Sunday 1 October 2017

आधुनिकता की आँधी में अंधे हुए हम ।

लोगो मे ऐशो आराम और धनवान बनने की चाहत उनके लिए ही घातक सिद्ध होते जा रही है । चंद सुखों की वहम ने अहम को विनाश के कगार पर ले जा रही है ।

नए नए फैशन और आधुनिक शिक्षा की होड़ में हमारा आने वाला कल इस कदर विषम बन चुका है जिसे सम करना असंभव लगने लगा है ।
जी हाँ, हम आज चर्चा करेंगे आधुनिकता के कुछ दुष्प्रभाव के बारे में,

तकरीबन 15 साल से घर मे एक गाय रहती है । सुबह का अलार्म गइया का पूंछ  टाटी पर पटकना या दूहने के लिए बोलना से होता है। हाँ, पहले  देशी गायो की संख्या बहुत थी तब किसी किसी  पैसे वालो के यहाँ साहीवाल, फिजिसियन, जर्सी गाय हुआ करती थी । दूध की होड़ ने धीरे धीरे देशी गायों को समाज से हटा ही दिया है, शायद ही किसी गाँव मे अब देखने भर को ही मिल जाये तो मेरा कथन सही साबित होगा ।
क्या समय था जब रतन काका अपने दोनो बैलों के लिए दशहरा के मेला नियाजीपुर से ख़ूबसुन्दर चटक लाल रंग में मोतियों से गूथे अचकन लाते  थे और शान से ऐसे लगाते थे जैसे शेर पाल रखे है ।  बैल के पुट्ठे पर हाथ मारकर कहते जियो शेर है शेर,  बाघ से भी ज्यादा मादा रखता है, मजाल है कि खेत मे कभी थम जाए ,उनके बैलों की चर्चा पूरे गाँव जवार मे होती थी, बगल के चाची चाचा के सिमरी बाजार से  लाये गये माले को देखती और कहती कि कभी भी जाये तो रतन काका के साथ जाए,ताकि उनके जैसा ही माला लेकर आये ।

दिन बदल गए, कहाँ गए वो दिन ??? 
मुस्किलन दो दशक में हमारा रीति रिवाज और फैशन कितना बदल गया । कल ही राजेश्वर काका के छोटे लड़के आये थे । वे IIT क्रेक किये थे तो पूरे जिला में उनका चर्चा था कि राजेश्वर सिंह के दोनों लड़के कामयाब हो गए । बड़का लड़का उस समय का MBA किया था जब हमारे क्लास 5 तक अंग्रेजी नही पढ़ाई जाती थी, तब MBA को लेकर हम सब दोस्तों में तरह तरह के फूल फॉर्म जोड़े गए पर कोई सही नही बता पाया था  तो वही बड़ी बहू भी एक्सक्यूटिव ऑफिसर थी ।
दोनो की शादी में शादी कार्ड पर लिखे रैंक को देख पूरे एरिया वाले अचम्भव में थे । गाँव मे शायद ही कोई उनलोगों की  पढ़ाई से परिचित हो । गाँव के लोग शान से राजेश्वर सिंह का नाम लेते और बच्चों को उनके लड़को की तरह होनहार बनने के लिऐ प्रेरित करते थे ।
वही दूसरा लड़का भी बेंगलुरू से  इंजीनियरिंग करने केे बाद लुधियाना में मैंनेजर के तौर पर कार्यरत है जिसका दरमाहा लाखों में है और बीटेक की हुई छोटी बहू की मैरिट का बखान राजेश्वर सिंह गाँव की हर टोली में करने से थकते नही थे ।
7 साल गुजरे। 
जहाँ आलीशान हवेली पर नौकर नौकरानियों और गाँव के रईस लोगो का हुजूम लगा रहता था, सामाजिक पर पंचायत का मुख्य अड्डा हुआ करता था, आज हवेली खंडहर में तब्दील हो चुका है । बाल बच्चे गाँव की जमीन बेचकर शहरों में रहने लगे और बच्चों से आँगन में नाती पोता का हँसी ठिठोली का सपना सजाया सब कुछ चकनाचूर हो गया था । हाँ कभी कभार चार पाँच साल में बच्चे आकर लंबी चौड़ी बातो से दिलासा दिलाकर चले जाते और बाद बात के भी नही पूछते ।
एक दिन वो समय भी आ गया बुढ़े राजेश्वर सिंह गुजर गए और फिर बुढ़िया को लेकर बच्चे शहर निकल गए । दो तीन साल गुजरने के बाद रहने को लेकर बंटवारा हो गया । दो दो महीना बेटों के पास रहने का सिलसिला शुरू हो गया । तंग आकर बुढ़िया गाँव मे अकेले रहने का फैसला लिया और हवेली में अकेले रहने लगी । गाँव के लोगो का प्यार और स्नेह सौहार्द से रहने से लोग उनकी इज्जत करते पर बेटों की करनी देख जहाँ राजेश्वर सिंह के बच्चो का तारीफ करते थे, आज थू थू करने लगे ।

एक दिन बूढ़ी गुजर गई, बच्चे दो दिन बाद आये तब तक सब क्रियाकर्म हो चुका था फिर भी किसी बात का परवाह नही था । 
मित्रों, आज के दौर में आधुनिकता की होड़ में हम बहे चले जा रहे है अपने माँ बाप का भी परवाह नही करते है पर जरा सोचिये
आप जैसा व्यवहार अपने माँ बाप से करेंगे आपके बच्चे भी ठीक वैसा ही आपसे करेंगे ।
बच्चों को चाहे कही भी रखे पर जमीनी हकीकत और समाज से दूर नही रखे वरना भविष्य अंधकारमय ही होगा और देश में वृद्धआश्रम की संख्या एक दो  ही नहीं गुणोत्तर क्रम में बढ़ेगी ।
---सुजीत कुमार पाण्डेय "छोटू "

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