Thursday 12 October 2017

आज हम गरीब कैसे.....??

किसी देश की ताकत सैनिकों से और सम्पन्नता किसानो से होती है ।
क्या जमाना था जब खेदन काका गाँव के सरपंच साहेब के जूता पहन के बियाह करने गए थे तब आज जैसे लोग नही थे । किसी का कपड़ा, जूता चप्पल और कुछ भी सामान मांगने पर बहाना नही करते थे बल्कि खुशी खुशी देते थे, "खैर, आज के दौर में कोई माँगता भी नही और कमोबेश सबके पास जरूरत के हिसाब से उपलब्ध है । हाँ, किसी के पास नाईक, रिबोक, का जूता है तो किसी के पास उसका टु कॉपी Deebok या hike का ....
मुझे याद है एक बार रमेशवा का टी-शर्ट पहनकर सोनुवा अपना भैया के ससुरारी गया था तब साली सोनी इस कदर फिदा हो गई थी कि जैसे अक्षय कुमार से साक्षात दर्शन हो गए । जब रहा नही गया तो बोली जीजा जी बहुत कटाह अउर खूब इस्माट लग रहे है , सोनुवा भी बोल दिया था कि तोहके ले जाने आये है तोहार दिदिया बोलाई है। तब से सोनुवा टी-शर्ट देने का नाम ही नही ले रहा था .....आज मजाल है कि उतना महंगा टी-शर्ट साली की खुशी पर कोई कुर्बान कर दे ।
समय बदला,गरीबी हटी और आज कम से कम हर व्यक्ति को सही समय पर खाने को मिल जाता है । एक समय था जब दो जून की रोटी नसीब नही था,सुबह का खाना के बाद शाम को नही होता था, मसालेदार सब्जी भाग्य होने पर मिलता था कही काज परोज़न में ... अच्छे अच्छे घरों में सु-अन्न शायद ही कभी मिलता हो । गाँव में शादी बारात होने पर एक दिन पहले से लोग पेट खाली रखते थे कि कल पूड़ी है भरपेट मिलेगा । आज तो करिमाना डालडा और रिफाइन से परहेज करने लगा है और रसगुल्ला छोड़ पुलाव ही केवल खाता है ।
अपने जिंदगी के 7 दशक बीता चुके हरिहर बाबा कहते है कि पहले नसीब में पूड़ी पकवान तभी होता था जब कोई परब तेवहार आता । मकई, बाजरा की रोटी और उसी का भात बनाकर पेट की छुधा मिटाया जाता था ।
कलुवा इस बार दशहरा के मेला में चाट, जलेबी और रसगुल्ला न खाकर विदेशी खाना चौमिंग, बर्गर, पिजा और हॉट डॉग का परमाइस करने लगा । घुराहुवा डिमांड सुन के  भकुआ गया पर क्या कहा जाय आज के समाज के बारे में सबकुछ बदल गया है । सातू पियाज खाकर कलुवा के बाबू पता नही कब शहरी खाना के इतने शौखिन हो गए और बच्चों के साथ साथ चौमिंग का ऐसा सुरूर जगा कि सुबह का नास्ता पास्ता से ही करने लगें है ।
कल से सारांश इसलिए दुखी है कि उनके पास 4G का सेट नही है और उनके साथ वाले जिओ के साथ जी रहे है । तीन चार दशक पहले की बात करें तो पोस्टकार्ड और अन्तर्देशी पर हाल -ऐ-दिल का हाल कलमों के जरिये लिखे जाते और पहुँचने से जबाब आने में महीनों लग जाते थे, तब लोगो मे धैर्य और विश्वास था पर आज तो मिनटों में हाई प्रेशर, लो प्रेशर, बीपी और ना जाने कितने रोग निकल आकर हार्ड अटैक तक हो जाते है ।
कनिया कनिया और लुका-छिपी खेल का रिवाज तो बहुत पहले ही खत्म जब घर घर में HD टीवी और फिल्मों के साथ साथ सीरियलों का खुमार लोगो पर सवार हुआ । जो बच्चे मैदान के चीका, कब्बड्डी , खो खो खेलते थे,आज मोबाइल गेम और हॉरर मूवी देखने के ही व्यस्त रहते है ।
आज हम गर्व करते है कि पहले से बेहतर है और आगे विकास करते रहेंगे ।।
आपका छोटा भाई
sujit1992.blogspot.com

No comments:

Post a Comment