Saturday 7 October 2017

मकई से पॉपकॉर्न की हकीकत

#मकई से #पॉपकार्न की असलियत ।।

खेतो में मकई की कटाई चरम सीमा पर है । कार्तिक महीने की जहरिली धूप में किसानों के सर का पसीना आँख में घुस रहा है और नीचे गिरकर चड्डी तक गीला कर रहा है । पल भर की आने वाली छाव और थोड़ी सी पुरवा हवा कुछ राहत देती तब तक धूप का आना और उमस ऐसा भर देता जैसे बेहोस कर देगी ।इतनी तेज धूप में काम करने पर कभी कभी तो ऐसा लग रहा है कि अतड़ी सूखकर सुकुड़ जाएगी और शरीर बेजान हो जाएगा पर किसान करे तो क्या करे .........

खैनी पीटते ही पिंटुवा भारी भरकम बोझ पटककर खड़ा हो गया, बटेश्वर काका तनी मुझे भी खिला दो, धूप और खैनी का एक दूसरे से व्यापक सम्बंध है । धूप जहाँ काम से भागने को विवश करता है वही खैनी काम करने का उत्साह भरता है ।

घंटे आधे घंटे काम करने के पश्चात 100 मीटर दूर पुराने बुढ़े  पीपल के पेड़ के नीचे जाकर 10 मिनट में छांव में जो सुकून मिलता उसके आगे AC, कूलर सब फेल लगते और बुजुर्गों के द्वारा लगाए गए पेड़ की छाव रूपी पूण्य का बखान करते और लोग दिल से दुआ देते ।

मकई की खेती में किसान खेत बोने से लेकर बड़े होने तक देख रेख, समय समय पर पैसा लगाकर उत्तम बीज, खाद लगाने के साथ साथ गुड़ाई सोहाई कर जो सुनहरे सपने सजाए थे आज प्रतिफल में लाभ मात्र सिफर भर है । ऐसा लगता है कि ईश्वर हमेशा से कहर किसानों पर ही बरपाते है ।

गवई कहावत चरितार्थ हुई है ।

4 आने का मकई 12 आने का मचान

अगर खेत में हुए लागत और बचत की बात की जाय तो ऐसा  लगता है संख्याओ का उलटफेर महज मजाक भर है क्योंकि मकई की सालाना बेचने की कीमत मात्र 1500 रुपये प्रति क्विंटल होगी, साथ ही याद दिला दू यही मकई पॉपकॉर्न बन  सिनेमा घरों या बड़े बड़े रेस्टुरेंटो में 500 रुपये प्रति किलों भी नही मिल पाता है ।
sujit1992.blogspot.Com

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