Friday 27 October 2017

प्रेम पत्र की आशा में 🤔

क्या जमाना आ गया भाई, एक समय था जब लोग 20- 30 दिन तक इंतजार करते थे की बबुआ को लोधियाना गए हुए एक महीना हो गया,अभी तक कोई खोज-खबर नहीं  भेजवाया । मां-बाप, दादा-दादी के साथ-साथ पूरे मोहल्ले के लोग चिंतित रहते थे। दोस्त रिश्तेदार भी आकर कुशलक्षेम पूछते थे ।

घर मैं मेहरारू अलगे छटपटा रही है । काली माई अऊर बरहम बाबा के किरिया सलोनीआ के बाबू खबर भेजवा देते कि हम ठीक हैं तो प्रसादी चढ़ाते और पूरे गांव में बंटवाते। इधर  सास-ससुर  से  कुछ कहने में  शर्म भी आ रहा है कि एक और चिट्ठी भेज दिया जाता तो शायद उनतक पहुँच जाता । अंत में  सासु जी से शरमाते हुए कहती हैं । अंतरदेशी मँगाती है और  चिट्ठी में  लिखती है 

प्रिय  पति परमेश्वर 
मैं  आपके  दुआ सलामत के लिए  मां काली जी से मनाया करती हूं  की  जो सुनकर  दिल खुश हो ।  यहां का  सब समाचार  अच्छा है  घर में सब ठीक-ठाक है। गाय बछिया दिया है और दूध भी खूब कर रही है । लेकिन आप नही है बस नही कमी है । आज कल सलोनी की स्कूल जाने की जिद में बबुआ जी नाम आंगनबाड़ी में लिखा दिया गया है । रोज सुबह सुबह उठकर फटाफट नहाधोकर बैग ले लेती है । अगर सबकुछ ठीक रहा तो मंटू जी के यहाँ टीशन पढ़ाएंगे, एगो तो लईकी है आँख के पुतरी .... अभी हमारे लिए सबकुछ यही न है ....
बाकी अपना धियान देना । खाने पीने में कोई कसर मत छोड़ना । हम उम्मीद करते है कि आप होली में घर आइयेगा और बुचिया के लिए कपड़ा लोधियाना से ही ले आइयेगा ।

आपकी अपनी
ABCD

दो बार चिट्ठी भेजने के बाद भी कोई खबर नहीं आया ना कोई चिट्ठी आया और ना ही कोई तार। परेशान होकर सलोनिया की आजी गांव के बंशीधर बो काकी के पास शगुन निकालने के लिए जाती है । एक डाली में गाय के गोबर के गोल बनाकर उसमें दूबी घास लगाकर मनौती करती हैं । अगर दुब ऊपर खड़ी जो जाय तो वही शुभ माना जाता और नीचे दब गई तो अपशगुन  । उनकी शगुन की चर्चा पूरे जवार में है ,आसपास के 2 कोस से लोग आते है ।

बीरजु चाचा दूसरी बार आकर समझा गए की लोधियाना में काम-धाम के चलते फुर्सत नहीं मिल रहा होगा और महीना में कहीं एक-दो दिन छुट्टी मिल जाता है इसलिए शायद  खबर नहीं भेज रहा है,  चिंता मत कीजिए सब कुछ बढ़िया है, रजुआ अगहन में वहाँ से आ रहा है वह सही बताएगा ।

मुझे लगता है कि उस समय लोगों में सुख, शांति और सुकून के साथ साथ मन में विश्वास था कि शगुन किया हुआ सही होता है । भला आज का समाज उसे कैसे स्वीकार करेगा। आज तो हर किसी को प्रत्यक्ष प्रमाण की जरूरत है। आजकल समाज में नाही बंसीधर बो काकी का शगुन का महत्व रहा और ना ही बंसीधर  चाचा के समझाने का कोई फायदा ।

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हम प्रतिदिन अखबारो  और टीवी चैनलों की सुर्ख़ियों में देखते हैं कि समाज में इसी असंतोष की भावना के चलते दिन  प्रतिदिन न जाने कितने लोग गलतफहमियों का शिकार होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं ।  हां,  इसके पीछे कुछ लोगों की मजबूरिया भी हैं  और यह मजबूरी  ऐसी है कि जिसे मिटाया नहीं जा सकता और ना ही इससे कम किया जा सकता। हमारा समाज बहुबंधन मुक्त होना चाहता है, सबकी सोच यही है कि एकल परिवार में खुशी मिलेगी पर यह असंभव है ।

सुजीत पाण्डेय "छोटू"💐💐💐💐

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