते है । घाट पर घास साफ करना, बेदी बनाना, पीली मिट्टी और गाय के गोबर से लीपना भला कैसे कोई भूल सकता है ।
पृथ्वी पर साक्षात देवता भगवान सूर्य और माँ गंगा के समक्ष किया जाने वाला यह पर्व बहुत ही कठिन और उत्तम फल देने वाला है । इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे बिना अन्न और जल के रहती है । इसकी शुरुआत 3 दिन  नहाय खाय, खरना, साय काल अर्घ और सुबह के अर्घ से होता है ।
12 साल बाद बटेशर जादो छठ करने आये है, नाती का सपना पूरा हुआ और इस बार गाँव से ही छठ के लिए आये है । लाल चटक रंग की कढ़ाई वाली साड़ी पहने भौजाई और उनकी छोटी बहन पर चर्चा करना तो वही दूसरी तरफ 70 साल के रामकेश काका को घर से लेकर घाट तक (भू-परी) लेट कर आना और इतनी बड़ी आस्था को देख सर झुकाना ।
डालडा या घी, चीनी या गुड़ के ठेकुए के साथ कुछ खट्टे तो कुछ मीठे फलो के साथ 7 फिट लंबे ईख खाने की ललक पैदा होने की जिद्द पर डॉट सुनकर सुबह तक खेशरिया का आश लगाना ।
घाट पर पटाखे फोड़ना, शीशी में आकाशबाड़ी डालकर आकाश में परीक्षण करना कि किसका रंग करता है और किसका बम फूटता है । रनुआ का नोयडा से पटाखा लाकर सबको दिखाना और छोटे छोटे बच्चों को छुरछुरी जलाना ।
जगमगाती लाइटो में पूरी रात लड़को के साथ जागकर घाट की रखवाली करना, कुत्ते भगाना, जेनेरेटर में तेल डालना और कृष्णलीला देखना, शायद आप भी नही भूले होंगे ।
जय छठी माता ।
sujit1992.blogspot.com
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जीवन का रेसिपी With 4 comments
कितना बदल गया इंसान With 1 comment
। दो जिस्म एक जान ।

Author: सुजीत कुमार पाण्डेय

मैं सुजीत कुमार पाण्डेय बिहार के जिला बक्सर प्रखंड सिमरी गाँव गोप भरौली का निवासी हूँ । View all posts by सुजीत कुमार पाण्डेय
Author सुजीत कुमार पाण्डेयPosted onOctober 24, 2017CategoriesUncategorized

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मूल गीत यही है जो सदियों से दादी-नानी, मॉ-बहने गाती चली आ रही है। आज भी इस गीत में कोई परिवर्तन नही हुआ, न मुखड़ा बदला और न अंतरा ।जब भी छठी मईया का यह गीत कानों तक पहुँचता है तन सिहर उठता है और मन की तरंगें घाट की ओर खींचने लगता है ।
दोस्तों से पूछना शुरू होता है । अरे भाई, कब से नान वेज बन्द करना है । नहाय खाय और अंतिम अरघ कितना तारीख को है ।
छुट्टी की जिद्द लिए बॉस के पास जाना, चेहरे पर भाव-भंगिमा उकेरना, विनम्र प्रार्थना के साथ छुट्टी के लिए विवश कराना, रिजर्वेसन न होने के बाद भी भाग भागकर गाड़ी पकड़ना,स्लीपर कोच में खचाखच भीड़ होने की वजह से टॉयलेट के पास खड़े होकर 14 घंटा बिताना , कैसे भूलेंगे ??
छत पर धोकर डाले गेहूं की पहरेदारी शुरू होती है । घर का सबसे छोटा लड़का का यह काम होता है और बड़ा लड़का बाजार से पूजा का समान के लिए नियुक्त होता है । पिछली बार छोटुआ गेहूं रखवाली से 1 मिनट हट गया था, खूब डॉट सुनना पड़ा था ।
बूढ़ी दादी सोये देखकर बड़बड़ाना शुरू करती है, सोये रहो सब घाट बना रहा है और तुम्हारा नींद पर यमराज आये है । 2 मिनट के बाद झट खुरपी, कुदाल, बाल्टी,लोटा लेकर गंगा किनारे या पुरखों से चले आ रहे जगह पर निकल पड़ते है । घाट पर घास साफ करना, बेदी बनाना, पीली मिट्टी और गाय के गोबर से लीपना भला कैसे कोई भूल सकता है ।
पृथ्वी पर साक्षात देवता भगवान सूर्य और माँ गंगा के समक्ष किया जाने वाला यह पर्व बहुत ही कठिन और उत्तम फल देने वाला है । इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे बिना अन्न और जल के रहती है । इसकी शुरुआत 3 दिन  नहाय खाय, खरना, साय काल अर्घ और सुबह के अर्घ से होता है ।
12 साल बाद बटेशर जादो छठ करने आये है, नाती का सपना पूरा हुआ और इस बार गाँव से ही छठ के लिए आये है । लाल चटक रंग की कढ़ाई वाली साड़ी पहने भौजाई और उनकी छोटी बहन पर चर्चा करना तो वही दूसरी तरफ 70 साल के रामकेश काका को घर से लेकर घाट तक (भू-परी) लेट कर आना और इतनी बड़ी आस्था को देख सर झुकाना ।
डालडा या घी, चीनी या गुड़ के ठेकुए के साथ कुछ खट्टे तो कुछ मीठे फलो के साथ 7 फिट लंबे ईख खाने की ललक पैदा होने की जिद्द पर डॉट सुनकर सुबह तक खेशरिया का आश लगाना ।
घाट पर पटाखे फोड़ना, शीशी में आकाशबाड़ी डालकर आकाश में परीक्षण करना कि किसका रंग करता है और किसका बम फूटता है । रनुआ का नोयडा से पटाखा लाकर सबको दिखाना और छोटे छोटे बच्चों को छुरछुरी जलाना ।
जगमगाती लाइटो में पूरी रात लड़को के साथ जागकर घाट की रखवाली करना, कुत्ते भगाना, जेनेरेटर में तेल डालना और कृष्णलीला देखना, शायद आप भी नही भूले होंगे ।
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